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ईडब्ल्यूएस कोटा

ईडब्ल्यूएस कोटा- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • सामान्य अध्ययन II- सरकारी नीतियां।

ईडब्ल्यूएस कोटा चर्चा में क्यों है?

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश यू. यू. ललित के नेतृत्व में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (इकोनॉमिकली वीकर सेक्शंस/ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% कोटा एवं मुसलमानों को आरक्षण देने वाले आंध्र प्रदेश कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

 

103वां संविधान संशोधन, 2019

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ 103वें संविधान संशोधन की वैधता पर विचार कर रही है।
  • उक्त संशोधन समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को सरकारी नौकरियों एवं शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण प्रदान करता है।
  • आर्थिक आरक्षण अनुच्छेद 15 एवं 16 में संशोधन करके तथा राज्य सरकारों को आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण प्रदान करने का अधिकार देने वाले खंडों को जोड़कर प्रारंभ किया गया था।

 

EWS कोटा: एक पृष्ठभूमि

  • 10% आरक्षण 103 वें संविधान संशोधन के माध्यम से प्रारंभ किया गया था एवं जनवरी 2019 में प्रवर्तित किया गया था।
  • इसने उन वर्गों के अतिरिक्त जो पूर्व से ही आरक्षण का लाभ प्राप्त कर रहे हैं, नागरिकों के मध्य  आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए विशेष प्रावधान प्रारंभ करने के लिए सरकार को सशक्त बनाने हेतु अनुच्छेद 15 में खंड (6) जोड़ा।
  • यह सार्वजनिक एवं निजी दोनों शैक्षणिक संस्थानों में, चाहे वह सहायता प्राप्त हो अथवा गैर-सहायता प्राप्त, अल्पसंख्यक संस्थानों द्वारा संचालित संस्थानों को छोड़कर, अधिकतम 10% तक आरक्षण की अनुमति देता है।
  • इसने रोजगार में आरक्षण की सुविधा के लिए अनुच्छेद 16 में खंड (6) भी जोड़ा।
  • नवीन खंड यह स्पष्ट करते हैं कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण वर्तमान आरक्षण के अतिरिक्त होंगे।

महत्व

  • संविधान ने प्रारंभ में केवल सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधानों की अनुमति दी थी।
  • सरकार ने उन लोगों के लिए सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रम के एक नए वर्ग के लिए ईडब्ल्यूएस की अवधारणा प्रस्तुत की, जो समुदाय-आधारित कोटा के अंतर्गत आच्छादित या पात्र नहीं हैं।

 

मानदंड के बारे में न्यायालय के क्या प्रश्न हैं?

  • सामान्य श्रेणी में कटौती: ईडब्ल्यूएस कोटा एक विवाद बना हुआ है क्योंकि इसके आलोचकों का कहना है कि यह कुल आरक्षण पर 50% की सीमा का उल्लंघन करने के अतिरिक्त, मुक्त श्रेणी के आकार को कम करता है।
  • आय सीमा को लेकर स्वेच्छाचारिता: आय सीमा प्रति वर्ष 8 लाख रुपए निर्धारित किए जाने से भी न्यायालय चिंतित है। ओबीसी आरक्षण के लाभों से ‘क्रीमी लेयर’ को बाहर करने के लिए भी यही आंकड़ा  उपयोग में है।
  • सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन: एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि सामान्य वर्ग के लोग, जिन पर ईडब्ल्यूएस कोटा लागू होता है, वे ओबीसी के रूप में वर्गीकृत लोगों के विपरीत सामाजिक अथवा शैक्षिक पिछड़ेपन से पीड़ित नहीं होते हैं।
  • महानगरीय मानदंड: अन्य प्रश्न हैं कि क्या अपवादों को प्राप्त करने के लिए कोई अभ्यास किया गया था जैसे कि एक समान मानदंड महानगरीय  एवं गैर-महानगरीय क्षेत्रों के मध्य अंतर क्यों नहीं करता है।
  • ओबीसी के समरूप मानदंड: न्यायालय ने जो प्रश्न किया है वह यह है कि जब ओबीसी वर्ग सामाजिक  एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा हुआ है तथा इसलिए उसे दूर करने के लिए अतिरिक्त बाधाएं हैं।
  • प्रासंगिक डेटा पर आधारित नहीं: सर्वोच्च न्यायालय की ज्ञात स्थिति के अनुरूप कि कोई भी आरक्षण या  अपवर्जन के मानदंड प्रासंगिक डेटा पर आधारित होने चाहिए।
  • आरक्षण की सीमा का उल्लंघन: इंदिरा साहनी के वाद में रेखांकित आरक्षण पर 50% की ऊपरी सीमा है। समानता को संतुलित करने का सिद्धांत आरक्षण को विहित करता है।

 

ईडब्ल्यूएस कोटा की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को अब दूसरे वर्ष लागू किया जा रहा है।
  • भर्ती परीक्षा परिणाम बताते हैं कि इस श्रेणी में ओबीसी की तुलना में कम कट-ऑफ अंक है, एक ऐसा बिंदु जिसने जाति के आधार पर आरक्षण के पारंपरिक लाभार्थियों को चिंतित किया है।
  • स्पष्टीकरण यह है कि वर्तमान में मात्र कुछ व्यक्ति ही ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत आवेदन कर रहे हैं – किसी को राजस्व अधिकारियों से आय प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा – एवं इसलिए कट-ऑफ कम है।
  • हालांकि, जब समय के साथ संख्या बढ़ती है, तो कट-ऑफ अंक के बढ़ने की संभावना है।

 

ईडब्ल्यूएस कोटा के साथ व्यावहारिक समस्याएं

ईडब्ल्यूएस कोटा शीघ्र ही न्यायिक जांच के दायरे में आएगा। किंतु यह केवल न्यायपालिका का मामला नहीं है, भारत की संसद को भी इस कानून पर पुनर्विचार करना चाहिए।

  • अविचारित कानून: यह कानून जल्दबाजी में पारित किया गया था। इसे 48 घंटे के भीतर दोनों सदनों में पारित कर दिया गया एवं अगले दिन राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो गई।
  • अल्पसंख्यक तुष्टीकरण: यह व्यापक रूप से तर्क दिया जाता है कि उच्च जाति समाज के एक निश्चित वर्ग को प्रसन्न करने एवं अल्पसंख्यक आरक्षण की मांगों को दबाने के लिए कानून पारित किया गया था।
  • नैतिकता पर प्रश्नचिह्न लगा: कल्पना कीजिए! लक्षित समूह के परामर्श के बिना कुछ घंटों के विचार-विमर्श के साथ एक संवैधानिक संशोधन किया गया है। यह निश्चित रूप से संवैधानिक नैतिकता एवं औचित्य के विरुद्ध है।
  • पर्याप्त समर्थन अनुपस्थित है: यह संशोधन गलत या असत्यापित आधार पर आधारित है। यह सबसे अच्छा एक अविवेचित अनुमान अथवा एक परिकलन है क्योंकि सरकार ने इस बात का समर्थन करने के लिए कोई डेटा तैयार नहीं किया है।
  • पिछड़े वर्गों का कम आरक्षण: यह दावा इस तथ्य पर आधारित है कि हमारे पास अनुसूचित जाति ( शेड्यूल्ड कास्ट/एससी),  अनुसूचित जनजाति (शेड्यूल्ड ट्राइब्स/एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग(अदर बैकवर्ड कास्ट/ओबीसी) के निम्न प्रतिनिधित्व को सिद्ध करने हेतु अलग-अलग आंकड़े हैं। इसका तात्पर्य है कि ‘उच्च’ जातियों का प्रतिनिधित्व अधिक है (100 प्रतिशत में से आरक्षण को घटाने के साथ)।
  • 10% का औचित्य: इस संबंध में एक अन्य समस्या है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों का कोटा उनकी कुल आबादी पर आधारित है। किंतु 10 प्रतिशत आरक्षण के औचित्य पर कभी चर्चा नहीं हुई।
  • समानता का सिद्धांत: आर्थिक पिछड़ापन काफी तरल परिचय है। इसका पिछड़ा वर्ग के ऐतिहासिक अन्याय एवं देनदारियों से कोई लेना-देना नहीं है।

 

आगे की राह

  • योग्यता का संरक्षण: हम अपने देश में योग्यता में बाधा डालने वाले आर्थिक पिछड़ेपन की दयनीय स्थिति से इंकार नहीं कर सकते।
  • तर्कसंगत मानदंड: आर्थिक न्याय की अवधारणा को आकार देने के लिए समाज के कुछ वर्गों की आर्थिक कमजोरी को परिभाषित करने एवं मापने के लिए सामूहिक अवबोध होना चाहिए।
  • न्यायिक मार्गदर्शन: न्यायिक व्याख्या ईडब्ल्यूएस कोटा के लिए मानदंड निर्धारित करने हेतुआगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करेगी।
  • लक्षित हितग्राही: इस आरक्षण प्रणाली के लक्षित लाभार्थियों का निर्धारण करने हेतु केंद्र को और अधिक तर्कसंगत मानदंडों का आश्रय लेने की आवश्यकता है। इस संबंध में जाति जनगणना के आंकड़े उपयोगी   सिद्ध हो सकते हैं।
  • आय का अध्ययन: प्रति व्यक्ति आय या सकल घरेलू उत्पाद अथवा ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में क्रय शक्ति में अंतर को ध्यान में रखा जाना चाहिए, जबकि संपूर्ण देश के लिए एक ही आय सीमा तैयार की गई थी।

 

निष्कर्ष

  • आरक्षण राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में समस्त नागरिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पिछड़े वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु एक संवैधानिक योजना है।
  • ऊपर चर्चा की गई अस्पष्टताओं के साथ ईडब्ल्यूएस कोटा आरक्षण के लिए संवैधानिक योजना का व्यवस्था भंजक है।

 

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