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भारत का बढ़ता जल संकट

भारत का बढ़ता जल संकट- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • सामान्य अध्ययन III- संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण।

भारत का बढ़ता जल संकट- चर्चा में क्यों है?

  • 2022 की संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट ने नदियों, झीलों, जलभृतों एवं मानव निर्मित जलाशयों से स्वच्छ जल की निकासी में तीव्र वृद्धि, महत्वपूर्ण जल संकट तथा विश्व के विभिन्न भागों में अनुभव की जा रही    जल के अभाव पर वैश्विक चिंता व्यक्त की है।

 

संयुक्त राष्ट्र की विश्व जल विकास रिपोर्ट कौन प्रकाशित करता है?

  • संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट (वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट/WWDR) यूएन- वाटर की ओर से  यूनेस्को द्वारा प्रकाशित की जाती है तथा इसका प्रकाशन यूनेस्को विश्व जल मूल्यांकन कार्यक्रम (वर्ल्ड वाटर असेसमेंट प्रोग्राम/WWAP) द्वारा समन्वित किया जाता है।

 

भारत में जल संकट का स्तर क्या है?

  • वैश्विक सूखा जोखिम एवं जल संकट मानचित्र (2019): यह दर्शाता है कि भारत के प्रमुख हिस्से, विशेष रूप से पश्चिम, मध्य एवं प्रायद्वीपीय भारत के हिस्से जल की अत्यधिक कमी वाले क्षेत्र हैं तथा जल के अभाव का अनुभव करते हैं।
  • समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (2018): नीति आयोग द्वारा जारी किया गया सूचकांक यह दर्शाता है कि 600 मिलियन से अधिक लोग गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं।
  • भारत विश्व का सर्वाधिक वृहद भूजल निष्कर्षक देश है: कुल के 25 प्रतिशत हिस्से के निष्कर्षण के लिए उत्तरदायी है। हमारे 70 प्रतिशत जल स्रोत दूषित हैं तथा हमारी प्रमुख नदियाँ प्रदूषण के कारण समाप्त हो रही हैं।

 

भारत में जल का ग्रामीण से शहरी स्थानांतरण एक मुद्दा क्यों बनता जा रहा है?

  • बढ़ती शहरी जनसंख्या: 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में शहरी जनसंख्या कुल जनसंख्या का 34% है। यह अनुमान है कि विश्व शहरीकरण प्रत्याशा, 2018 के अनुसार भारत में शहरी जनसंख्या घटक 2030 तक 40%  के चिन्ह एवं 2050 तक 50% के चिन्ह को पार कर जाएगा।
  • शहरी क्षेत्रों में जल का उपयोग: शहरी क्षेत्रों में  जल के उपयोग में वृद्धि हो गई है क्योंकि अधिक से अधिक लोग शहरी क्षेत्रों में चले गए हैं। इन केंद्रों में प्रति व्यक्ति जल के उपयोग में वृद्धि हो रही है, जिसमें जीवन स्तर में सुधार के साथ वृद्धि होती रहेगी।
  • शहरी क्षेत्रों में जल स्रोतों का स्थानांतरण: जैसे-जैसे शहर बढ़ता है एवं जल प्रबंधन बुनियादी ढांचे का विकास होता है, निर्भरता भूजल से सतही जल में परिवर्तित होती जाती है। उदाहरण के लिए: अहमदाबाद में 1980 के दशक के मध्य तक 80% से अधिक जलापूर्ति भूजल स्रोतों से होती थी।
  • भूजल के इस तरह के अत्यधिक दोहन के कारण सीमित जलभृतों में भूजल स्तर की गहराई 67 मीटर तक पहुंच गई। शहर अब अपनी अधिकांश जलापूर्ति के लिए नर्मदा नहर पर निर्भर है।
  • जल स्रोतों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों पर शहरी क्षेत्रों की निर्भरता एवं जल पर ग्रामीण-शहरी विवाद: शहर  व्यापक स्तर पर जल की आपूर्ति के लिए ग्रामीण क्षेत्रों पर निर्भर हैं, जिसमें ग्रामीण-शहरी विवाद को प्रज्वलित करने की क्षमता है। उदाहरण के लिए: नागपुर एवं चेन्नई ग्रामीण-शहरी जल विवादों की समस्या का सामना करते हैं।

 

विवादों के लिए उत्तरदायी कारण

  • संसाधन का पथांतरण: ग्रामीण क्षेत्रों की कीमत पर शहरी क्षेत्रों में पानी पहुँचाया जाता है। शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक होने के कारण दैनिक उपयोग के लिए जल की आवश्यकता अत्यधिक है।
  • औद्योगिक उद्देश्यों के लिए जल की उच्च मांग: शहरी क्षेत्रों में  जल का व्यापक उपयोग उद्योगों में जल का अभाव उत्पन्न करने वाले उद्योगों में किया जाता है।
  • उच्च कृषि निर्भरता: ग्रामीण क्षेत्रों में जल का उपयोग मुख्य रूप से सिंचाई के लिए किया जाता है एवं कृषि पर अत्यधिक निर्भरता के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में जल अत्यंत आवश्यक है।
  • जल प्रदूषण: शहरों में, इस जल का अधिकांश हिस्सा दूषित जल के रूप में होता है, जिसकी बहुत कम  पुनर्प्राप्ति अथवा पुन: उपयोग होता है, जो अंततः जल प्रदूषण में योगदान देता है।
  • खराब शासन: वोट बैंक के लिए भूजल का राजनीतिकरण एवं जल विशेष क्षेत्रों का विषम वितरण। उदाहरण के लिए: आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना।

 

जलवायु परिवर्तन ग्रामीण-शहरी विवादों को बढ़ाता है

  • वर्षा पैटर्न को दुष्प्रभावित कर रहा है: जलवायु परिवर्तन उस क्षेत्र में वर्षा की मात्रा को दुष्प्रभावित करता है जो सतही जल एवं भूजल दोनों का प्रमुख स्रोत है।
  • सतही जल पर वाष्पीकरण की दर में वृद्धि: उच्च तापमान के कारण झीलों, नदियों, नहरों इत्यादि के सतही जल को उच्च वाष्पीकरण जल हानि का सामना करना पड़ता है।
  • ग्लेशियरों का पिघलना: हिमनद (ग्लेशियर) भारत की बारहमासी नदियों के स्रोत हैं। वैश्विक तापमान के कारण हिमनद पिघल रहे हैं और इसलिए नदियों की बारहमासी प्रकृति को दुष्प्रभावित कर रहे हैं।
  • बार-बार सूखा: यह भूजल पुनर्भरण प्रक्रिया एवं सतही जल के सूखने को प्रभावित करता है जिससे जल का अभाव उत्पन्न हो जाता है। यह ग्रामीण-शहरी संघर्ष को और तीव्र करता है।

 

आगे की राह

  • विकास, आधारिक अवसंरचना के निवेश, ग्रामीण-शहरी साझेदारी को बढ़ावा देने एवं जल प्रबंधन में एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने पर व्यापक चर्चा के साथ जल के पुनर्वितरण को जोड़ने के लिए एक प्रणाली परिप्रेक्ष्य एवं जलग्रहण स्तर आधारित दृष्टिकोण आवश्यक है।
  • सरकार अकेले जल संकट का प्रबंधन नहीं कर सकती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए व्यापक स्तर पर जनता सहित नागरिक समाज, निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता होगी।

 

निष्कर्ष

  • ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र एक ही भंडार, अर्थात देश के जल संसाधन से जल का उपयोग करते हैं। अतः, शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के हितों को सुरक्षित करके एक लाभकारी स्थिति के लिए प्रयास करना महत्वपूर्ण है। ऐसी लाभप्रद स्थिति को प्राप्त करने की कुंजी सुशासन है।

 

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manish

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