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राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम, 2003

राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम, 2003: प्रासंगिकता

  • जीएस 3: सरकारी बजट।

एफआरबीएम एक्ट क्या है ?

  • राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम, 2003 मौद्रिक नीति प्रबंधन के प्रभावी संचालन में राजकोषीय बाधाओं को दूर करके राजकोषीय प्रबंधन एवं दीर्घकालिक समष्टि (मैक्रो)-आर्थिक स्थिरता में अंतर-पीढ़ीगत साम्यता (इक्विटी) सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार के उत्तरदायित्व का प्रावधान करने हेतु एक अधिनियम है।
  • अधिनियम सरकार के लिए अर्थव्यवस्था में वित्तीय अनुशासन स्थापित करने, सार्वजनिक धन प्रबंधन में सुधार एवं राजकोषीय घाटे को कम करने का लक्ष्य निर्धारित करता है।

 

राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम की आवश्यकता क्यों पड़ी?

  • 1990 और 2000 के दशक के प्रारंभ में, उधारियों का स्तर अत्यंत उच्च था। इसने उच्च राजकोषीय घाटा, उच्च राजस्व घाटा एवं उच्च ऋण-से-जीडीपी अनुपात को जन्म दिया था।
  • उच्च सरकारी उधारियां एवं परिणामी ऋण ने भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया था
  • इसके अतिरिक्त, उधार किसी भी पूंजी निर्माण की तुलना में ब्याज का भुगतान करने के निमित्त अधिक थे, जिसका अर्थ है कि हम ऋण के जाल में फंसने के कगार पर थे।
  • इन सभी कारणों से 2003 में राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम पारित किया गया।

 

राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम के उद्देश्य

  • एफआरबीएम अधिनियम का उद्देश्य भारत की वित्तीय प्रबंधन प्रणालियों में पारदर्शिता लाना है।
  • इसका उद्देश्य राजकोषीय अनुशासन, कुशल ऋण प्रबंधन एवं व्यापक आर्थिक स्थिरता लाना भी है।
  • अधिनियम का उद्देश्य राजकोषीय एवं मौद्रिक नीति के मध्य बेहतर समन्वय बनाए रखना भी है।
  • दीर्घकालीन दृष्टिकोण वर्षों से भारत के ऋण का अधिक न्यायसंगत वितरण प्रारंभ करना था।

 

संसद के समक्ष रखे जाने वाले राजकोषीय नीति विवरण

  • वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट) एवं अनुदान मांगों के साथ, केंद्र सरकार प्रत्येक वित्तीय वर्ष में संसद के दोनों सदनों के समक्ष राजकोषीय नीति के निम्नलिखित विवरण रखेगी:
    • मध्यावधि राजकोषीय नीति विवरण;
    • राजकोषीय नीति रणनीति विवरण;
    • व्यष्टि अर्थशास्त्रीय संरचना विवरण (मैक्रो-इकोनॉमिक फ्रेमवर्क स्टेटमेंट);
    • मध्यावधि व्यय रूपरेखा विवरण।

 

राजकोषीय संकेतक

  • सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटा;
  • सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में राजस्व घाटा;
  • सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में प्राथमिक घाटा;
  • सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में कर राजस्व;
  • सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में गैर-कर राजस्व; तथा
  • जीडीपी के प्रतिशत के रूप में केंद्र सरकार के ऋण।

 

आरंभिक एफआरबीएम लक्ष्य

  • इन निम्नलिखित लक्ष्यों को 2008-09 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था।
  • राजस्व घाटा (आरडी):- राजस्व घाटा को 2009 तक पूर्ण रूप से समाप्त कर देना चाहिए। न्यूनतम वार्षिक कटौती लक्ष्य जीडीपी का 5% था।
  • राजकोषीय घाटा (एफडी): 2009 तक राजकोषीय घाटा को जीडीपी के 3% तक कम किया जाना चाहिए। न्यूनतम वार्षिक कटौती लक्ष्य जीडीपी का 3% था।
  • आकस्मिक देयताएं – केंद्र सरकार 2004-05 से प्रारंभ होने वाले, किसी भी वित्तीय वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद के 5% से अधिक की वृद्धिशील प्रत्याभूति प्रदान नहीं करेगी।
  • अतिरिक्त देयताएं – अतिरिक्त देनदारियों को 2004-05 तक सकल घरेलू उत्पाद के 9% तक कम किया जाना चाहिए। बाद के प्रत्येक वर्ष में न्यूनतम वार्षिक कटौती लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद का 1% होना चाहिए।
  • आरबीआई द्वारा सरकारी ऋण पत्रों (बॉन्डों) की खरीद – 1 अप्रैल 2006 से समाप्त हो जाएगी। यह सरकार को आरबीआई से सीधे उधार नहीं लेने का संकेत देता है।
  • इन लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सका था। अतः, वित्तीय लक्ष्यों की प्राप्ति में शिथिलता प्रदान करने हेतु अधिनियम को पहले 2012 में एवं पुनः 2015 में संशोधित किया गया था।

 

एन. के. सिंह समिति की सिफारिशें

  • केंद्र सरकार का मानना ​​था कि लक्ष्य अत्यंत कठोर हैं।अतः, इसने एफआरबीएम अधिनियम की समीक्षा के लिए एन.के.सिंह के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया।
  • लक्ष्य: समिति ने राजकोषीय नीति के लिए प्राथमिक लक्ष्य के रूप में ऋण का उपयोग करने का सुझाव दिया एवं इस लक्ष्य को 2023 तक अवश्य प्राप्त किया जाना चाहिए।
  • वित्तीय परिषद: समिति ने केंद्र द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष एवं दो सदस्यों (नियुक्ति के समय सरकार के कर्मचारी नहीं) के साथ एक स्वायत्त वित्तीय परिषद निर्मित करने का प्रस्ताव रखा।
  • विचलन: समिति ने सुझाव दिया कि सरकार द्वारा एफआरबीएम अधिनियम के लक्ष्यों से विचलन का आधार स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया जाना चाहिए
  • उधारियां: समिति के सुझावों के अनुसार, सरकार को आरबीआई से उधार नहीं लेना चाहिए, सिवाय इसके कि जब…
    • केंद्र को प्राप्तियों में अस्थायी कमी को पूरा करना हो
    • आरबीआई किसी भी विचलन के वित्तपोषण के लिए सरकारी प्रतिभूतियों का अभिदान करता है
    • भारतीय रिजर्व बैंक द्वितीयक बाजार से सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करता है।

नवीनतम एफआरबीएम लक्ष्य

  • राजकोषीय घाटा: केंद्र सरकार 2021 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक सीमित करने के लिए उचित उपाय करेगी।
  • केंद्र सरकार यह भी सुनिश्चित करेगी कि सामान्य सरकारी ऋण 60% से अधिक न हो
  • केंद्र सरकार का ऋण वित्तीय वर्ष 2024-2025 के अंत तक सकल घरेलू उत्पाद का 40% से अधिक न हो
  • भारत की संचित निधि की प्रतिभूति पर किसी वित्तीय वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद के 5% से अधिक के किसी ऋण के संबंध में केंद्र सरकार कोई अतिरिक्त प्रत्याभूति प्रदान नहीं करती है।

एफआरबीएम निस्सरण उपनियम (एस्केप क्लॉज)

  • एफआरबीएम अधिनियम आपदा एवं राष्ट्रीय सुरक्षा की स्थितियों में एस्केप क्लॉज को लागू करने की भी अनुमति देता है। ऐसे में सरकार अपने वार्षिक राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से विचलित हो सकती है।
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