अनुच्छेद 14 |
- विधि के समक्ष समता: संविधान प्रत्याभूति प्रदान करता है कि विधि के समक्ष सभी नागरिक समान होंगे।
- इसका तात्पर्य है कि देश की विधियों द्वारा सभी को समान रूप से संरक्षित किया जाएगा।
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अनुच्छेद 15 |
- धर्म, प्रजाति, जाति, लिंग अथवा जन्म स्थान के आधार पर विभेद का निषेध: राज्य धर्म, प्रजाति, जाति, लिंग अथवा जन्म स्थान के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं कर सकता है।
- यद्यपि, राज्य महिलाओं एवं बच्चों के लिए विशेष प्रावधान निर्मित कर सकता है अथवा अनुलाभ (रियायतें) प्रदान कर सकता है।
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अनुच्छेद 16 |
- सार्वजनिक नियोजन के विषय में समस्त नागरिकों को अवसर की समानता: राज्य सार्वजनिक नियोजन के मामले में किसी के प्रति विभेद नहीं कर सकता है।
- यद्यपि, राज्य कमजोर वर्गो के लिए विशेष प्रावधान प्रदान कर सकता है।
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अनुच्छेद 17 |
- अस्पृश्यता का उन्मूलन: किसी भी रूप में अस्पृश्यता का व्यवहार विधि के अंतर्गत दंडनीय अपराध बना दिया गया है।
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अनुच्छेद 18 |
- उपाधियों की समाप्ति: ब्रिटिश शासन के दौरान ब्रिटिश वफादारों को प्रदान की जाने वाली सर (नाइटहुड) या राय बहादुर जैसी सभी ब्रिटिश उपाधियों को समाप्त कर दिया गया क्योंकि उन्होंने कृत्रिम प्रकृति के भेद उत्पन्न किए थे।
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अनुच्छेद 19 |
- यह निम्नलिखित छह स्वतंत्रता प्रदान करता है:
- वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,
- शांतिपूर्वक एवं निरायुध सम्मिलित होने की स्वतंत्रता,
- संगम एवं संघ निर्माण करने की स्वतंत्रता,
- भारत के संपूर्ण राज्य-क्षेत्र में अबाध रूप से संचरण की स्वतंत्रता,
- भारत के राज्य-क्षेत्र के किसी भी भाग में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता,
- किसी भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या व्यवसाय करने की स्वतंत्रता।
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अनुच्छेद 20 |
- अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण: संविधान का अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में सुरक्षा प्रदान करता है।
- किसी भी व्यक्ति को उस कृत्य के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता जो उसके कारित किए जाने के समय अपराध नहीं था,
- किसी को भी अपराध कारित किए जाने के समय प्रचलित कानून में प्रदान किए गए दंड से अधिक दंड नहीं दिया जा सकता है।
- साथ ही, एक ही अपराध के लिए किसी पर एक से अधिक बार अभियोग नहीं चलाया जा सकता है और न ही उसे दंडित किया जा सकता है एवं स्वयं के विरुद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
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अनुच्छेद 21 |
- प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार: विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अन्यथा किसी को भी उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है।
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अनुच्छेद 22 |
- कुछ मामलों में गिरफ्तारी एवं निरुद्ध किए जाने के प्रति संरक्षण: जब भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे गिरफ्तारी के कारणों के बारे में यथाशीघ्र, सूचित किया जाना चाहिए तथा उसे अपनी पसंद के विधि व्यवसाय से परामर्श करने और बचाव करने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए।
- इसके अतिरिक्त, निरुद्ध किए गए व्यक्ति को ऐसी गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए, सिवाय उस व्यक्ति के जिसे निवारक निरोध कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है।
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अनुच्छेद 23 |
- मानव के दुर्व्यापार एवं बलात् श्रम का निषेध: मानव का अवैध व्यापार एवं बेगार तथा इसी प्रकार के अन्य बलात् श्रम विधि द्वारा निषिद्ध घोषित किए गए हैं एवं इस प्रावधान का कोई भी उल्लंघन विधि के अनुसार दंडनीय अपराध होगा।
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अनुच्छेद 24 |
- कारखानों आदि में बालकों के नियोजन पर प्रतिबंध: जैसा कि संविधान सावधान करता है, चौदह वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को किसी कारखाने या खदान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।
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अनुच्छेद 25 |
- अंतःकरण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता: सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार है।
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अनुच्छेद 26 |
- धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता: सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के अधीन, प्रत्येक धार्मिक समूह या उसके किसी भी वर्ग को अधिकार होगा।
- धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों की स्थापना एवं अनुरक्षण करना;
- अपने धर्म विषयक कार्यों के प्रबंधन का अधिकार;
- जंगम और स्थावर संपत्ति के अर्जन और स्वामित्व का अधिकार; तथा
- ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार।
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अनुच्छेद 27 |
- किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि हेतु करों के संदाय के संबंध में स्वतंत्रता: किसी भी व्यक्ति को ऐसे करों का संदाय करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा जिनके आगम किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि या पोषण में व्यय करने के लिए विनिर्दिष्ट रूप से विनियोजित किए जाते हैं ।
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अनुच्छेद 28 |
- कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थिति के बारे में स्वतंत्रता: राज्य निधि से पूर्णत: संचालित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में कोई भी धार्मिक निर्देश प्रदान नहीं किया जाएगा।
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अनुच्छेद 29 |
- अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण: किसी भी अल्पसंख्यक समूह जिसकी अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे इसके संरक्षण का अधिकार होगा।
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अनुच्छेद 30 |
- शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार: सभी अल्पसंख्यकों को, चाहे वे धर्म या भाषा पर आधारित हों, अपनी रुचि के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार है।
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अनुच्छेद 31 |
- अनुच्छेद 31 ए: यह अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर निम्नलिखित पांच श्रेणियों के विधियों को आपत्ति एवं अविधिमान्य होने से सुरक्षित करता है।
- राज्य द्वारा सम्पदा और संबंधित अधिकारों का अवाप्त किया जाना;
- राज्य द्वारा संपत्तियों का प्रबंधन अपने हाथ में लेना;
- निगमों का समामेलन;
- निगमों के निदेशकों अथवा शेयरधारकों के अधिकारों का शमन अथवा उनमें संशोधन करना;
- खनन पट्टों का शमन अथवा संशोधन।
- अनुच्छेद 31 बी: यह नौवीं अनुसूची में समाविष्ट अधिनियमों एवं विनियमों को किसी भी मूल अधिकार के उल्लंघन के आधार पर चुनौती एवं अविधिमान्य होने से सुरक्षित करता है।
- अनुच्छेद 31 सी: यह कहता है कि
- अनुच्छेद 39 (बी) एवं (सी) में निर्दिष्ट समाजवादी निर्देशक सिद्धांतों को प्रवर्तित करने का प्रयास करने वाली किसी भी विधि को अनुच्छेद 14 अथवा अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर शून्य (अविधिमान्य) घोषित नहीं किया जाएगा।
- इसके अतिरिक्त, ऐसी किसी नीति को प्रवर्तित करने की घोषणा करने वाली किसी भी विधि को किसी भी न्यायालय में इस आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है कि यह ऐसी नीति को प्रभावी नहीं बनाता है।
- अनुच्छेद 31 ए, 31 बी और 31 सी को मूल अधिकारों के अपवाद के रूप में बरकरार रखा गया है।
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अनुच्छेद 32 |
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार: जब हमारे किसी भी अधिकार का उल्लंघन होता है, तो हम न्यायालयों के माध्यम से न्याय की अपेक्षा कर सकते हैं। हम सीधे सर्वोच्च न्यायालय में न्याय प्राप्ति हेतु जा सकते हैं जो मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए निर्देश, आदेश या रिट जारी कर सकता है।
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