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सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर

सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • सामान्य अध्ययन II- संघवाद।

सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर चर्चा में क्यों है?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब राज्य से आश्वासन प्राप्त किया कि वह इस माह के भीतर सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के निर्माण पर चर्चा करने के लिए हरियाणा समकक्ष से मुलाकात करेगा, जो दो दशकों से खराब है।

 

सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के बारे में

  • सतलुज यमुना लिंक नहर या इसे लोकप्रिय रूप रूप से एसवाईएल नाम से जाना जाता है, सतलुज एवं यमुना नदियों को जोड़ने के लिए भारत में 214 किलोमीटर लंबी एक निर्माणाधीन नहर है।

 

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • पंजाब के नहर के हिस्से के निर्माण के कारण 1980 के दशक में आतंकवादी हमले हुए थे।
  • यह मुद्दा पंजाब में उत्तरवर्ती सरकारों के लिए एक राजनीतिक कांटा भी रहा था, इतना ही कि इसने 2004 के विवादास्पद पंजाब टर्मिनेशन ऑफ वॉटर एग्रीमेंट्स एक्ट के राज्य के एकपक्षीय अधिनियमन को जन्म दिया।
  • यद्यपि, इस कानून को 2016 में एक संविधान पीठ ने खारिज कर दिया था, जिसने पंजाब के किसानों की एसवाईएल नहर परियोजना के लिए अधिग्रहित भूमि को पुनः प्राप्त करने की संभावनाओं को आघात पहुंचाया था।

 

एसवाईएल नहर का मुद्दा

  • पुनर्गठन से पूर्व, 1955 में, रावी एवं ब्यास के 15.85 एमएएफ में से, केंद्र ने राजस्थान को 8 एमएएफ, अविभाजित पंजाब को 7.20 एमएएफ, जम्मू एवं कश्मीर को 0.65 एमएएफ आवंटित किया था।
  • आवंटित 7.20 एमएएफ में से, पंजाब हरियाणा के साथ कोई जल साझा नहीं करना चाहता था एवं इस प्रकार 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के समय, दोनों राज्यों के मध्य नदी के जल के बंटवारे का मुद्दा सामने आया।
  • पंजाब ने रावी एवं ब्यास के जल को हरियाणा के साथ साझा करने से इनकार करते हुए कहा कि यह नदी तटीय (रिपेरियन) सिद्धांत के विरुद्ध है।
  • मार्च 1976 में, जब पंजाब पुनर्गठन अधिनियम लागू किया गया था, केंद्र ने हरियाणा को 3.5 एमएएफ प्रदान करते हुए नए आवंटन को अधिसूचित किया।
  • बाद में, 1981 में, ब्यास एवं रावी में प्रवाहित होने वाले जल को संशोधित किया गया एवं 17.17 एमएएफ आकलित किया गया, जिसमें से 4.22 एमएएफ पंजाब को, 3.5 एमएएफ हरियाणा को एवं 8.6 एमएएफ राजस्थान को आवंटित किया गया था।
  • अंत में, हरियाणा के दक्षिणी हिस्सों को जल के इस आवंटित हिस्से को प्रदान करने के लिए, सतलुज को यमुना से जोड़ने वाली एक नहर, राज्य के बीच से काटकर निर्मित करने की योजना निर्मित की गई थी।
  • अंत में, 214 किलोमीटर एसवाईएल का निर्माण अप्रैल 1982 में प्रारंभ किया गया था, जिसमें से 122 किलोमीटर पंजाब तथा शेष हरियाणा के माध्यम से प्रवाहित होना था।
  • हरियाणा ने नहर के अपने हिस्से को पूरा कर लिया है, लेकिन पंजाब में कार्य तीन दशकों से अधिक समय से लंबित है।

 

सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पंजाब एवं हरियाणा के मुख्यमंत्रियों को एसवाईएल नहर के मुद्दे पर समझौता करने  एवं निपटाने का निर्देश देने के बाद यह मुद्दा पुनः महत्वपूर्ण बिंदु पर आ गया है।
  • शीर्ष न्यायालय ने केंद्र द्वारा मध्यस्थता करने के लिए उच्चतम राजनीतिक स्तर पर बैठक करने को कहा ताकि राज्य एसवाईएल नहर के पूरा होने पर आम सहमति तक पहुंच सकें।
  • बैठक बेनतीजा रही एवं केंद्र ने यह विचार व्यक्त किया कि एसवाईएल नहर का निर्माण पूरा किया जाना चाहिए। किंतु पंजाब के मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रुप से इनकार कर दिया।

 

परियोजना से पंजाब की नाराजगी

  • यह विवाद एसवाईएल नहर के आसपास के रक्त रंजित इतिहास पर आधारित है। पंजाब में आतंकवाद के संकटग्रस्त दिनों की शुरुआत 1980 के दशक के प्रारंभ में हुई जब एसवाईएल पर काम शुरू हुआ।
  • पंजाब को प्रतीत होता है कि उसने अपने बहुमूल्य भूजल संसाधनों का उपयोग संपूर्ण देश में फसल  के उत्पादन हेतु किया एवं उसे स्वयं के जल को साझा करने हेतु बाध्य नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह मरुस्थलीकरण का सामना कर रहा है।
  • आशंका व्यक्त की जा रही है कि नहर का निर्माण पुनः प्रारंभ होते ही युवाओं को लगने लगेगा कि राज्य के साथ भेदभाव किया गया है।
  • पंजाब के मुख्यमंत्री को भय है कि पाकिस्तान एवं अलगाववादी संगठन इसका फायदा उठा सकते हैं तथा राज्य में संकट उत्पन्न कर सकते हैं।

 

पंजाब में जल संकट

  • गेहूं/धान एकचक्री (मोनोसाइकिल) के लिए अपने भूमिगत जलभृतों के अत्यधिक दोहन के कारण पंजाब गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है।
  • केंद्रीय भूमिगत जल प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के लगभग 79 प्रतिशत क्षेत्र में कृषि आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इसके भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन किया जाता है।
  • 138 ब्लॉकों में से 109 “अति-शोषित” हैं, दो “गंभीर” हैं, पांच “अर्ध-गंभीर” हैं तथा मात्र 22 ब्लॉक “सुरक्षित” श्रेणी में हैं।

 

पंजाब को नए न्यायाधिकरण की उम्मीद

  • राज्य जल की उपलब्धता के नए समयबद्ध मूल्यांकन की मांग करने वाले एक न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) की अपेक्षा करता है।
  • राज्य कहता रहा है कि आज तक पंजाब नदी के जल का कोई अधिनिर्णयन अथवा वैज्ञानिक मूल्यांकन नहीं हुआ है।

 

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