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कथक नृत्य | भारतीय शास्त्रीय नृत्य

कथक नृत्य- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता      

  • जीएस पेपर 1: भारतीय इतिहास- भारतीय संस्कृति प्राचीन से आधुनिक काल तक कला रूपों, साहित्य और वास्तुकला के प्रमुख पहलुओं को सम्मिलित करेगी।

कथक नृत्य- प्रसंग

  • प्रधानमंत्री ने महान कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने यह भी कहा कि उनका जाना संपूर्ण कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।

 

कथक नृत्य के बारे में

  • कथक नृत्य भारत के महत्वपूर्ण शास्त्रीय नृत्यों में से एक है। कहा जाता है कि कथक नृत्य कथाकारों द्वारा  प्रारंभ किया गया था।
  • कथाकार अथवा कहानीकार, वे लोग हैं जो व्यापक पैमाने पर महाकाव्यों, मिथकों एवं किंवदंतियों के वृतान्तों के आधार पर कहानियां सुनाते हैं।
  • लेडी लीला सोखी (मेनका) ने शास्त्रीय शैली को पुनर्जीवित किया। कुछ प्रमुख नर्तकों /नर्तकियों में बिरजू महाराज, सितारा देवी इत्यादि सम्मिलित हैं।

भरतनाट्यम- भारतीय शास्त्रीय नृत्य

कथक नृत्य- पृष्ठभूमि

  • कथक नृत्य संभवत: मौखिक परंपरा के रूप में आरंभ हुआ था। सस्वर पाठ को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए शायद बाद में मूक अभिनय एवं भाव भंगिमाओं को जोड़ा गया।
  • इस प्रकार अभिव्यंजक नृत्य का एक सरल रूप विकसित हुआ, जिसने उस नृत्य की उत्पत्ति की, जो बाद में कथक के रूप में विकसित हुआ, जैसा कि हम आज देखते हैं।

 

कथक नृत्य- कथक का विकास

  • भक्ति आंदोलन: वैष्णव पंथ जिसने 15वीं शताब्दी में उत्तर भारत को प्रभावित किया एवं उसके परिणामस्वरूप भक्ति आंदोलन ने कथक को प्रोत्साहन देने हेतु गीत एवं संगीत रूपों की एक संपूर्ण नवीन श्रृंखला में योगदान दिया।
    • राधा-कृष्ण की विषय वस्तु मीराबाई, सूरदास, नंददास एवं कृष्णदास की रचनाओं के साथ अत्यंत लोकप्रिय सिद्ध हुई।
  • मुगल प्रभाव: मुगलों के आगमन से इस नृत्य शैली को एक नई गति प्राप्त हुई।
    • मंदिर के प्रांगण से राजमहल के दरबार में पारगमन हुआ जिसके कारण प्रस्तुतिकरण में परिवर्तन आवश्यक हो गया।
    • हिंदू एवं मुस्लिम दोनों दरबारों में, कथक अत्यधिक शैलीबद्ध हो गया एवं इसे मनोरंजन का एक परिष्कृत रूप माना जाने लगा।
  • रासलीला का उदय: यह मुख्य रूप से ब्रज क्षेत्र (पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मथुरा) में विकसित हुआ था। यह स्वयं में संगीत, नृत्य एवं कथा को जोड़ती है।
  • वाजिद अली शाह का संरक्षण: उन्नीसवीं शताब्दी ने अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के संरक्षण में कथक का स्वर्ण युग देखा।
    • उन्होंने भाव, मनोदशा एवं भावनाओं की अभिव्यक्ति पर अपने सशक्त उच्चारण के साथ कथक नृत्य के लखनऊ घराने की स्थापना की।
    • जयपुर घराना अपनी लयकारी या लयबद्ध कला प्रवीणता के लिए जाना जाता है एवं बनारस घराना कथक नृत्य की एक अन्य प्रमुख विधा हैं।

 

कथक नृत्य- नृत्य का लय

  • शरीर का वजन समान रूप से क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर अक्ष के साथ बटा होता है।
  • पैरों का पूर्ण संपर्क प्रमुख महत्व का है जहां केवल पैर की अंगुली या पैर की एड़ी का उपयोग किया जाता है, उनका कार्य सीमित होता है।
  • शरीर के ऊपरी या निचले हिस्से में कोई विक्षेपण एवं तीव्र झुकाव अथवा वक्र का उपयोग नहीं होता है।
  • धड़ का लय रीढ़ की हड्डी या ऊपरी छाती एवं कमर के निचले हिस्से की मांसपेशियों के प्रहस्तन (मैनिपुलेशन) के स्थान पर कंधे की रेखा के परिवर्तन से उदित होती है।
  • मूल मुद्रा में, नर्तक सीधा खड़ा होता है, एक हाथ को सिर से ऊँचे स्तर पर रखता है और दूसरा हाथ कंधे के स्तर पर फैला हुआ होता है।
  • तकनीक का निर्माण कदमों के उपयोग (फुटवर्क) की एक जटिल प्रणाली के उपयोग द्वारा किया गया है।
  • शुद्ध नृत्य (नृत्) सर्वाधिक महत्वपूर्ण है जहां जटिल लयबद्ध प्रतिरूप पैरों के एक समान उपयोग के माध्यम से बनाए जाते हैं तथा नर्तक द्वारा पहनी जाने वाली नूपुर (घुंघरू) के स्वर को नियंत्रित करते हैं।

कथक नृत्य- प्रमुख विशेषताएं

  • भरतनाट्यम, ओडिसी एवं मणिपुरी की भांति, कथक भी लय की इकाइयों को मिलाकर अपने शुद्ध नृत्य तारतम्यता का निर्माण करता है।
  • तालों को अलग-अलग नामों टुकरा, तोरा, और पराना,से पुकारा जाता है। ये सभी उपयोग किए गए लयबद्ध  प्रतिरूप एवं नृत्य के साथ ताल वाद्य यंत्र की प्रकृति का संकेत देते हैं।
  • नर्तकी/नर्तकी उस क्रम से आरंभ करते हैं जिसे गर्दन, भौहें और कलाई के कोमल विसर्पी लयों (सॉफ्ट ग्लाइडिंग मूवमेंट्स) को प्रस्तुत किया जाता है।
  • इसके बाद पारंपरिक औपचारिक प्रवेश होता है जिसे आमद (प्रवेश) एवं सलामी (नमस्कार) के रूप में जाना जाता है।

 

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