आगामी 75 वर्ष- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 1: भारतीय इतिहास- अठारहवीं शताब्दी के मध्य से लेकर वर्तमान तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्वपूर्ण घटनाएं, व्यक्तित्व, मुद्दे।
आगामी 75 वर्ष चर्चा में क्यों है?
- जैसा कि भारत स्वतंत्रता के 75 वर्ष का उत्सव मना रहा है, यह कल्पना करना उपयुक्त है कि आगामी 75 वर्ष क्या होंगे।
- क्या हमारा देश, राजनीति, बॉलीवुड एवं क्रिकेट के प्रति आसक्ति, आगामी 75 वर्षों को प्रत्येक नागरिक के लिए उच्च जीवन स्तर के साथ एक स्पृहणीय युग बनाने की आकांक्षा कर सकता है?
भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के साथ संबद्ध चिंताएं
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में अपर्याप्त निवेश: भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.7% अनुसंधान एवं विकास (रिसर्च एंड डेवलपमेंट/आर एंड डी) पर व्यय करता है।
- दूसरी ओर, इजराइल एवं दक्षिण कोरिया प्रमुख उदाहरण हैं जो अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को अनुसंधान एवं विकास पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 5% व्यय संचालित करते हैं।
- अक्षम कार्यान्वयन: यद्यपि वैज्ञानिकों को उनके संस्थानों के माध्यम से अनुसंधान अनुदान वितरित करने हेतु एक उचित रूप से सुपरिभाषित प्रणाली है, यह अक्षमताओं में फंस गया है।
- भारत में वैज्ञानिक समुदाय के समक्ष अन्य प्रमुख चुनौतियां:
- वित्तीयन एजेंसियों में अपर्याप्त स्टाफ,
- निधि वितरण में पारदर्शिता की कमी,
- एक कठोर अंतरराष्ट्रीय मानक समीक्षा एवं प्रतिक्रिया प्रक्रिया का अभाव,
- निधि संवितरण में अत्यधिक विलंब, तथा
- एक पुरानी मूल्यांकन प्रणाली।
आगामी 75 वर्ष – भारत को वैज्ञानिक शक्ति बनाना
भारत को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। आगामी 75 वर्षों में भारत को वैज्ञानिक महाशक्ति बनाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं-
- अनुसंधान एवं विकास बजट को देश के सकल घरेलू उत्पाद के 4% तक बढ़ाना: राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद का 4% अनुसंधान एवं विकास पर व्यय करना विज्ञान एवं नवाचार को संचालित करने हेतु आवश्यक है।
- यद्यपि, नवाचार हेतु विज्ञान के बजट में वृद्धि को उचित वृहद (मैक्रो)-स्तरीय नीतिगत परिवर्तनों से पहले होना चाहिए कि धन कैसे और कहाँ व्यय किया जाना चाहिए।
- इस वृद्धि का एक हिस्सा संपूर्ण देश में, विशेष रूप से विश्वविद्यालयों में भौतिक और बौद्धिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निर्धारित करने की आवश्यकता है।
- प्रथम श्रेणी की आधारिक अवसंरचना के साथ सुप्रशिक्षित, वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी संस्थागत प्रशासक और प्रक्रियाएं होनी चाहिए।
- भारत वैश्विक मंच पर तब तक प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता जब तक उसके विश्वविद्यालयों के हासोन्मुख बुनियादी ढांचे को उन्नत नहीं किया जाता।
- यह सुनिश्चित करना कि अलग-अलग संस्थान बड़े बजट को समायोजित करने हेतु प्रक्रियाओं को लागू करते हों: किसी भी नीतिगत परिवर्तन के प्रभावी होने से पूर्व, अलग-अलग संस्थानों को बड़े बजट को समायोजित करने के लिए प्रक्रियाओं को लागू करना चाहिए।
- इसके लिए संस्थानों में प्रक्रियाओं को मानकीकृत करने एवं कुछ वैश्विक समकक्षों से सर्वोत्तम पद्धतियों को ग्रहण करने की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिए, जब सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करती है, तो प्रत्येक अनुदान प्राप्त करने वाले संस्थान के पास प्रभावी अकादमिक-उद्योग सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए अपने वैज्ञानिकों के अनुरोधों को प्रबंधित करने हेतु आंतरिक प्रक्रियाएं होनी चाहिए।
- उद्योग से सर्वोत्तम पद्धतियों को लाना एवं क्रियान्वित करना तथा विदेशों में सर्वश्रेष्ठ संचालित विज्ञान अनुदान प्रशासन में से कुछ को लागू करना।
- संपूर्ण विश्व में पासपोर्ट सेवाओं को रूपांतरित करने में सूचना प्रौद्योगिकी प्रमुख, टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग की भागीदारी हमें आशा देती है।
- व्यक्तिगत उद्यमियों को प्रोत्साहित करना एवं विज्ञान को समाज से जोड़ना: यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लाभों को जन-जन तक पहुंचाने का समय है।
- व्यक्तिगत उद्यमियों को प्रोत्साहित करने एवं सुविधा प्रदान करने के अतिरिक्त ऐसा करने का कोई बेहतर तरीका नहीं है।
- अनेक सकारात्मक नीतिगत परिवर्तनों के साथ इस पर सरकार का ध्यान बढ़ा है।
- लैब टू लैंड इम्प्लीमेंटेशन: रचनात्मक विचारों के लिए हमारे विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाओं से बेहतर कोई पालना नहीं है।
- हमारे समाज के लिए नवोन्मेषी विचारों, उत्पादों एवं समाधानों को वातायन करने के लिए उद्यमियों के साथ प्रयोगशालाओं को जोड़ने हेतु एक सुदृढ़ प्रणाली की आवश्यकता है।
- ऐसा करने के लिए, विश्वविद्यालयों को वैज्ञानिकों को नवाचार करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए एवं विचारों को प्रयोगशालाओं से बाहर निकालने के लिए मानकीकृत प्रक्रियाएं स्थापित करनी चाहिए।
- भारत में उद्यमिता तभी सफल होगी जब उसे विचारों का एक वातायन एवं उन विचारों को हमारे विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाओं से बाहर निकालने की उदार प्रक्रिया का समर्थन प्राप्त होगा।
निष्कर्ष
- भारत को यह महसूस करना चाहिए कि युद्ध की आगामी पीढ़ी आर्थिक है, सैन्य नहीं एवं मात्र एक विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संचालित अर्थव्यवस्था ही हमें इसके लिए तैयार कर सकती है।