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अनुच्छेद 32 एवं अनुच्छेद 226: भारतीय संविधान में रिट के प्रकार और उनका विस्तार क्षेत्र

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान एवं आधारिक संरचना।

 

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार- संदर्भ

  • संवैधानिक रिट सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालयों द्वारा जारी किए गए निर्देश या आदेश हैं जो भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध संवैधानिक उपचार का आदेश देते हैं।

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार- प्रमुख बिंदु

  • भारतीय संविधान में रिट के प्रकार के बारे में: सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के पास क्रमशः अनुच्छेद 32 एवं 226 के तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) , अधिकार पृच्छा (को वारंटो), परमादेश (मैंडमस), उत्प्रेषण (सरशियोररी),प्रतिषेध (प्रोहिबिशन)  इत्यादि की प्रकृति में रिट जारी करने की शक्ति है।
  • ब्रिटेन से आहरित: भारत में संवैधानिक रिट ब्रिटिश संविधान से आहरित (उधार ली गई) हैं जहां उन्हें ‘विशेषाधिकार रिट’ के रूप में जाना जाता है।
  • मौलिक अधिकारों का प्रत्याभूतिदाता: संवैधानिक उपचार का अधिकार भारत के लोगों के लिए उपलब्ध अन्य सभी मौलिक अधिकारों का प्रत्याभूतिदाता है।
  • संवैधानिक रिट जारी करने की शक्ति: संविधान का अनुच्छेद 32 सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) को लागू करने के लिए रिट जारी करने का प्रावधान करता है।
    • अनुच्छेद 226: यह उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकारों या किसी अन्य विधिक/कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन के लिए अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण को रिट जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • रिट क्षेत्राधिकार का विस्तार: अनुच्छेद 32 में एक ऐसा उपखंड भी शामिल है जो संसद को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह ऊपर बताए गए उद्देश्यों के अतिरिक्त अन्य उद्देश्यों के लिए रिट जारी करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को शक्ति प्रदान करे।
  • रिट के प्रकार: संविधान में पांच प्रकार के रिट की व्यवस्था की गई है-
  1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस)
  2. परमादेश (मैंडमस)
  3. प्रतिषेध (प्रोहिबिशन)
  4. उत्प्रेषण (सरशियोररी)
  5. अधिकार पृच्छा (को वारंटो),

 

  • बंदी प्रत्यक्षीकरण एवं अधिकार पृच्छा विशिष्ट स्थितियों तक सीमित होने के कारण, प्रशासनिक निकायों के कार्यों को नियंत्रित करने हेतु उत्प्रेषण (सरशियोररी) एवं परमादेश (मैंडमस) दो सर्वाधिक लोकप्रिय रिट हैं।

 

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार- बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस)

  • बंदी प्रत्यक्षीकरण के बारे में: बंदी प्रत्यक्षीकरण शब्द का लैटिन अर्थ है ‘आपके पास शरीर है’। यह अवैध रूप से अनिरुद्ध किए जाने के प्रति व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा करता है।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करने का कारण: बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है।
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट के तहत, सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय एक व्यक्ति जिसने किसी दूसरे व्यक्ति को गिरफ्तार किया है उसे आदेश देता है की उस निरुद्ध किए गए व्यक्ति को सशरीर न्यायालय के समक्ष उपस्थित करे।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट का विस्तार क्षेत्र: यह सर्वोच्च न्यायालय/ उच्च न्यायालय द्वारा निजी एवं सार्वजनिक दोनों प्राधिकरणों के विरुद्ध जारी किया जा सकता है। बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट निम्नलिखित स्थितियों में जारी नहीं की जा सकती है-
    • जब निरोध विधि सम्मत है
    • जब कार्यवाही किसी विधायिका या न्यायालय की अवमानना ​​के लिए हो
    • निरोध एक सक्षम न्यायालय द्वारा है
    • निरोध न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार- परमादेश रिट

  • परमादेश रिट के बारे में: परमादेश का अर्थ है ‘हम आज्ञा देते हैं’। सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय उस सरकारी अधिकारी को आदेश देने के लिए परमादेश रिट जारी करते हैं जो अपने कर्तव्य का पालन करने में विफल रहा है या अपना कर्तव्य करने से इनकार कर दिया है।
    • सार्वजनिक अधिकारियों को अपने कार्य को पुनः प्रारंभ करने हेतु बाध्य करने के लिए न्यायालयों द्वारा परमादेश रिट जारी की जाती है।
    • परमादेश रिट न्यायालयों द्वारा एक सार्वजनिक प्राधिकरण को अपना कर्तव्य संपादित करने का निर्देश देने के लिए जारी किया जाता है।
  • परमादेश रिट का दायरा: सार्वजनिक अधिकारियों के अतिरिक्त, किसी भी सार्वजनिक निकाय, एक निगम, एक अधीनस्थ न्यायालय, एक न्यायाधिकरण, या सरकार के विरुद्ध एक समान उद्देश्य के लिए परमादेश जारी किया जा सकता है।
    • निजी व्यक्तियों (बंदी प्रत्यक्षीकरण के विपरीत) के विरुद्ध परमादेश रिट जारी नहीं की जा सकती।
  • निम्नलिखित स्थितियों में परमादेश रिट जारी नहीं किया जा सकता है-
    • विभागीय निर्देश को प्रवर्तित कराने हेतु जिसमें वैधानिक बल नहीं है
    • किसी को कार्य संपादित करने का आदेश देने के लिए जब कार्य विवेकाधीन प्रकृति का है एवं अनिवार्य नहीं है
    • एक संविदात्मक दायित्व को लागू करने के लिए
    • भारतीय राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपालों के विरुद्ध परमादेश रिट जारी नहीं किया जा सकता है
    • न्यायिक क्षमता में कार्य करने वाले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध परमादेश रिट जारी नहीं किया जा सकता है

 

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार- प्रतिषेध रिट

  • प्रतिषेध रिट के बारे में: प्रतिषेध का सामान्य सा अर्थ है ‘वर्जित करना’। प्रतिषेध रिट अधीनस्थ न्यायिक अदालतों की ओर से निष्क्रियता को निर्देशित करती है।
  • प्रतिषेधका अधिदेश: यह एक उच्च न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय के विरुद्ध जारी किया जाता है ताकिअधीनस्थ न्यायालय को उसके अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने अथवा उस अधिकार क्षेत्र को हड़पने से रोका जा सके जो अधीनस्थ न्यायालय धारण नहीं करता है।
  • प्रतिषेध रिट का दायरा: प्रतिषेध रिट केवल न्यायिक एवं अर्ध-न्यायिक अधिकारियों के विरुद्ध जारी किया जा सकता है।
    • प्रशासनिक अधिकारियों, विधायी निकायों एवं निजी व्यक्तियों या निकायों के विरुद्ध प्रतिषेध रिट जारी नहीं की जा सकती है।

 

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार- उत्प्रेषण (सरशियोररी)

  • उत्प्रेषण (सरशियोररी) के बारे में: उत्प्रेषण (सरशियोररी) का अर्थ है ‘प्रमाणित होना’ या ‘सूचित होना’। अधीनस्थ न्यायालय से कार्यवाही को हटाने एवं इसे अपने समक्ष लाने की उच्च न्यायालय की शक्ति।
  • उत्प्रेषण रिट जारी करने के लिए आधार: उत्प्रेषण का रिट निम्नलिखित आधारों पर जारी किया जाता है-
    • क्षेत्राधिकार का अतिलंघन या
    • क्षेत्राधिकार का अभावअथवा
    • कानून की त्रुटि।
  • उत्प्रेषण रिट का अधिदेश: यह एक उच्च न्यायालय (प्राधिकार युक्त) द्वारा अधीनस्थ न्यायालय या न्यायाधिकरण को जारी किया जाता है जो उन्हें आदेश देता है-
    • या तो उनके पास लंबित किसी मामले को इसे (उच्च न्यायालय को) स्थानांतरित करने के लिए या
    • एक मामले में अधीनस्थ न्यायालय के आदेश को रद्द करना।
  • उत्प्रेषण रिट का दायरा:
    • प्रारंभ में, उत्प्रेषण रिट केवल न्यायिक एवं अर्ध-न्यायिक अधिकारियों के विरुद्ध जारी किया गया था,  किंतु बाद में प्रशासनिक अधिकारियों को भी शामिल करने के लिए इसका दायरा बढ़ा दिया गया था।
    • विधायी निकायों एवं निजी व्यक्तियों अथवा निकायों के विरुद्ध उत्प्रेषण रिट जारी नहीं किया जा सकता है।

 

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार- अधिकार पृच्छा (को वारंटो) रिट

  • अधिकार पृच्छा (को वारंटो) रिट के बारे में:‘अधिकार पृच्छा (को वारंटो)’ का शाब्दिक अर्थ है ‘किस अधिकार या वारंट द्वारा।’ यह उन प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यों की समीक्षा करता है जो सार्वजनिक कार्यालयों में नियुक्तियाँ करते हैं।
    • न्यायालय ‘अधिकार पृच्छा’ के रिट का उपयोग करते हुए किसी सार्वजनिक पद पर किसी व्यक्ति के दावे की वैधता की जांच करती है।
  • अधिकार पृच्छा जारी किए जाने हेतु आधार: यह रिट न्यायालय द्वारा सार्वजनिक अधिकारियों को यह पूछने के लिए जारी की जाती है कि वे सार्वजनिक पद किस अधिकार से धारण करते हैं।
  • अधिकार पृच्छा (को वारंटो) रिट का दायरा:
    • अधिकार पृच्छा का रिट केवल तभी लागू किया जा सकता है जब किसी क़ानून या संविधान द्वारा निर्मित किया गया स्थायी चरित्र का स्थायी सार्वजनिक पद शामिल हो।
    • निजी या मंत्रिस्तरीय कार्यालयों के विरुद्ध अधिकार पृच्छा का रिट उपलब्ध नहीं है।
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