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अफ्रीकी स्वाइन फ्लू

अफ्रीकी स्वाइन फ्लू: चर्चा में क्यों है?

  • केरल कोट्टायम जिले में एक सुअर फार्म में अफ्रीकी स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है।
  • भोपाल में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई-सिक्योरिटी एनिमल डिजीज में फार्म से लिए गए नमूनों की जांच के बाद इस विषाणु के संक्रमण की पुष्टि हुई थी।
  • फार्म के चारों ओर एक किलोमीटर के क्षेत्र को संक्रमित घोषित कर दिया गया है, जहां 48 सूअरों को एहतियात के तौर पर मार दिया गया है। फार्म के चारों ओर दस किलोमीटर के दायरे पर कड़ी नजर रखी जा रही है।

अफ्रीकी स्वाइन फ्लू: पृष्ठभूमि

  • 1900 के दशक के प्रारंभ में पूर्वी अफ्रीका से प्रकट होने के पश्चात से, अफ्रीकी स्वाइन बुखार उप-सहारा अफ्रीका के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रसारित हो गया है एवं 2005 से 32 देशों में इसकी सूचना प्राप्त हुई है।
  • 2022 में भारत सहित संपूर्ण विश्व में इस रोग का पता चला है।
  • यह रोग एशिया, कैरिबियन, यूरोप एवं प्रशांत क्षेत्र के अनेक देशों में पहुंच चुका है, जिससे घरेलू तथा जंगली दोनों सूअर प्रभावित होते हैं।

 

अफ्रीकी स्वाइन फ्लू: अफ्रीकी स्वाइन फ्लू (एएसएफ) क्या है?

  • एएसएफ एक गंभीर विषाणु जनित रोग है जो जंगली एवं घरेलू सूअरों को प्रभावित करती है, जिसके परिणामस्वरूप आमतौर पर एक तीव्र रक्तस्रावी बुखार होता है।
  • इस रोग में व्यक्तिगत मृत्यु दर (केस फेटलिटी रेट/सीएफआर) लगभग 100 प्रतिशत है।
  • इसके संचरण के मार्गों में एक संक्रमित या जंगली सुअर (जीवित अथवा मृत) के साथ प्रत्यक्ष संपर्क, दूषित सामग्री जैसे खाद्य अपशिष्ट, चारा या कचरा अथवा जैविक रोगाणु वाहक (वैक्टर) जैसे किलनी (टिक) के माध्यम से अप्रत्यक्ष संपर्क सम्मिलित हैं।
  • सूअरों की अकस्मात मृत्यु इस रोग की विशेषता है।
  • रोग की अन्य अभिव्यक्तियों में तेज बुखार, अवसाद, भोजन के प्रति अरुचि (एनोरेक्सिया), भूख न लगना, त्वचा में रक्तस्राव, उल्टी एवं दस्त शामिल हैं।
  • यह महत्वपूर्ण है कि अफ्रीकी स्वाइन फ्लू (एएसएफ) का निर्धारण प्रयोगशाला परीक्षण के माध्यम से किया जाता है  तथा इसे प्राचीन स्वाइन बुखार (क्लासिकल स्वाइन फीवर/सीएसएफ) से पृथक किया जाता है, जिसके लक्षण एएसएफ के समान हो सकते हैं, किंतु एक  पृथक विषाणु के कारण होता है जिसके लिए एक टीका मौजूद है।
  • फिर भी, जबकि अफ्रीकी स्वाइन फ्लू (एएस0एफ) घातक है, यह अन्य पशुओं के रोग हो जैसे कि खुरपका एवं मुंहपका रोग ( फुट एंड माउथ डिजीज) से कम संक्रामक है।
  • किंतु अभी तक, कोई स्वीकृत टीका उपलब्ध नहीं है, यही कारण है कि संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए जानवरों को मार दिया जाता है।

 

अफ्रीकी स्वाइन फ्लू: क्या यह मनुष्यों के लिए खतरनाक है?

  • अफ्रीकन स्वाइन फ्लू कोई पशुजन्य (जूनोटिक) रोग नहीं है। यह सूअरों से दूसरे पशुओं अथवा मनुष्य में  प्रसारित नहीं होगा।
  • यद्यपि यह रोग अत्यधिक संक्रामक है, यह मनुष्यों के लिए कोई खतरा नहीं है क्योंकि यह पशुओं से मनुष्यों में संचरित नहीं किया जा सकता है।
  • यह रोग सिर्फ एक सूअर से दूसरे सूअर में  प्रसारित हो सकता है।

 

अफ्रीकी स्वाइन फ्लू: खाद्य सुरक्षा एवं जैव विविधता के लिए खतरा

  • सुअर अनेक देशों में घरेलू आय का एक प्राथमिक स्रोत हैं।
  • संपूर्ण विश्व में अफ्रीकी स्वाइन फ्लू के प्रसार ने परिवार द्वारा संचालित सुअर फार्मों को तबाह कर दिया है, जो प्रायः लोगों की आजीविका का मुख्य आधार एवं उर्ध्वगामी गतिशीलता का चालक होता है।
  • इसने स्वास्थ्य एवं शिक्षा तक पहुंच के अवसरों को भी कम कर दिया है।
  • इसके अतिरिक्त, सूअर का मांस पशु प्रोटीन के प्राथमिक स्रोतों में से एक है, जो वैश्विक मांस सेवन के 35% से अधिक का गठन करता है।
  • अतः, यह रोग संपूर्ण विश्व में खाद्य सुरक्षा के लिए एक गंभीर समस्या बन गया है।
  • यह रोग जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए भी एक चिंता का विषय है, क्योंकि यह न केवल घरेलू फार्म वाले सूअरों को प्रभावित करता है, बल्कि देशी नस्लों सहित जंगली सूअर को भी प्रभावित करता है।

 

अफ्रीकी स्वाइन फ्लू: एएसएफ के प्रसार को नियंत्रित करने के उपाय

  • प्रकोपों ​​​​के दौरान  एवं प्रभावित देशों में, अफ्रीकी स्वाइन बुखार के प्रसार को नियंत्रित करना दुष्कर हो सकता है तथा इसे विशिष्ट महामारी विज्ञान की स्थिति के अनुकूल होना चाहिए।
  • जिन सामान्य स्वच्छता उपायों को लागू किया जा सकता है उनमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं:
    • संक्रमित पशुओं की शीघ्र पहचान एवं मानवीय रूप से हत्या (शवों तथा कचरे के उचित निस्तारण के साथ),
    • संपूर्ण सफाई एवं कीटाणुशोधन,
    • जोन निर्माण / कक्षों में वितरण  अथवा कंपार्टमेंटलाइज़ेशन एवं आवागमन नियंत्रण,
    • निगरानी  तथा विस्तृत महामारी विज्ञान जांच, एवं
    • फार्म पर सख्त जैव सुरक्षा उपाय।.

 

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