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संपादकीय विश्लेषण- निजता के बजाय नियंत्रण

निजता के बजाय नियंत्रण – यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन एवं चुनौतियां- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां एवं अंतः क्षेप   तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

निजता के बजाय नियंत्रण – संदर्भ

  • हाल ही में जारी, व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019 पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट नागरिकों की गोपनीयता सुनिश्चित करने वाला एक सुदृढ़ प्रारूप विधान प्रदान करने में विफल रही है।

 

निजता के बजाय नियंत्रण- निजता का अधिकार

  • पृष्ठभूमि: पुट्टास्वामी निर्णय एवं न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट ने 2019 के व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक को आगे बढ़ाया जिसे बाद में संयुक्त संसदीय समिति के सम्मुख भेजा गया।
    • ये घटनाक्रम देश में किसी भी व्यक्तिगत निजता कानून की अनुपलब्धता की पृष्ठभूमि में आया है।
  • संवैधानिक प्रावधान: पुट्टास्वामी के निर्णय में, सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के भाग- III के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया।

 

निजता के बजाय नियंत्रण- व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक के साथ मुद्दे

  • गलत धारणा: रिपोर्ट इस अनुमान पर आधारित है कि निजता के अधिकार का प्रश्न केवल वहीं उठता है जहां निजी संस्थाओं के संचालन एवं गतिविधियों का संबंध है।
    • यद्यपि, संविधान के अंतर्गत, मूल अधिकार आम तौर पर राज्य एवं  उसके उपकरणों के विरुद्ध प्रवर्तित होते हैं, न कि निजी निकायों के विरुद्ध।
  • सरकार को उन्मुक्ति: विधेयक का खंड 12 सरकार एवं सरकारी एजेंसियों के लिए उन्मुक्ति प्रदान करता है एवं खंड 35 सरकारी एजेंसियों को संपूर्ण अधिनियम से ही उन्मुक्ति प्रदान करता है।
    • खंड 12: कहता है कि व्यक्तिगत डेटा को राज्य के किसी भी कार्य के निष्पादन के लिए सहमति के बिना संसाधित किया जा सकता है।
    • खंड 12 एक प्रछत्र खंड है जो यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि किन मंत्रालयों अथवा विभागों को सम्मिलित किया जाएगा।
    • सरकार इन प्रावधानों को नियंत्रण एवं अवेक्षण के साधन के रूप में उपयोग कर सकती है।
  • डेटा सुरक्षा प्राधिकरण (डीपीए) के साथ समस्या: यह विधेयक डेटा सुरक्षा प्राधिकरण के कार्यों एवं कर्तव्यों के बारे में विस्तार पूर्वक विवरण देता है।
    • कार्यात्मक अधिभार: यह संदेहास्पद है कि क्या एक अकेला प्राधिकरण इतने सारे कार्यों को एक कुशल तरीके से निर्वहन करने में सक्षम होगा।
    • नियुक्ति के साथ समस्या: डीपीए की नियुक्तियों में न्यायिक निरीक्षण का प्रावधान करने वाली न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट के विपरीत, विधेयक कार्यपालिका को नियुक्तियों का जिम्मा सौंपता है।
      • यद्यपि रिपोर्ट ने समिति का विस्तार किया, पैनलिस्टों को नियुक्त करने की शक्ति केंद्र सरकार में निहित है।
    • सरकारी नियंत्रण: खंड 86 कहता है, “प्राधिकरण सभी मामलों में केंद्र सरकार के निर्देशों के द्वारा बाध्य होना चाहिए, न कि केवल नीति के प्रश्नों पर”।
  • राज्यों का प्रतिनिधित्व: डेटा संरक्षण प्राधिकरण (डीपीए) की नियुक्ति संघवाद के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
    • प्रस्तावित केंद्रीय प्राधिकरण ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ के आधार पर डेटा के प्रसंस्करण की अनुमति प्रदान करने हेतु निर्देश जारी करता है, ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ राज्य सूची में एक प्रविष्टि है।
  • गैर-व्यक्तिगत डेटा का समावेशन: संयुक्त संसदीय समिति ने गैर-व्यक्तिगत डेटा को विधेयक के दायरे में समाविष्ट किया है, जो अर्थव्यवस्था पर इसके अनुपालन का भारी बोझ  डालता है।
    • इससे एमएसएमई क्षेत्र एवं छोटे व्यवसायों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि डेटा-साझाकरण से जुड़ी तकनीकी प्रक्रियाएं अत्यधिक महंगी हैं।
    • एस गोपालकृष्णन की अध्यक्षता में सरकार द्वारा गठित पैनल ने भी विधेयक में गैर-व्यक्तिगत डेटा को समाविष्ट करने के विचार का विरोध किया है।
  • अनिवार्य डेटा स्थानीयकरण के साथ समस्या: इसके द्वारा अर्थव्यवस्था को 7-1.7% तक उगाहने का अनुमान है। यह अन्य संप्रभु देशों द्वारा भी इसी तरह के उपायों को आमंत्रित कर सकता है जो डेटा के सुचारू सीमा-पार प्रवाह को बाधित करेगा।

 

निजता के बजाय नियंत्रण – आगे की राह

  • डेटा संरक्षण प्राधिकरण (डीपीए) की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना: नागरिकों के मूल अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, यह आवश्यक है कि डीपीए को स्वतंत्र रूप से कार्य करने का उत्तरदायित्व सौंपा जाए।
  • डेटा संरक्षण प्राधिकरण (डीपीए) पर सरकारी नियंत्रण को कम करना: अत्यधिक नियंत्रण (खंड 86) सरकार के आदेशों का पालन करने हेतु डीपीए को कर्तव्यबद्ध बनाता है। यह इसकी स्वतंत्रता को कमजोर करता है एवं सरकार को इसके ऊपर अत्यधिक नियंत्रण प्रदान करता है।
  • राज्यों की भागीदारी के माध्यम से संघवाद सुनिश्चित करना: यदि विधान का सार तत्व राज्य से संबंधित है, तो इसका अनुश्रवण राज्य डेटा संरक्षण प्राधिकरण द्वारा किया जाना चाहिए।

निजता के बजाय नियंत्रण – निष्कर्ष

  • अपने वर्तमान अवतार में, विधेयक निजता से अधिक अवेक्षण एवं नियंत्रण के बारे में है। विधेयक के पारित होने के समय, खामियों को दूर किया जाना चाहिए ताकि भारत के पास एक सशक्त डेटा संरक्षण कानून हो सके।
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