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15वां वित्त आयोग

15वां वित्त आयोग: प्रासंगिकता

  • जीएस 3: भारतीय अर्थव्यवस्था एवं आयोजना, संसाधनों का अभिनियोजन, वृद्धि, विकास एवं रोजगार से संबंधित मुद्दे।

15वें वित्त आयोग के बारे में

  • श्री एन. के. सिंह की अध्यक्षता में 15वें वित्त आयोग को दो रिपोर्ट प्रस्तुत करने की अपेक्षा थी।
  • वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए सिफारिशों वाली प्रथम रिपोर्ट फरवरी 2020 में संसद में प्रस्तुत की गई थी।
  • 2021-26 की अवधि हेतु सिफारिशों वाली अंतिम रिपोर्ट 1 फरवरी, 2021 को संसद में प्रस्तुत की गई थी।

 

15वां वित्त आयोग: प्रमुख सिफारिशें

केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी

  • 2021-26 की अवधि के लिए केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 41% होने की अनुशंसा की गई है, जो 2020-21 के लिए समान है।
  • यह 14वें वित्त आयोग द्वारा 2015-20 की अवधि के लिए अनुशंसित 42% हिस्सेदारी से कम है।
  • 1% का समायोजन केंद्र के संसाधनों से जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के नवगठित केंद्र शासित प्रदेशों हेतु भरण पोषणप्रदान करना है।

 

हस्तांतरण के लिए मानदंड

मानदंड 14वां वित्त आयोग

2015-20

15वां वित्त आयोग

2020-21

15वां वित्त आयोग

2021-26

आय का अंतर 50.0 45.0 45.0
क्षेत्र 15.0 15.0 15.0
जनसंख्या (1971) 17.5
जनसंख्या (2011) 10.0 15.0 15.0
जनसांख्यिकीय प्रदर्शन 12.5 12.5
वनावरण 7.5
वन एवं पारिस्थितिकी 10.0 10.0
कर एवं वित्तीय प्रयास 2.5 2.5
कुल 100 100 100

 

15वां वित्त आयोग: मुख्य प्रावधान

  • आय का अंतर: आय का अंतर उच्चतम आय वाले राज्य से राज्य के आय का अंतर है। एक राज्य की आय की गणना 2016-17 और 2018-19 के मध्य तीन वर्ष की अवधि के दौरान औसत प्रति व्यक्ति जीएसडीपी के रूप में की गई है। निम्न प्रति व्यक्ति आय वाले राज्य के पास राज्यों के मध्य साम्यता बनाए रखने के लिए उच्च हिस्सेदारी होगी।
  • जनसांख्यिकीय प्रदर्शन: आयोग के संदर्भ की शर्तों के अनुसार सिफारिशें करते समय 2011 के जनसंख्या के आंकड़ों का उपयोग करना आवश्यक था। तदनुसार, आयोग ने अपनी सिफारिशों के लिए 2011 के जनसंख्या आंकड़ों का उपयोग किया। जनसांख्यिकीय प्रदर्शन मानदंड का उपयोग राज्यों द्वारा अपनी जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए किए गए प्रयासों को पुरस्कृत करने हेतु किया गया है। कम प्रजनन अनुपात वाले राज्यों को इस मानदंड पर उच्च अंक प्राप्त होंगे।
  • वन एवं पारिस्थितिकी: सभी राज्यों के कुल सघन वनों में प्रत्येक राज्य के सघन वन के हिस्से की गणना करके यह मानदंड निकाला गया है।
  • कर एवं राजकोषीय प्रयास: इस मानदंड का उपयोग उच्च कर संग्रह दक्षता वाले राज्यों को पुरस्कृत करने के लिए किया गया है। इसे 2016-17 एवं 2018-19 के मध्य तीन वर्षों के दौरान औसत प्रति व्यक्ति स्वयं के कर राजस्व एवं औसत प्रति व्यक्ति राज्य जीडीपी के अनुपात के रूप में मापा जाता है।

 

15वां वित्त आयोग: अनुदान

  • क्षेत्र-विशिष्ट अनुदान: राज्यों को आठ क्षेत्रों के लिए 3 लाख करोड़ रुपये का क्षेत्र-विशिष्ट अनुदान प्रदान किया जाएगा: (i) स्वास्थ्य, (ii) विद्यालयी शिक्षा, (iii) उच्च शिक्षा, (iv) कृषि सुधारों का कार्यान्वयन, (v) ) पीएमजीएसवाई सड़कों का रखरखाव, (vi) न्यायपालिका, (vii) सांख्यिकी, एवं (viii) आकांक्षी जिले एवं प्रखंड। इन अनुदानों का एक हिस्सा निष्पादन से संबंधित होगा।
  • आपदा जोखिम प्रबंधन: आयोग ने आपदा प्रबंधन कोष के लिए केंद्र एवं राज्यों के मध्य वर्तमान लागत-साझाकरण प्रतिरूप को बनाए रखने की सिफारिश की। केंद्र एवं राज्यों के मध्य लागत-साझाकरण प्रतिरूप: (i) उत्तर-पूर्वी एवं हिमालयी राज्यों के लिए 90:10, एवं (ii) अन्य सभी राज्यों के लिए 75:25 है।

 

15वां वित्त आयोग: राजकोषीय रोडमैप

  • राजकोषीय घाटा एवं ऋण स्तर:
    • आयोग ने सुझाव दिया कि केंद्र 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4% तक कम करे।
    • राज्यों के लिए, इसने राजकोषीय घाटे की सीमा की सिफारिश की: (i) 2021-22 में 4%, (ii) 2022-23 में 5%, एवं (iii) 2023-26 के दौरान 3%’।
    • पहले चार वर्षों (2021-25) के दौरान राज्यों को जीएसडीपी के 5% की अतिरिक्त वार्षिक ऋण की अनुमति प्रदान की जाएगी, जिसमें ऊर्जा क्षेत्र में सुधार में सम्मिलित हैं: (i) परिचालन घाटे में कमी, (ii) राजस्व अंतराल में कमी, (iii) प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण को अपनाकर नकद सब्सिडी के भुगतान  में कमी, एवं (iv) राजस्व के प्रतिशत के रूप में प्रशुल्क सहायिकी में कमी।
    • आयोग ने अवलोकन किया कि केंद्र एवं राज्यों हेतु राजकोषीय घाटे के लिए अनुशंसित मार्ग के परिणामस्वरूप निम्नलिखित के कुल देनदारियों में कमी आएगी: (i) केंद्र की कुल देनदारियों को 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद के 9% से घटाकर 2025-26 में 56.6% कर दिया जाएगा, एवं (ii) राज्यों की कुल देनदारियों में 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद के 33.1% से 2025-26 तक 32.5% की कमी आएगी।
  • इसने निम्नलिखित के लिए एक उच्च-अधिकार प्राप्त अंतर-सरकारी समूह बनाने की सिफारिश की: (i) राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम) की समीक्षा, (ii) केंद्र एवं राज्यों के लिए एक नए एफआरबीएम ढांचे की सिफारिश करने एवं इसके कार्यान्वयन की निगरानी करने हेतु।
  • राजस्व का अभिनियोजन: वेतनभोगी आय पर आयकर पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने हेतु कर कटौती एवं स्रोत पर संग्रह (टीडीएस/टीसीएस) से संबंधित प्रावधानों का विस्तार किया जाना चाहिए।
  • जीएसटी: जीएसटी में वर्तमान मध्यवर्ती आगत एवं अंतिम निर्गत के मध्य प्रतिलोमित शुल्क संरचना को हल करने की आवश्यकता है। जीएसटी दर की राजस्व तटस्थता को पुनर्स्थापित किया जाना चाहिए, जिसमें अनेक दर संरचनाओं एवं कई अधोमुखी समायोजनों से समझौता किया गया है। 12% एवं 18% की दरों को मिलाकर दर संरचना को युक्तिसंगत बनाया जाना चाहिए। राज्यों को जीएसटी आधार का विस्तार एवं अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु क्षेत्रीय प्रयासों को तीव्र करने की आवश्यकता है।
  • वित्तीय प्रबंधन प्रथाएं: केंद्र के साथ-साथ राज्यों के अभिलेख का मूल्यांकन करने की शक्तियों के साथ एक स्वतंत्र वित्तीय परिषद की स्थापना की जानी चाहिए। केंद्र एवं राज्यों दोनों के लिए मानक-आधारित लेखांकन तथा वित्तीय रिपोर्टिंग को चरणबद्ध रूप से अपनाने हेतु एक समयबद्ध योजना तैयार की जानी चाहिए, जबकि उपचय-आधारित लेखांकन को अंतिम रूप से अपनाने पर विचार किया जा रहा है।

15वां वित्त आयोग: अन्य सिफारिशें

  • स्वास्थ्य: राज्यों को 2022 तक स्वास्थ्य पर अपने बजट के 8% से अधिक व्यय करना चाहिए। प्राथमिक स्वास्थ्य व्यय 2022 तक कुल स्वास्थ्य व्यय का दो-तिहाई होना चाहिए। अखिल भारतीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा की स्थापना की जानी चाहिए।
  • रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा का वित्तपोषण: रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा के लिए आधुनिकीकरण कोष (एमएफडीआईएस) नामक एक समर्पित गैर-व्यपगत निधि का गठन मुख्य रूप से बजटीय आवश्यकताओं एवं रक्षा तथा आंतरिक सुरक्षा में पूंजी परिव्यय हेतु आवंटन के मध्य के अंतराल को पाटने के लिए किया जाएगा।
  • केंद्र प्रायोजित योजनाएं (सीएसएस): इंद्र प्रायोजित योजनाओं को वार्षिक आवंटन हेतु एक सीमा निर्धारित की जानी चाहिए जिसके नीचे केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए वित्तपोषण रोक दिया जाना चाहिए।
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