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प्रसंग
- भारत के राष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय में तीन महिलाओं सहित नौ न्यायाधीशों की नियुक्ति के अधिपत्र (वारंट) पर हस्ताक्षर कर दिए, जिससे इसकी कुल क्षमता 33 न्यायाधीशों तक पहुंच गई, जो पूर्ण क्षमता से एक कम थी।
- इन नामों की संस्तुति भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की अध्यक्षता वाले सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम प्रणाली द्वारा की गई थी।
कॉलेजियम प्रणाली के बारे में
- यह उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा स्थानांतरण की प्रणाली है जो सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
- कॉलेजियम प्रणाली में न तो कोई विधायी समर्थन है और न ही नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली से संबंधित कोई विशेष संवैधानिक प्रावधान है।
कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से नियुक्ति प्रक्रिया
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु: सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम का नेतृत्व भारत के मुख्य न्यायाधीश करते हैं एवं इसमें न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश सम्मिलित होते हैं।
- कॉलेजियम केंद्रीय विधि मंत्री को संस्तुति भेजता है, जो राष्ट्रपति को परामर्श प्रदान करने हेतु इसे प्रधानमंत्री के पास भेजता है।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु: एक उच्च न्यायालय कॉलेजियम की अध्यक्षता उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं उस न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं।
- उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा नियुक्ति के लिए अनुशंसित नाम भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं सर्वोच्च न्यायालय के दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा अनुमोदन के पश्चात ही सरकार तक पहुँचते हैं।
- कॉलेजियम की संस्तुति मुख्यमंत्री को भेजी जाती है, जो राज्यपाल को केंद्रीय विधि मंत्री को प्रस्ताव भेजने की सलाह देते हैं।
- नियुक्ति में सरकार की भूमिका:
- यह इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) को कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों की जांच करने का निर्देश दे सकता है।
- सरकार अनुशंसित न्यायाधीश को कॉलेजियम द्वारा पुनर्विचार के लिए लौटा सकती है। यदि कॉलेजियम अपनी सिफारिश दोहराता है, तो सरकार को एक व्यक्ति की नियुक्ति करना अनिवार्य है।
42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976
नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली का विकास
- प्रथम न्यायाधीश वाद (फर्स्ट जजेज केस) (1981): उच्चतम न्यायालय (सर्वोच्च न्यायालय) ने कहा कि अनुच्छेद 124 के अंतर्गत परामर्श का तात्पर्य सहमति (एकमत) नहीं है। इस निर्णय ने राष्ट्रपति को भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श की उपेक्षा करने की स्वतंत्रता प्रदान की।
- द्वितीय न्यायाधीश वाद (सेकेंड जजेज केस) (1993): सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पिछले फैसले को निरस्त कर दिया एवं कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह बाध्यकारी है।
- कॉलेजियम प्रणाली का प्रारंभ: भारत के मुख्य न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम के आधार पर अपनी सलाह प्रतिपादित करनी होती है।
- तृतीय न्यायाधीश वाद (थर्ड जजेज केस) (1998): कॉलेजियम का विस्तार पांच सदस्यीय निकाय में किया गया, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों को सम्मिलित किया गया।
- चतुर्थ न्यायाधीश वाद (फोर्थ जजेज केस) (2015): सर्वोच्च न्यायालय ने एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) अधिनियम को असंवैधानिक बताते हुए कॉलेजियम की प्रधानता को बरकरार रखा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि अधिनियम ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अतिक्रमण किया एवं आधारिक संरचना को कमजोर किया।