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हरित सड़कें, सुरक्षित सड़कें | यूपीएससी के लिए हिंदू संपादकीय विश्लेषण

हरित सड़कें, सुरक्षित सड़केंकी यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता

हरित सड़कें, सुरक्षित सड़कें: सड़क सुरक्षा एवं पर्यावरणीय धारणीयता परस्पर घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई अवधारणाएं हैं। हरित सड़कों के लिए कार्य करते हुए सुरक्षित सर को के बारे में जागरूक होना समय की मांग है। आज का संपादकीय विश्लेषण- हरित सड़कें, सुरक्षित सड़कें निम्नलिखित टॉपिक्स के अंतर्गत आते हैं:

जीएस 2: सरकारी नीतियां एवं अंतः क्षेप

जीएस 3: आधारिक अवसंरचना

सड़क दुर्घटनाएं पर्यावरण को कैसे प्रभावित करती हैं?

  • 2021 में, भारत ने 4,03,116 दुर्घटनाओं की सूचना प्राप्त हुई, जिनमें से प्रत्येक दुर्घटना ने विभिन्न रूपों से एवं अलग-अलग मात्रा में पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।
  • अधिकांश वाहनों में सीसा, पारा, कैडमियम या हेक्सावलेंट क्रोमियम सदृश विषाक्त धातुएँ होती हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं।
  • दुर्घटना स्थलों पर ईंधन एवं द्रव का रिसाव देखा जाता है।
  • गंभीर सड़क दुर्घटनाओं से  वाहनों (ऑटोमोबाइल) का मलबा निकलता है, जो अनुपयोगी वाहनों का हिस्सा बन जाता है। यह स्क्रैपेज को जन्म देता है।

 

कोई उचित स्क्रैपिंग नहीं!

  • भारत में 2025 तक लगभग 22.5 मिलियन कबाड़ होने वाले वाहनों का अनुमान है।
  • विश्व के सर्वाधिक वृहद कार एवं हल्के वाणिज्यिक वाहन बाजारों में से एक होने के बावजूद, 2021 में प्रारंभ की गई भारत की राष्ट्रीय ऑटोमोबाइल स्क्रैपेज नीति अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है।
  • उनके उचित पुनर्चक्रण के लिए समर्पित व्यापक, व्यवस्थित सुविधाओं के अभाव में, सड़क दुर्घटनाओं के  पश्चात वाहनों के साथ-साथ पुराने कबाड़ वाहनों को सड़क के किनारे सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है।
  • इनमें से कुछ भराव क्षेत्र (लैंडफिल) या अनौपचारिक पुनर्चक्रण प्रतिष्ठानों पर समाप्त हो जाते हैं जहां अल्पविकसित हाथ के औजारों का उपयोग उन्हें अवैज्ञानिक रूप से नष्ट करने के लिए किया जाता है।
  • इससे तेल, शीतलक एवं कांच के तंतुओं जैसे खतरनाक घटकों का रिसाव होता है।
  • वाहन लैंडफिल ऑटोमोबाइल कब्रिस्तान में परिवर्तित हो जाते हैं जिससे दशकों तक बेकार एवं उप-इष्टतम भूमि उपयोग एवं जल तथा मृदा का प्रदूषण होता है।

 

पर्यावरण के अनुकूल गति सड़क दुर्घटनाओं को कैसे सीमित कर सकती है?

  • सड़क दुर्घटनाओं का एक सबसे बड़ा कारण तेज गति से वाहनों को चलाया जाना है। अकेले 2020 में, 91,239 सड़क दुर्घटना मौतों के लिए तेज गति जिम्मेदार थी, जिसमें पंजीकृत सभी सड़क दुर्घटना मौतों का 69.3% शामिल था।
  • विगत पांच वर्षों में भारत में सभी सड़क दुर्घटनाओं में से 60% से अधिक के लिए तेज गति निरंतर जिम्मेदार रही है।

यूरोप का संदर्भ

यूरोप में अनुरूपण (सिमुलेशन) अभ्यासों ने प्रदर्शित किया है कि द्रुतमार्गों (मोटरवे) की गति सीमा को 10 किमी/घंटा तक कम करने से वर्तमान प्रौद्योगिकी यात्री कारों के लिए 12% से 18% ईंधन की बचत हो सकती है, साथ ही प्रदूषक उत्सर्जन, विशेष रूप से डीजल वाहनों से, नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं कणिकीय पदार्थ (पार्टिकुलेट मैटर/पीएम) उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आ सकती है।

एम्स्टर्डम का संदर्भ

एम्स्टर्डम में किए गए इसी तरह के एक अध्ययन से पता चला है कि जहां गति सीमा 100 किमी/घंटा से घटाकर 80 किमी/घंटा कर दी गई थी, वहां कणिकीय पदार्थ (पार्टिकुलेट मैटर/पीएम) 15% तक कम हो गया, जिससे हवा की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ।

 

हाईवे की गति सीमा क्या होनी चाहिए?

  • अध्ययनों से पता चलता है कि 96.5 किमी/घंटा की राजमार्ग गति सीमा 120 किमी/घंटा की सीमा की तुलना में 25% अधिक दक्ष है, जिस स्थिति में हवा के प्रतिरोध से अधिक ईंधन की खपत होती है।
  • परिणाम स्वरूप, संपूर्ण विश्व में अनेक सरकारों ने दुर्घटनाओं को रोकने एवं वायु प्रदूषण को कम करने के लिए गति सीमा कम कर दी है। उदाहरण के लिए, वेल्स सरकार ने बाह्य प्रदूषण को कम करने एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए पूरे वेल्स में पाँच स्थानों पर 80 किमी/घंटा की गति सीमा लागू की।

 

भारत में सड़क सुरक्षा के लिए शून्य मृत्यु गलियारा (जीरो फैटेलिटी कॉरिडोर) समाधान क्या है?

  • भारत में, सेव लाइफ फाउंडेशन (एसएलएफ) द्वारा सड़क सुरक्षा के लिए शून्य हताहत गलियारा (जीरो फैटेलिटी कॉरिडोर) समाधान पर्यावरणीय धारणीयता को गंभीरता से लेता है एवं उन्नत अभियांत्रिकी तथा प्रवर्तन तकनीकों के माध्यम से गति को कम करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • सेवलाइफ फाउंडेशन द्वारा प्रारंभ की गई एवं अनुशंसित सभी सड़क सुरक्षा पहलों को प्रभावी तथा पर्यावरण के अनुकूल डिजाइन किया गया है।

विभिन्न हरित पहलें

  • सड़क के विस्तार पर अथवा उसके अत्यंत समीप स्थित वनस्पति प्रायः सड़क चौड़ीकरण की पहल का शिकार हो जाती है।
  • फाउंडेशन के शून्य हताहत गलियारा (जीरो फैटेलिटी कॉरिडोर/ZFC) कार्यक्रम, जिसे 2016 में मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर परिनियोजित किया गया था, ने 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में 52% की कमी लाने में सहायता की।
  • इसी तरह के अंतःक्षेप 2018 में ओल्ड मुंबई पुणे हाईवे पर प्रारंभ किए गए थे एवं 2021 तक इस खंड पर सड़क दुर्घटना से होने वाली मौतों को 61% तक कम करने में सहायता मिली।
  • पहलों में प्राकृतिक कठोर संरचनाओं की रक्षा करना जैसे पेड़ों को सीधी टक्करों को रोकने के लिए क्रैश बैरियर का उपयोग करना एवं यात्रियों को अधिक दृश्यता प्रदान के लिए वृक्षों पर रेट्रो रिफ्लेक्टिव साइनेज स्थापित करना सम्मिलित था।
  • भारत सरकार भी अब वनों एवं वन्य पशुओं के रास्तों से गुजरने के स्थान पर उनके ऊपर से पार करने के लिए हरित गलियारे का निर्माण कर रही है।
  • इसे बढ़ाने से बेहतर सड़क संपर्क सुनिश्चित करते हुए पर्यावरण के संरक्षण पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

साइनेज के लिए गैर-खतरनाक सामग्री

  • अनुपस्थित अथवा अपर्याप्त संकेत सड़क दुर्घटनाओं का एक अन्य प्रमुख कारण हैं। उनकी अनुपस्थिति का परिणाम यह होता है कि सड़क का उपयोग करने वाले लोग समय पर एक खंड की अनूठी विशेषताओं से  अनभिज्ञ होते हैं, जिससे दुर्घटनाएं हो सकती हैं।
  • इन संकेतों को निर्मित करने हेतु अभ्रक का उपयोग करना एक सामान्य मानक अभ्यास है। जैसा कि एस्बेस्टस का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शून्य हताहत गलियारा कार्यक्रम साइनेज के लिए केवल लंबे समय तक चलने वाली, उच्च गुणवत्ता युक्त, गैर-खतरनाक सामग्री के विकल्प का चयन करता है।
  • एस्बेस्टस की तुलना में अधिक महंगा होने के बावजूद, सर्वाधिक टिकाऊ एवं पुन: प्रयोज्य सामग्रियों में से एक, एल्युमिनियम कंपोजिट पैनल, साइनेज के लिए कार्यरत हैं।
  • यह न केवल उत्पादन प्रक्रिया के दौरान विषाक्त गैसों अथवा तरल पदार्थ से मुक्त है, बल्कि यह , बिना अधिक मूल्य या गुणवत्ता हानि के एल्यूमीनियम एवं प्लास्टिक के रूप में पृथक पृथक पुनर्चक्रण योग्य भी है। यह पश्चातवर्ती बहुउद्देशीय उपयोग के लिए भी इसे उपयुक्त बनाता है।

 

निष्कर्ष

सड़कें एवं पर्यावरण अविभाज्य स्थल हैं। वे न केवल हमारे साझा संसाधन हैं बल्कि हमारी संयुक्त जिम्मेदारी भी हैं।  अतः, संयुक्त प्रयासों से ही सुरक्षित सड़कों तथा धारणीय पर्यावरण सुनिश्चित किया जा सकता है।

 

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