Categories: हिंदी

संपादकीय विश्लेषण- हार्ड ट्रुथ्स अबाउट इंडियाज लेबर रिफॉर्म्स

भारत के श्रम सुधारों के बारे में कठोर सत्य- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • सामान्य अध्ययन III- भारतीय अर्थव्यवस्था एवं आयोजना, संसाधनों का अभिनियोजन, वृद्धि, विकास एवं रोजगार से संबंधित मुद्दे।

प्रसंग

  • स्वतंत्र भारत का जन्म 75 वर्ष पूर्व 15 अगस्त 1947 की अर्धरात्रि को हुआ था, जब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश का तिरंगा झंडा फहराया था एवं संसद में घोषणा की थी कि भारत ने “भाग्य के साथ एक मिलन” (ट्रिस्ट विद डेस्टिनी) किया है।
  • महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता के लिए एक लंबे, उल्लेखनीय शांतिपूर्ण संघर्ष के बाद भारत ने अपनी स्वतंत्रता हासिल की थी।
  • गांधी जी का दृष्टिकोण- गांधी जी के पास एक ऐसे देश की दृष्टि थी जो धार्मिक एवं सांप्रदायिक दीवारों से टुकड़ों में विभाजित न हो। उन्होंने एक ऐसे देश की कल्पना की, जिसमें सभी भारतीय, चाहे वह अमीर हो या गरीब, अपने सिर को शान से ऊंचा रखेंगे। भारत का “भाग्य के साथ मिलन” अपने समस्त नागरिकों को “पूर्ण स्वराज” (अर्थात पूर्ण स्वतंत्रता): राजनीतिक स्वतंत्रता, सामाजिक स्वतंत्रता एवं आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना था।

 

देश की खामियां

  • भारत में राजनीतिक स्वतंत्रता एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा रहा है। जातियों के मध्य सामाजिक समानता हासिल नहीं की गई है।
  • भारत के गांवों में निचली जाति के नागरिक अत्यधिक अपमान में जीवन जी रहे हैं एवं निचली जाति की  निर्धन महिलाएं घोर गरीबी में जीवन व्यतीत कर रही हैं। वे ग्रह पर सर्वाधिक उत्पीड़ित मनुष्यों में से हैं।
  • जबकि कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय अरबपतियों की संख्या में वृद्धि हुई, करोड़ों भारतीयों ने अपनी आय खो दी जब देश में महामारी के दौरान लॉक डाउन हो गया तथा अपने परिवारों के लिए आश्रय, भोजन एवं यहां तक ​​​​कि पीने के पानी को खोजने के लिए संघर्ष किया।
  • भारत की सर्वाधिक गंभीर सामाजिक-आर्थिक समस्या वह कठिनाई है जो अधिकांश नागरिकों को अच्छी आजीविका अर्जित करने जिसमें न केवल रोजगार सम्मिलित है बल्कि रोजगार की अपर्याप्त गुणवत्ता: अपर्याप्त एवं अनिश्चित आय तथा कार्य की अपर्याप्त दशाएं, जहां भी वे कार्यरत हैं – कारखानों में, खेतों, सेवा प्रतिष्ठानों अथवा घरों में होती है।

 

श्रम सुधार- प्रभाव

  • वी.वी. गिरि राष्ट्रीय श्रम संस्थान की अंतरिम रिपोर्ट, “राज्यों द्वारा किए गए श्रम सुधारों का प्रभाव आकलन अध्ययन”, (इंपैक्ट असेसमेंट स्टडी ऑफ लेबर रिफॉर्म्स अंडरटेकन बाय द स्टेट्स) अब तक के सुधारों के प्रभावों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
  • रिपोर्ट 2004-05 से 2018-19 की अवधि तक विस्तृत है। यह छह राज्यों: राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, झारखंड एवं उत्तर प्रदेश पर केंद्रित है जिन्होंने सुधारों को लागू किया है।
  • रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि श्रम कानून व्यावसायिक निवेश निर्णयों को प्रभावित करने वाले मात्र एक कारक हैं। निवेशक सिर्फ इसलिए लोगों को नौकरी पर रखने हेतु विशेष प्रयास नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें निकालना आसान हो गया है। एक उद्यम के पास अपने उत्पादों के लिए एक बढ़ता हुआ बाजार होना चाहिए एवं बाजार के उत्पादन के लिए अनेक वस्तुओं- पूंजी, मशीनरी, सामग्री, भूमि,  इत्यादि ना कि केवल श्रम को एक साथ जोड़ा जाना चाहिए । इसलिए, निकाले जाने से पूर्व अधिक लोगों को रोजगार देना सार्थक होना चाहिए।

स्पष्ट तस्वीर

  • श्रम कानूनों में सुधारों का बड़े उद्यमों में रोजगार बढ़ाने पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रम सुधारों के प्रभावों को त्वरित प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है: इसमें समय लगेगा।
  • 2010-11 से 2014-15 (वह अवधि जब प्रशासनिक सुधारों पर बल दिया गया था) के मध्य 300 से अधिक लोगों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठानों में रोजगार की हिस्सेदारी 51.1% से बढ़कर 55.3% हो गई एवं फिर वृद्धि कम हो कर 55.3% से 56.3% हो गई, 2017-18 में, जब कुछ राज्यों ने नियोक्ताओं के लिए साहसिक सुधारों को अनुकूल बनाया। यद्यपि समग्र रोजगार अनेक कारकों से प्रभावित होता है, 2014 के बाद के साहसिक सुधार बड़े कारखानों को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन किए गए थे।
  • रिपोर्ट कहती है, औपचारिक उद्यमों में रोजगार अधिक अनौपचारिक होता जा रहा है। बड़े निवेशक अधिक पूंजी का उपयोग कर सकते हैं एवं अल्पकालिक अनुबंधों पर लोगों की बढ़ती संख्या को भी रोजगार  प्रदान कर रहे हैं, जबकि कानूनों में अधिक शिथिलता की मांग कर रहे हैं।
  • रिपोर्ट “औपचारिक” रोजगार को सवैतनिक अवकाश, एक लिखित अनुबंध एवं कतिपयसामाजिक सुरक्षाके अनुदान के रूप में परिभाषित करती है। इन लाभों को प्रदान करने से पूर्व एक उद्यम को 300 से अधिक लोगों को रोजगार नहीं देना चाहिए।
  • सुनवाई के अधिकार एवं कार्य पर गरिमा के साथ, ये न्यूनतम ” अनिवार्यताएं” हैं, जिन्हें सभी नियोक्ताओं को उन सभी को प्रदान करना चाहिए जो उनके लिए कार्य करते हैं, चाहे वे छोटे उद्यमों में हों अथवा घरेलू  कार्यों में।
  • कानूनों की सीमा में वृद्धि करने से छोटे उद्यमों में श्रमिकों के संघ तथा प्रतिनिधित्व के अधिकार कम हो जाते हैं।

 

राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी) मशीनीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई (नमस्ते) योजना प्रशासनिक सुधारों पर क्षेत्रीय सम्मेलन 2022 उड़ान योजना- विगत पांच वर्षों में प्रदर्शन
पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (टीकेडीएल) संपादकीय विश्लेषण- मूविंग पॉलिसी अवे  फ्रॉम पापुलेशन कंट्रोल आवश्यक वस्तु अधिनियम संपादकीय विश्लेषण- द कमिंग 75 इयर्स
मंथन प्लेटफॉर्म विमोचित पालन ​​1000 राष्ट्रीय अभियान एवं पेरेंटिंग ऐप इथेनॉल सम्मिश्रण को समझना बाल आधार पहल
manish

Recent Posts

UPSC Prelims Answer Key 2024 For GS and CSAT

The UPSC Prelims Exam was held on June 16th,  2024 in two shifts. The first…

3 hours ago

UKPSC Syllabus 2024 and Exam Pattern PDF for Prelims and Mains

The Uttarakhand Public Service Commission (UKPSC) has released an updated UKPSC Syllabus along with the…

3 hours ago

MPPSC Prelims Admit Card 2024 Out, Download Hall Ticket

The MPPSC Prelims Admit Card 2024 was released by the Madhya Pradesh Public Service Commission…

4 hours ago

UPSC CSAT Answer Key 2024, Download GS Paper 2 Answer Key PDF

The UPSC won't release the official CSAT Answer Key 2024 until the entire recruitment process…

5 hours ago

UPSC Prelims 2024 Question Paper, Download GS and CSAT PDF

UPSC 2024 Question Paper- The UPSC successfully conducted both shifts of the UPSC Prelims Exam.…

5 hours ago

UPSC Notification 2024 Out, Check Mains Exam Date

Union Public Service Commission conducts civil services examination year which is announced on their official…

6 hours ago