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संपादकीय विश्लेषण- भारत की जी-20 की अध्यक्षता एवं खाद्य सुरक्षा

भारत  की जी-20 की अध्यक्षता- यूपीएससी परीक्षा के लिए महत्व

भारत की जी-20 की अध्यक्षता एवं खाद्य सुरक्षा सम्मेलन: जी-20 समूह यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा (अंतर्राष्ट्रीय संगठन) तथा यूपीएससी मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन के पेपर 2 (अंतर्राष्ट्रीय संबंध- द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह तथा भारत से जुड़े एवं /या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते) के लिए महत्वपूर्ण है।

भारत की जी-20 की अध्यक्षता चर्चा में क्यों है?

  • जी-20 की अध्यक्षता 1 दिसंबर, 2022 से भारत के पास आएगी, जो भारत को आज विश्व के समक्ष उपस्थित होने वाली विभिन्न खाद्य सुरक्षा चुनौतियों से निपटने का एक विशिष्ट अवसर प्रदान करेगी।

 

जी 20 सम्मेलन 2023 में भारत के लिए अवसर

  • खाद्य सुरक्षा की स्थिति विगत कुछ वर्षों में बढ़ते संघर्षों एवं सूखे, बाढ़, चक्रवात तथा आर्थिक मंदी के कारण बढ़ते जलवायु संकटों के साथ और बदतर हो गई है।
  • इस संदर्भ में, जी-20 की भारत की अध्यक्षता देश के लिए एक खाद्य-घाटे वाले राष्ट्र से एक खाद्य-अधिशेष राष्ट्र में जाने की अपनी सफल यात्रा को साझा करने का एक ऐतिहासिक अवसर प्रदान करती है।
  • भारत की जी-20 की अध्यक्षता का उपयोग प्रतिरोधक क्षमता पूर्ण एवं न्यायसंगत खाद्य प्रणाली निर्मित करने हेतु खाद्य सुरक्षा की बढ़ती चुनौतियों का समाधान करने के लिए भी किया जा सकता है।

 

खाद्य सुरक्षा पर विगत जी-20 शिखर सम्मेलन

  • वैश्विक एवं क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा पर अनेक वर्षों से जी-20 के प्राथमिकता वाले एजेंडे में से एक के रूप में विचार-विमर्श किया गया है।
  • 2021 में, मटेरा घोषणा के माध्यम से, जी-20 मंत्रियों ने माना कि निर्धनता उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा एवं सतत खाद्य प्रणालियाँ भूख को समाप्त करने की कुंजी हैं।
  • भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि मटेरा घोषणा छोटे एवं मध्यम किसानों के कल्याण, स्थानीय खाद्य संस्कृतियों को प्रोत्साहित करने तथा कृषि-विविधता को मान्यता प्रदान करने हेतु भारतीय चिंता को दर्शाती है।
  • मटेरा घोषणा में अंतरराष्ट्रीय खाद्य व्यापार को मुक्त रखने तथा सुरक्षित, ताजा एवं पौष्टिक भोजन के लिए वैश्विक, क्षेत्रीय एवं स्थानीय विविध मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत करने के साथ-साथ विज्ञान आधारित समग्र एकल स्वास्थ्य दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने पर भी पल दिया गया।

 

खाद्य सुरक्षा से निपटने में भारत की भूमिका क्यों महत्वपूर्ण है?

  • विगत 50 वर्षों में भारत की यात्रा खाद्यान्न उत्पादन में सतत विकास तथा खाद्य प्रणालियों में सुधार के बारे में सीख प्रदान करती है।
  • भोजन में समानता के लिए भारत के सर्वाधिक वृहद योगदानों में से एक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 है, जो लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मध्याह्न भोजन योजना एवं एकीकृत बाल विकास सेवाओं का आधार है।
    • आज, भारत के खाद्य सुरक्षा जाल सामूहिक रूप से एक अरब से अधिक लोगों तक पहुँचते हैं।
  • आजादी के पश्चात से, भारत ने नीतिगत उपाय, भूमि सुधार, सार्वजनिक निवेश, संस्थागत आधारिक अवसंरचना, नई नियामक प्रणाली, सार्वजनिक समर्थन एवं कृषि-बाजारों तथा कीमतों एवं कृषि-अनुसंधान तथा विस्तार में हस्तक्षेप प्रारंभ किया।
  • 1991-2015 की अवधि में बागवानी, डेयरी, पशुपालन तथा मत्स्य पालन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देने के साथ कृषि के विविधीकरण को देखा गया।
    • निरंतर सीखने में पोषण स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, धारणीयता इत्यादि के तत्व सम्मिलित थे।

 

कोविड-19 महामारी के दौरान खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भारत का प्रदर्शन

  • विगत तीन वर्षों में, महामारी के प्रति प्रतिक्रिया करते हुए, भारत ने प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना लाकर भूख को कम करने में एक वैश्विक उदाहरण स्थापित किया है।
  • किसानों से अनाज की खरीद के तंत्र के माध्यम से, सरकार निम्नलिखित हेतु सक्षम थी-
    • कोविड-19 महामारी के लिए त्वरित एवं लोचशील प्रतिक्रिया प्रदान करने में,
    • अपनी मजबूत सार्वजनिक वितरण प्रणाली का उपयोग करके आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान एवं आर्थिक आघातों से बचने में,
    • नए मापदंडों को जोड़ा जाना तथा रेखांकित करना कि भोजन का अधिकार तथा इसकी आबादी की गरिमा को प्राप्त करने के लिए खाद्य एवं सामाजिक सुरक्षा जाल कितने महत्वपूर्ण हैं।

 

आगे की राह

  • 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वैश्विक खाद्य प्रणाली परिवर्तन के लिए जी-20 नेतृत्व द्वारा आयोजित अग्रणी संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली सम्मेलन के माध्यम से प्रारंभ की गई प्रक्रियाओंएवं प्रतिबद्धताओं को तेजी से ट्रैक करने का एक अवसर भी है।
  • वैश्विक तंत्र: सम्मेलन ने अभिनिर्धारित किए गए पांच कार्रवाई ट्रैक पर केंद्रित एक तंत्र निर्मित किया:
    • सभी के लिए सुरक्षित एवं पौष्टिक भोजन तक पहुंच सुनिश्चित करना;
    • सतत उपभोग पैटर्न में बदलाव;
    • प्रकृति-सकारात्मक उत्पादन को बढ़ावा देना;
    • अग्रानीत न्यायसंगत आजीविका, एवं
    • संवेदनशीलताओं, आघातों एवं तनाव के प्रति लोचशीलता निर्मित करना।
  • भारत की भूमिका: दशकों से, भारत सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए रणनीतिक भंडार के रूप में किसानों एवं खाद्य भंडार से अनाज खरीदने को संस्थागत रूप प्रदान किया है।
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य ने किसानों को उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया है तथा उन्हें वित्तीय उतार-चढ़ाव से बचाया है।
    • इस प्रक्रिया ने कठिन समय के दौरान लोगों, विशेष रूप से सर्वाधिक संवेदनशील एवं निर्धनों की रक्षा की है।
  • ऐसे उपाय, जो संदर्भ-संचालित हैं, उन अनिश्चितताओं के प्रबंधन के लिए आवश्यक हैं जो उच्च जनसंख्या वाले देशों तथा संपूर्ण विश्व के कई अन्य देशों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु नया सामान्य हो गया है।
    • कृषि; निर्धनों एवं संवेदनशील व्यक्तियों के लिए खाद्य सुरक्षा जाल; कृषि के नए तरीके तथा विविध आजीविका में अधिक निवेश की आवश्यकता है।

 

निष्कर्ष

  • हमें खाद्य तथा कृषि उत्पादन पर अनुभव साझा करने के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग का विस्तार करने एवं अफ्रीका तथा एशिया के देशों के लिए भारत के अनुभवों को साझा करने हेतु विस्तारित प्रयास करने की आवश्यकता है।

 

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