Home   »   Anaemia and Iron Fortification   »   Anaemia and Iron Fortification

एनीमिया एवं आयरन फोर्टिफिकेशन

रक्ताल्पता एवं लौह प्रबलीकरण- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

सामान्य अध्ययन II- स्वास्थ्य  एवं शिक्षा।

एनीमिया एवं आयरन फोर्टिफिकेशन_3.1

एनीमिया: चर्चा में क्यों है? 

  • हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे/एनएफएचएस -5) के आंकड़ों से ज्ञात होता है कि 2019-21 में महिलाओं में  रक्ताल्पता (एनीमिया) की दर 53 प्रतिशत से बढ़कर 57 प्रतिशत  एवं बच्चों में 58 प्रतिशत से बढ़कर 67 प्रतिशत हो गई।

 

एनीमिया: परिभाषा

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन/डब्ल्यूएचओ) एनीमिया को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित करता है जहां लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या अथवा उनमें हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम होती है। यह प्रतिरक्षा को जोखिम में डालता है तथा संज्ञानात्मक विकास में अवरोध उत्पन्न करता है।

 

एनीमिया: एक चिंता

  • एनीमिया के प्रतिकूल प्रभाव सभी आयु समूहों को दुष्प्रभावित करते हैं, बच्चों एवं किशोरों में अल्प शारीरिक  एवं संज्ञानात्मक विकास  तथा सतर्कता एवं सीखने तथा खेलने की निम्न क्षमता, उत्पादक नागरिकों के रूप में उनकी भविष्य की क्षमता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। 
  • किशोरियों में रक्ताल्पता (59.1 प्रतिशत) मातृ रक्ताल्पता में विकसित होता है एवं एक समुदाय में मातृ तथा शिशु मृत्यु दर एवं सामान्य रुग्णता तथा खराब स्वास्थ्य का एक प्रमुख कारण है।

 

एनीमिया: कारण 

  • असंतुलित आहार: मांस, मछली, अंडे तथा गहरे हरी पत्तेदार सब्जियों (डीजीएलएफ) जैसे लौह युक्त खाद्य समूहों की अपेक्षाकृत कम खपत के साथ अनाज केंद्रित आहार, एनीमिया के उच्च स्तर से जुड़ा हो सकता है। 
  • अंतर्निहित कारक: एनीमिया के उच्च स्तर को प्रायः जल एवं स्वच्छता की स्थिति की खराब गुणवत्ता जैसे अंतर्निहित कारकों से भी जोड़ा जाता है जो शरीर में लौह के अवशोषण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। 
  • लौह (आयरन) की कमी एक प्रमुख कारण है: ऐसा आहार जिसमें पर्याप्त मात्रा में आयरन, फोलिक एसिड  अथवा विटामिन बी 12 न हो, एनीमिया का एक सामान्य कारण बनता है। 
  • कुछ अन्य स्थितियां: इनसे एनीमिया हो सकता है जिसमें गर्भावस्था, अत्यधिक मासिक धर्म, रक्त विकार अथवा कैंसर, आनुवांशिक विकार तथा संक्रामक रोग सम्मिलित हैं।

 

भारत में एनीमिया

  • विटामिन का उपयुक्त मात्रा में सेवन ना करना: लौह की कमी एवं विटामिन बी 12 की कमी से एनीमिया, भारत में एनीमिया के दो सामान्य प्रकार हैं। 
  • उच्च जनसंख्या तथा पोषण की कमी: महिलाओं में, मासिक धर्म में आयरन की कमी तथा गर्भावस्था के दौरान बढ़ते भ्रूण की उच्च आयरन की मांग के कारण पुरुषों की तुलना में आयरन की कमी का प्रचलन अधिक है। 
  • अनाज पर अधिक बल: चावल एवं गेहूं पर अधिक निर्भरता के कारण आहार में बाजरा की कमी, हरी तथा पत्तेदार सब्जियों की अपर्याप्त खपत भारत में एनीमिया के उच्च प्रसार के कारण हो सकते हैं।

 

लौह प्रबलीकरण (आयरन फोर्टिफिकेशन) क्या है?

  • लौह की कमी को दूर करने के लिए संपूर्ण विश्व में भोजन का आयरन फोर्टिफिकेशन एक तरीका है। लौह प्रबलीकरण कार्यक्रमों में आमतौर पर गेहूं के आटे जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों का अनिवार्य, केंद्रीकृत सामूहिक प्रबलीकरण शामिल होता है।

 

लौह प्रबलीकरण: आवश्यकता

  • लौह हीनता रक्ताल्पता आयरन की कमी के कारण होता है। 
  • पर्याप्त आयरन के बिना, शरीर लाल रक्त कोशिकाओं में पर्याप्त पदार्थ का उत्पादन नहीं कर सकता है जो उन्हें ऑक्सीजन (हीमोग्लोबिन) ले जाने में सक्षम बनाता है। 
  • गर्भावस्था के दौरान गंभीर रक्ताल्पता से अपरिपक्व (समय से पूर्व) जन्म का खतरा बढ़ जाता है, जन्म के समय कम वजन वाला बच्चा एवं प्रसवोत्तर अवसाद होता है। कुछ अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि जन्म से तुरंत पहले या बाद में शिशु मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।

 

एनीमिया मुक्त भारत

  • इस योजना का उद्देश्य भारत में एनीमिया के प्रसार को कम करना है। 
  • यह आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से पांच वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को द्वि साप्ताहिक आयरन, फोलिक एसिड की पूरकता प्रदान करता है। 
  • साथ ही, यह बच्चों एवं किशोरों के लिए द्विवार्षिक कृमिहरण (डीवर्मिंग) प्रदान करता है। यह योजना एनीमिया के क्षेत्र में उन्नत अनुसंधान के लिए संस्थागत तंत्र की स्थापना भी करती है। 
  • यह एनीमिया के गैर-पौष्टिक कारणों पर भी ध्यान केंद्रित करता है।

 

एनीमिया: ध्यान देने योग्य क्षेत्र 

  • रोगनिरोधी आयरन एवं फोलिक एसिड अनुपूरण। 
  • वर्ष भर गहन व्यवहार परिवर्तन संचार अभियान (सॉलिड बॉडी, स्मार्ट माइंड)। 
  • शिशु तथा छोटे बच्चे को भोजन कराने की उचित विधि। 
  • स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों के दोहन पर ध्यान केंद्रित करते हुए आहार विविधता/मात्रा/आवृत्ति  एवं/ प्रबलीकृत खाद्य पदार्थों के माध्यम से आयरन युक्त भोजन के सेवन में वृद्धि। 
  • गर्भवती महिलाओं एवं विद्यालय जाने वाली बालिकाओं पर विशेष ध्यान देने के साथ डिजिटल तरीकों एवं देखभाल उपचार का उपयोग करके एनीमिया का परीक्षण तथा उपचार। 
  • सरकार द्वारा वित्त पोषित सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में आयरन और फोलिक एसिड प्रबलीकृत (फोर्टिफाइड) खाद्य पदार्थों का अनिवार्य प्रावधान।

 

एनीमिया: आगे की राह

  • भारत के पोषण कार्यक्रमों की आवधिक समीक्षा की जानी चाहिए। 
  • एकीकृत बाल विकास सेवा (इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज/आईसीडीएस), जिसे राष्ट्र के पोषण संबंधी कल्याण के संरक्षक के रूप में माना जाता है, को स्वयं का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए एवं महत्वपूर्ण  अंतःक्षेप अंतराल को वैचारिक तथा कार्यक्रमात्मक रूप से (प्रोग्रामेटिक) हल करना चाहिए तथा शीघ्रता से परिणाम प्रदान करने चाहिए। 
  • पोषण संबंधी कमी जिसे बड़ी चिंता का सूचक माना जाना चाहिए, को आमतौर पर नीति निर्माताओं  एवं विशेषज्ञों द्वारा उपेक्षित कर दिया जाता है। जब तक इस पर ध्यान नहीं दिया जाता, पोषण संबंधी संकेतकों में तेजी से सुधार नहीं हो सकता।

 

एनीमिया: निष्कर्ष

  • जब कोई व्यक्ति रक्ताल्पता पीड़ित (एनीमिक) होता है, तो उसकी रक्त कोशिकाओं की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम हो जाती है। इससे व्यक्ति की उत्पादकता कम हो जाती है जो बदले में देश की अर्थव्यवस्था को दुष्प्रभावित करती है। अतः, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एनीमिया को कवर करना अत्यंत आवश्यक है।

 

पेटेंट प्रणाली-समावेशी समृद्धि के लिए एक बाधा? भारतीय नौसेना ने ऑस्ट्रेलिया द्वारा आयोजित अभ्यास काकाडू में भाग लिया फीफा अंडर 17 महिला विश्व कप 2022 संपादकीय विश्लेषण- इंगेज विद कॉशन
शून्य अभियान राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (एनएचए) अनुमान (2018-19) भारत में क्रूड एवं तेल कंपनियों पर विंडफॉल टैक्स क्या है बहु संरेखण की भारत की वर्तमान नीति
अरत्तुपुझा वेलायुधा पनिकर सामाजिक कार्यकर्ता-लेखक अन्नाभाऊ साठे एशिया कप के विजेताओं की सूची आईपीईएफ का व्यापार स्तंभ

Sharing is caring!

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *