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सूक्ष्म वित्त संस्थान (माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशंस/एमएफआई)

सूक्ष्म वित्त संस्थान यूपीएससी

सूक्ष्म वित्त संस्थानों के बारे में जानने से पूर्व, आइए पहले यह समझते हैं कि सूक्ष्म वित्त क्या है?

 सूक्ष्म वित्त  का अर्थ: सूक्ष्म वित्त वित्तीय सेवा का एक रूप है जो  निर्धन एवं कम आय वाले परिवारों को छोटे ऋण तथा अन्य वित्तीय सेवाएं प्रदान करता है।

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सूक्ष्म वित्त के उद्देश्य

  • सूक्ष्म वित्त एक आर्थिक उपकरण है जिसे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने हेतु अभिकल्पित किया गया है जो निर्धन एवं कम आय वाले परिवारों को निर्धनता से बाहर आने, उनकी आय के स्तर में वृद्धि करने तथा समग्र जीवन स्तर में सुधार करने में सक्षम बनाता है।
  • सूक्ष्म वित्त राष्ट्रीय नीतियों की उपलब्धि को भी सुगम बना सकता है जो निर्धनता में कमी लाने, महिला सशक्तिकरण, कमजोर समूहों को सहायता तथा जीवन स्तर में सुधार को लक्षित करती हैं।

 

भारत में सूक्ष्म वित्त संस्थान

  • एमएफआई एक वित्तीय संगठन है जो अल्प आय वाली आबादी को वित्तीय सेवाएं प्रदान करता है।
    • इन सेवाओं में सूक्ष्म ऋण, सूक्ष्म बचत तथा सूक्ष्म बीमा सम्मिलित होते हैं।
  • 2010 में, एच. मालेगाम समिति (आरबीआई द्वारा) की सिफारिशों पर, आरबीआई ने माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशन (एमएफआई) नामक एनबीएफसी की एक नवीन श्रेणी निर्मित की।
  • सूक्ष्म वित्त संस्थान निर्धनों को बिना संपार्श्विक, लोचशील ईएमआई के छोटे ऋण प्रदान करता है।
    • भारत में, 1 लाख रुपये से कम के सभी ऋणों को लघु ऋण  अथवा सूक्ष्म ऋण के रूप में माना जा सकता है।
  • सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी-सूक्ष्म वित्त संस्थान (रिज़र्व बैंक) निर्देश, 2011 आरबीआई तथा कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
  • ऐसे परिवार जिनकी वार्षिक आय 1.25 लाख रुपए (ग्रामीण) अथवा 2 लाख रुपए (शहरी) से अधिक नहीं है, वे एमएफआई से ऋण लेने हेतु पात्र हैं।  यद्यपि, अधिकतम ऋण की राशि 1.25 लाख रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  • भारतीय सूक्ष्म वित्त क्षेत्र ने विगत दो दशकों में सूक्ष्म वित्त प्रदान करने वाले संस्थानों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ सूक्ष्म वित्त ग्राहकों को उपलब्ध कराए गए क्रेडिट की मात्रा में अभूतपूर्व वृद्धि देखी है।

 

सूक्ष्म वित्त संस्थानों के समक्ष मुद्दे

  • अपर्याप्त डेटा: समग्र ऋण खाता वास्तव में बढ़ रहा है,यद्यपि, लोगों की आर्थिक स्थिति पर उनके प्रभाव को अच्छी तरह से प्रलेखित नहीं किया गया है।
  • अति-ऋणग्रस्तता: ग्राहकों द्वारा विविध प्रकार के ऋण लेने की बढ़ती प्रवृत्ति  एवं अक्षम जोखिम प्रबंधन कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक हैं जो भारत में माइक्रोफाइनेंस उद्योग पर दबाव डालते हैं।
  • उच्च ब्याज दर: अधिकांश माइक्रोफाइनेंस संस्थान वाणिज्यिक बैंकों (8-12%) की तुलना में बहुत अधिक ब्याज दर (12-30%) लेते हैं, जिसके कारण भारत में वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में एमएफआई की वित्तीय सफलता सीमित है।
  • बैंकों पर निर्भरता: अधिकांश माइक्रोफाइनेंस संस्थान गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के रूप में पंजीकृत हैं, एवं स्थायी धन उपलब्धता के लिए वाणिज्यिक बैंकों जैसे औपचारिक बैंकों पर निर्भर हैं। बैंकों पर भारतीय एमएफआई की यह निर्भरता उन्हें ऋण प्रदान करने वाले भागीदार के रूप में अक्षम बनाती है।
  • गैर-आय सृजन करने वाले उद्देश्य के लिए ऋण: गैर-आय सृजित करने वाले उद्देश्यों के लिए उपयोग किए गए ऋणों का अनुपात आरबीआई द्वारा अधिदेशित किए गए ऋण से बहुत अधिक हो सकता है, जो कि कुल एमएफआई ऋण का 30% है।
  • भौगोलिक कारक – लगभग 60% एमएफआई इस बात से सहमत हैं कि भौगोलिक कारक दूर-दराज के क्षेत्रों के ग्राहकों के साथ संपर्क स्थापित करना कठिन बनाते हैं, जो संगठन के विकास  तथा विस्तार में समस्या उत्पन्न करता है।

सूक्ष्म वित्त संस्थानों के समाधान

  • एमएफआई को एक स्थायी तथा मापनीय (स्केलेबल) माइक्रोफाइनेंस प्रतिमान निर्मित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो कि आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण दोनों के बारे में स्पष्ट है।
  • एमएफआई को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ऋण का ‘कथित उद्देश्य’, जिसे प्रायः ऋण प्राप्त करने हेतु-आवेदन चरण में ग्राहकों से पूछा जाता है, ऋण की अवधि के अंत में सत्यापित किया जाता है।
  • आरबीआई को सभी संस्थानों को ‘सामाजिक प्रभाव स्कोरकार्ड’ के माध्यम से समाज पर उनके प्रभाव अनुसरण हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए।

 

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