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सरकार सहकारी समिति अधिनियम में संशोधन क्यों कर रही है?

सहकारी समितियों की यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता

सहकारी समितियां: सहकारी समितियां जीएस पेपर 2 के निम्नलिखित खंड को कवर करती हैं: सरकारी नीतियां  एवं अंतः क्षेप, जीएस पेपर 3: वृद्धि एवं विकास, औद्योगिक विकास।

सहकारी समितियां चर्चा में क्यों हैं?

सहकारी समितियां चर्चा में हैं क्योंकि बहु राज्य सहकारी समितियां (मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज/MSCS) अधिनियम, 2002 में संशोधन करने वाला विधेयक 7 दिसंबर, 2022 को लोकसभा में पेश किया गया था।

 

बहु राज्य सहकारी समितियां क्या हैं?

  • अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस/आईसीए) के अनुसार, सहकारी समितियां सामान्य आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं को प्राप्त करने के लिए संयुक्त रूप से स्वामित्व वाले एवं उनके सदस्यों के लिए लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम हैं।
  • बहु-राज्य सहकारी समितियां ऐसी सोसायटियां होती हैं जिनका संचालन एक से अधिक राज्यों में होता है – उदाहरण के लिए, एक किसान उत्पादक संगठन जो कई राज्यों के किसानों से अनाज खरीदता है।
  • निदेशक मंडल सभी राज्यों से हैं, ये समूह सभी वित्त एवं प्रशासन को संचालित तथा नियंत्रित करते हैं।
  • भारत में लगभग 1,500 बहु राज्य सहकारी समितियां (MSCS) पंजीकृत हैं जिनमें सर्वाधिक संख्या महाराष्ट्र में है।

 

सहकारी क्षेत्र के साथ क्या मुद्दे हैं?

  • सहकारी समितियों का स्वतंत्र एवं स्वायत्त चरित्र उनके कार्यकरण में महत्वपूर्ण होना था। हालाँकि, एच.एस. इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आनंद (आईआरएमए) के प्रोफेसर शैलेंद्र ने 2021 के एक शोध पत्र में बताया है कि नियोजन प्रक्रिया में सहकारी समितियों को विकास के साधन के रूप में शामिल करने से क्षेत्र सत्ताधारी राजनीतिक दलों के समर्थकों को संरक्षण देने का एक अवसर बन गया है।
  • इसके अतिरिक्त, सहकारी समितियों की शेयर पूंजी में योगदान करने की राज्य सरकारों की नीति ने सरकारों को “सार्वजनिक हित के नाम पर” कानूनी रूप से स्वायत्त सहकारी समितियों के कामकाज में  प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने में सक्षम बनाया।
  • विशेष रूप से, राजनीतिक नियंत्रण के एक तंत्र के रूप में सहकारी समितियों की शक्ति महाराष्ट्र, केरल, गुजरात, कर्नाटक के कुछ हिस्सों, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में देखी जा सकती है।
  • संपूर्ण देश में सामूहिक संस्थाओं के संचालन को सुगम बनाने के लिए बहु राज्य सहकारी समितियों (एमएससीएस) का गठन किया गया था। इसके विपरीत, IRMA के शोधकर्ता इंद्रनील डे बताते हैं कि उनकी क्षमता के बावजूद, बहु राज्य सहकारी समितियों को विश्वास के संबंध में मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है, जो कि सहयोग का आधार है।
  • इसने बहु राज्य सहकारी समितियों को केंद्र के अनेक नियंत्रणों के अधीन ला दिया है। निगरानी एक सामूहिक संगठन में महत्वपूर्ण संस्थागत कार्यों में से एक है, किंतु यदि बहुत ऊपर से निगरानी की जाती है, तो यह जमीनी स्तर के विपरीत एक टॉप-डाउन दृष्टिकोण अपनाता है।

 

सहकारी समितियों के संबंध में कौन से संवैधानिक प्रावधान हैं?

  • संविधान (97वां संशोधन) अधिनियम, 2011 ने भारत में कार्यरत सहकारी समितियों के संबंध में भाग IX ए (नगरपालिकाओं) के शीघ्र पश्चात एक नया भाग IX बी समाविष्ट किया।
  • संविधान के भाग III के तहत अनुच्छेद 19 (1) (सी) में “संघों एवं समितियों” के पश्चात “सहकारिता” शब्द जोड़ा गया था।
  • यह समस्त नागरिकों को नागरिकों के मौलिक अधिकार का दर्जा प्रदान कर सहकारी समितियों का गठन करने में सक्षम बनाता है।
  • “सहकारी समितियों के प्रचार” के संबंध में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों (भाग IV) में एक नया अनुच्छेद 43 बी जोड़ा गया था।

 

वर्ष 2021 में सहकारी समितियों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय क्या था?

  • जुलाई, 2021 में, सर्वोच्च न्यायालय ने 97वें संशोधन अधिनियम, 2011 के कुछ प्रावधानों को निरस्त कर दिया।
  • इसने संघवाद को एक बड़ा वर्धन प्रदान किया क्योंकि संशोधन ने सहकारी समितियों पर राज्यों के अनन्य अधिकार को सीमित कर दिया।
  • भाग IX बी सहकारी समितियों को संचालित करने हेतु शर्तें निर्धारित करता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, भाग IX बी (अनुच्छेद 243 जेड एच से 243 जेड टी) ने अपने सहकारी क्षेत्र पर राज्य विधायिकाओं की “अनन्य विधायी शक्ति” को “महत्वपूर्ण एवं पर्याप्त रूप से प्रभावित” किया है।
  • साथ ही, 97वें संशोधन के प्रावधानों को संविधान द्वारा अपेक्षित राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थित किए बिना संसद द्वारा पारित किया गया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यों के पास विशेष रूप से उनके लिए आरक्षित विषयों पर विधान निर्मित करने की विशेष शक्ति है (सहकारिता राज्य सूची का एक भाग है)।
  • अनुच्छेद 368(2) के अनुसार 97वें संविधान संशोधन को कम से कम आधे राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता है।
  • चूंकि 97वें संशोधन के मामले में अनुसमर्थन नहीं किया गया था, यह इसे रद्द करने के लिए उत्तरदायी था।
  • इसने भाग IX बी के प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा जो बहु राज्य सहकारी समितियों (MSCS) से संबंधित हैं।
  • यह कहा गया है कि बहु राज्य सहकारी समितियों  के मामले में उद्देश्यों को एक राज्य तक सीमित नहीं किया गया है, विधायी शक्ति भारत संघ की होगी।

 

सरकार सहकारी समिति अधिनियम में संशोधन क्यों करना चाहती है?

  • बहु राज्य सहकारी  समितियां अधिनियम (मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसाइटीज़ एक्ट, 2002) में “खामियों” को दूर करने के लिए केंद्र ने अधिक “पारदर्शिता” एवं “व्यापारिक सुगमता” के लिए कानून में संशोधन करने के लिए एक विधेयक पेश किया।
  • शासन में सुधार, चुनावी प्रक्रिया में सुधार, निगरानी तंत्र को मजबूत करने एवं पारदर्शिता तथा जवाबदेही में वृद्धि करने हेतु संशोधन पेश किए गए हैं।
  • यह विधेयक बहु-राज्य सहकारी समितियों में धन जुटाने को सक्षम करने के अतिरिक्त, बोर्ड की संरचना में सुधार करने एवं वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करने का भी प्रयास करता है।

महत्वपूर्ण परिवर्तन क्या होंगे?

  • विधेयक बहु राज्य सहकारी समितियों के चुनावी कार्यों की निगरानी के लिए एक केंद्रीय सहकारी चुनाव प्राधिकरण के निर्माण का प्रावधान करता है।
  • प्राधिकरण में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं केंद्र द्वारा नियुक्त अधिकतम तीन सदस्य होंगे।
  • यह रुग्ण बहु ​​राज्य सहकारी समितियों के पुनरुद्धार के लिए एक सहकारी पुनर्वास, पुनर्निर्माण एवं विकास निधि के निर्माण की भी परिकल्पना करता है।
  • इस निधि को मौजूदा लाभदायक बहु राज्य सहकारी समितियों द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा, जिन्हें या तो 1 करोड़ रुपए या शुद्ध लाभ का 1% इस निधि में जमा करना होगा।
  • बहु-राज्य सहकारी समितियों के शासन को और अधिक लोकतांत्रिक बनाने के लिए, विधेयक में एक सहकारी सूचना अधिकारी एवं एक सहकारी लोकपाल नियुक्त करने का प्रावधान है।
  • इक्विटी को बढ़ावा देने एवं समावेशिता को सुविधाजनक बनाने के लिए, बहु-राज्य सहकारी समितियों के बोर्डों में महिलाओं एवं अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों के प्रतिनिधित्व से संबंधित प्रावधानों को भी शामिल किया गया है।

 

आगे क्या?

1991 में, योजना आयोग की चौधरी ब्रह्म प्रकाश समिति ने बहु राज्य सहकारी समितियों के पुनर्गठन के लिए दूरगामी सिफारिशें कीं, किंतु रिपोर्ट के अनुसार अधिनियम को संशोधित नहीं किया गया है। अतः, वर्तमान समय की आवश्यकता के अनुसार अधिनियम को पुनश्चर्या करने का उच्च समय है।

 

सहकारी समिति अधिनियम के संदर्भ में प्रायः पूछे गए प्रश्न

प्र.1 कौन सा संवैधानिक संशोधन अधिनियम भारत में सहकारी समितियों से संबंधित है?

उत्तर. संविधान (97वां संशोधन) अधिनियम, 2011 ने भारत में कार्यरत सहकारी समितियों के संबंध में भाग IX ए (नगरपालिकाओं) के शीघ्र पश्चात एक नया भाग IX बी समाविष्ट किया।

प्र.2 बहु-राज्य सहकारी समितियां (एमएससीएस) कौन से हैं?

उत्तर. बहु-राज्य सहकारी समितियां ऐसी सोसायटियां होती हैं जिनका संचालन एक से अधिक राज्यों में होता है – उदाहरण के लिए, एक किसान उत्पादक संगठन जो कई राज्यों के किसानों से अनाज खरीदता है।

प्र.3 क्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 मेंसहकारिताशब्द का कोई उल्लेख है?

उत्तर. संविधान के भाग III के तहत अनुच्छेद 19 (1) (सी) में “संघों एवं समितियों” के पश्चात “सहकारिता” शब्द जोड़ा गया था।

 

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