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पूर्वोत्तर भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

प्रासंगिकता

  • जीएस 1: महत्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं (जल-निकायों एवं हिम-शीर्ष सहित) एवं वनस्पतियों तथा जीवों में परिवर्तन एवं ऐसे परिवर्तनों के प्रभाव।

 

प्रसंग

  • पूर्वोत्तर भारत जलवायु परिवर्तन की विभिन्न अनियमितताएं प्रदर्शित कर रहा है जैसे कि विघटनकारी मौसम प्रतिरूप जिसने आपदाओं को प्रेरित किया है, जिसने क्षेत्र के भूगोल को प्रभावित किया है।

 

 

 

मुख्य बिंदु

  • पूर्वोत्तर भारत, जो सामान्य तौर पर मानसून के महीनों (जून-सितंबर) के दौरान भारी वर्षा प्राप्त करता है, की प्रकृति बदतर हो रही है।
  • बाढ़-सूखा चक्र अब एक वर्ष के भीतर, विशेष रूप से मानसून के दौरान आरंभ हो गया है।
  • यहां तक ​​कि मानसून में भी, वर्षा में (अकस्मात वृष्टि) शीघ्र विस्फोट हो जाता है एवं इस क्षेत्र में बाढ़ आ जाती है, इसके बाद शुष्क ऋतु (अवधि) होती है जो सूखे की ओर अग्रसर करती है।
  • 1989 एवं 2018 के मध्य, इस क्षेत्र में मानसूनी वर्षा में उल्लेखनीय कमी देखी गई है।

थार मरुस्थल- राजस्थान

असम

  • हाल ही में, राज्य में एक नया परिदृश्य प्रस्तुत हुआ था जहां शुष्क सूखा-सदृश जिले अन्य जिलों में वर्षा के कारण बाढ़ के साथ मिश्रित हो गए थे।
  • पहाड़ों से मैदानी इलाकों में भूगोल में परिवर्तन अकस्मात एवं तीव्र गति से होता है, जिससे यह क्षेत्र स्वाभाविक रूप से बाढ़ की चपेट में आ जाता है।
  • ब्रह्मपुत्र के उत्तर में अधिकांश जिलों में वर्षा के दिनों की संख्या में कमी आई है। इसका तात्पर्य है कि अब कम दिनों में अत्यधिक वर्षा होती है, जिससे नदियों में बाढ़ आने की संभावना में वृद्धि हो जाती है।

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अरुणाचल प्रदेश

  • ऊपरी सियांग एवं ऊपरी सुबनसिरी नदियों में देखी गई बढ़ी हुई बाढ़ की घटनाएं वर्षा में वृद्धि के कारण हो सकती है।
  • ऊपरी सियांग वर्षा के दिनों की संख्या में एक महत्वपूर्ण कमी की प्रवृत्ति को दर्शाता है, जो कम दिनों में अधिक वर्षा होने की व्याख्या करता है।
  • राज्य के पश्चिमी भाग में पश्चिम कामेंग एवं पूर्वी कामेंग जैसे जिलों में हाल के दशकों में पर्वतीय जलप्रपातों तथा नदियों के प्रवाह में कमी देखी गई, जो वर्षा में कमी के कारण हो सकता है।

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नागालैंड

  • यहाँ नदियों की ढाल इतनी तीव्र नहीं है जितनी अरुणाचल प्रदेश में है, इसलिए नदियाँ उतनी बाढ़ प्रवण नहीं हैं।
  • हाल ही में हुई भारी वर्षा की घटनाओं ने उन स्थानों पर बाढ़ ला दी है जहाँ दशकों में ऐसी आपदाएँ नहीं देखी गई थीं।

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सिक्किम

  • उत्तरी सिक्किम ने मानसूनी वर्षा में वृद्धि की प्रवृत्ति प्रदर्शित की है, जिससे ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी तीस्ता नदी में बाढ़ में वृद्धि हो सकती है।
  • इससे दक्षिण सिक्किम में, विशेष रूप से गंगटोक के आसपास, भूस्खलन हो सकता है, एक घटना जो 1997 से देखी गई है।

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मणिपुर

  • क्षेत्र की लगभग 67% आबादी कृषि पर निर्भर है, जो एक छोटे से क्षेत्र पर अपनी पूरी आबादी का पालन पोषण करने हेतु अत्यधिक दबाव डालती है।
  • इसलिए, राज्य में वर्षा के बदलते प्रतिरूप से कृषि पर प्रभाव पड़ेगा, जो बदले में राज्य की खाद्य सुरक्षा को  दुष्प्रभावित करेगा।

वर्षा जल संचयन: जल के अभाव का प्रत्युत्तर

मेघालय

  • राज्य को अपनी वार्षिक वर्षा का 71 प्रतिशत मानसून के महीनों के दौरान प्राप्त होता है।
  • जिले में समतल-शीर्ष वाली पहाड़ियाँ एवं अनेक नदियाँ हैं, तथा वर्षा के दिनों की संख्या में उल्लेखनीय कमी देखी गई है।
  • क्षेत्र की अप्रत्याशितता का हनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि जुलाई जो राज्य में सर्वाधिक वर्षा वाला महीना है, में हुई वर्षा में 40 प्रतिशत की परिवर्तनशीलता थी।

 

मिजोरम

  • जबकि 30 वर्षों में कुल वर्षा स्थिर रही है, इस क्षेत्र में वर्षा के दिनों की संख्या में भारी गिरावट देखी गई है।
  • इसके साथ भारी वर्षा के दिनों में अत्यधिक वृद्धि हुई है। मानसून के महीनों के दौरान यह क्षेत्र अपनी वार्षिक वर्षा का 67% प्राप्त करता है।

शहरी बाढ़: अवलोकन, कारण और सुझावात्मक उपाय

त्रिपुरा

  • राज्य ने 30 वर्षों में कमी की प्रवृत्ति देखी है,यद्यपि यह महत्वपूर्ण नहीं है।
  • यद्यपि, विशिष्ट चुनौती यह है कि सभी जिलों में अब मानसून की ऋतु के दौरान कम वर्षा होती है, जो कि इसकी वार्षिक वर्षा का 60% है।

 

 

manish

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