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संपादकीय विश्लेषण: जलवायु परिवर्तन पर घरेलू वास्तविकता

प्रासंगिकता

  • जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।

 

कॉप 26

  • हाल ही में ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित कॉप 26 में विकसित देशों ने भारत एवं चीन जैसे विकासशील देशों पर कार्बन उत्सर्जन का दोषारोपण किया।
  • ग्लासगो में विकसित देशों ने 2050 तक निवल शून्य उत्सर्जन की वैश्विक स्वीकृति पर बल दिया, जबकि उन्हें इसका नेतृत्व करना चाहिए था।
  • कुछ देशों द्वारा भारत एवं अन्य समान देशों को सर्वाधिक खराब उत्सर्जक के रूप में समीकरण स्थापित करने के प्रयास भी त्रुटिपूर्ण हैं, जैसा कि कार्बन ब्रीफ डॉट ओआरजी के अनुसार, अमेरिका, रूस, यूके, जापान एवं कनाडा में विश्व की जनसंख्या का 10% हिस्सा गठित करते हैं, किंतु उनका 39 प्रतिशत संचयी उत्सर्जन” है, जबकि चीन, भारत, ब्राजील एवं इंडोनेशिया में विश्व की जनसंख्या का 42% हिस्सा है, किंतु संचयी उत्सर्जन का मात्र 23% अंश हेतु उत्तरदायी हैं।

भारत: अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएं बनाम राष्ट्रीय कानून

  • ऐसे अनेक मुद्दे थे जिनकी ओर भारत ने कॉप 26 में संकेत दिए किंतु हमारे अपने देश में उन मुद्दों को सुरक्षित रूप से दरकिनार कर दिया गया। उनमें से कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:
  • केंद्र सरकार ने जीवाश्म-आधारित ऊर्जा आवश्यकताओं के उपयोग पर अपने संप्रभु निर्णयों की रक्षा करने का प्रयास किया। यद्यपि, भारत में, सरकार की कोयला उपयोग नीति, कोयला सहित खनिज संसाधनों को व्यावसायिक क्षेत्र को सौंपने के अपने दृढ़ संकल्प से प्रेरित है।
  • भले ही भारत अपने उत्सर्जन नियंत्रण लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु सौर ऊर्जा पर पारगमन करने का दावा करता है, यह कोयला उद्योग का निजीकरण कर रहा है, कोयला खदानों की नीलामी कर रहा है एवं ओपन कास्ट खदानों को व्यावसायीकरण तथा निर्यात के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
  • भारत ने कॉप 26 में भूमि क्षरण समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया है क्योंकि सरकार का मानना ​​है कि भूमि उपयोग एवं व्यापार से जुड़ी घोषणा विश्व व्यापार संगठन के दायरे में आती है। यद्यपि, देश में, कृषि के निगमीकरण की नीतियां एवं अनुबंध कृषि को प्रोत्साहन खाद्य सुरक्षा को दुर्बल बनाता है।
  • इसी प्रकार, सरकार “छोटे धारकों, स्वदेशी व्यक्तियों एवं स्थानीय समुदायों को समर्थन प्रदान करने एवं मान्यता देने” की घोषणा के विरुद्ध थी। यद्यपि, देश में, 2018 की प्रस्तावित वन नीति ने, 1927 के वन अधिनियम में संशोधन का सुझाव दिया, 1980 के वन (संरक्षण) अधिनियम में संशोधन, अन्यों के साथ, वनों को निजी क्षेत्र को सौंपना सरल बनाता है।

 

एक उदाहरण स्थापित करना

  • कॉप 15 में, सरकार 2030 तक कार्बन सिंक को 2 बिलियन से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • यद्यपि, संसद की प्राक्कलन समिति ने अपनी 2018-2019 की रिपोर्ट में कहा कि कार्बन डाइऑक्साइड लक्ष्य को वियुक्त करने के वादे को पूरा करने के लिए, स्वदेशी वृक्षों को लगाने के लिए 30 मिलियन हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता है।
  • ये वृक्ष एकल कृषि (मोनोकल्चर) या बागान नहीं होने चाहिए जैसा पूर्व में किया जा रहा था।
  • जैसा कि योजना बनाई जा रही है, राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे या रेलवे पटरियों के किनारे वृक्ष लगाना अपेक्षित लक्ष्य का एक अत्यंत छोटा घटक होगा।

आगे की राह

  • सरकार को निजीकरण में परिलक्षित अपनी कारपोरेट समर्थक नीतियों को प्रतिलोमित कर देना चाहिए।
  • जिन व्यक्तियों ने वनों की रक्षा की है, उनके सहयोग से ही भारत जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के प्रयासों में वास्तविक योगदान दे सकता है एवं शेष विश्व के लिए एक उदाहरण बन सकता है।
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