‘सिंधुजा-1′ की ‘ यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
‘सिंधुजा-1’ जो एक महासागरीय तरंग ऊर्जा परिवर्तक (ओशन वेव एनर्जी कन्वर्टर) है, जो भारत के सतत ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए अत्यंत लाभप्रद सिद्ध होगा। ‘सिंधुजा-1’ में जीएस 3 के निम्नलिखित खंड सम्मिलित हैं: यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी खंड।
‘सिंधुजा-1′ चर्चा में क्यों है?
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी/IIT Madras) के शोधकर्ताओं ने एक ‘ओशन वेव एनर्जी कन्वर्टर’ विकसित किया है जो समुद्री तरंगों से विद्युत उत्पन्न कर सकता है। इस उपकरण का परीक्षण नवंबर 2022 के दूसरे सप्ताह के दौरान सफलतापूर्वक पूरा किया गया था।
महासागरीय तरंग ऊर्जा परिवर्तक अर्थात सिंधुजा-I किस प्रकार कार्य करता है?
- महासागरीय तरंग ऊर्जा परिवर्तक अथवा ओशन वेव एनर्जी कन्वर्टर को ‘सिंधुजा-I’ नाम दिया गया है, जिसका अर्थ है ‘महासागर से उत्पन्न‘।
- इस प्रणाली में एक प्लवमान प्लवक (फ्लोटिंग बॉय), एक मस्तूल (स्पर) एवं एक इलेक्ट्रिकल मॉड्यूल है।
- जैसे ही तरंग ऊपर एवं नीचे गति करती है, प्लवक ऊपर एवं नीचे चलती है।
- वर्तमान डिजाइन में, एक गुब्बारे जैसी प्रणाली जिसे ‘प्लवक’ कहा जाता है, में एक केंद्रीय छेद होता है जो एक लंबी छड़ जिसे मस्तूल (स्पार) कहा जाता है, से गुजरने की अनुमति देता है।
- मस्तूल को समुद्र तल (सीबेड) से जोड़ा जा सकता है, एवं गुजरने वाली तरंगे इसे प्रभावित नहीं करेंगी, जबकि प्लवक ऊपर एवं नीचे जाएगा तथा उनके मध्य सापेक्ष गति उत्पन्न करेगा।
- सापेक्ष गति विद्युत उत्पन्न करने के लिए विद्युत जनरेटर को घूर्णन प्रदान करती है।
- वर्तमान डिज़ाइन में, मस्तूल तैरता है एवं एक नौ-बंध चेन प्रणाली को यथावत रखती है।
सिंधुजा-1′ के माध्यम से भारत क्या लक्ष्य बना रहा है?
- ओशन वेव एनर्जी कन्वर्टर अर्थात सिंधुजा-1 ने आगामी तीन वर्षों में महासागरीय तरंगों से 1 मेगावाट विद्युत उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा है।
- इस परियोजना की सफलता से संयुक्त राष्ट्र महासागर दशक एवं सतत विकास लक्ष्यों जैसे अनेक उद्देश्यों को पूरा करने में सहायता प्राप्त होगी।
- भारत के लक्ष्यों में गंभीर महासागरीय मिशन, स्वच्छ ऊर्जा एवं नीली अर्थव्यवस्था प्राप्त करना सम्मिलित है।
- यह भारत को नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से 2030 तक 500 गीगावॉट विद्युत उत्पन्न करने के अपने जलवायु परिवर्तन संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता कर सकता है।
- महासागरीय तरंग ऊर्जा परिवर्तक (ओशन वेव एनर्जी कन्वर्टर) को दूरस्थ अपतटीय स्थानों की ओर लक्षित किया जाता है, जिनके लिए विश्वसनीय विद्युत एवं संचार की आवश्यकता होती है, या तो पेलोड को विद्युत शक्ति की आपूर्ति करके जो सीधे उपकरण में अथवा उसके आसपास स्थित होते हैं या समुद्र के किनारे तथा जल के स्तंभ में स्थित होते हैं।
- लक्षित हितधारक तेल एवं गैस, रक्षा तथा सुरक्षा प्रतिष्ठान एवं संचार क्षेत्र हैं।
‘सिंधुजा-1′ किस स्थान पर तैनात है?
- महासागरीय तरंग ऊर्जा परिवर्तक अर्थात सिंधुजा -1 को तमिलनाडु के तूतीकोरिन के तट से लगभग 6 किलोमीटर दूर 20 मीटर की गहराई वाले स्थान पर तैनात किया गया था।
- सिंधुजा-I वर्तमान में 100 वाट ऊर्जा का उत्पादन कर सकता है। इसे आगामी तीन वर्षों में एक मेगावाट ऊर्जा उत्पादन के लिए बढ़ाया जाएगा।
सिंधुजा-1 मिशन का नेतृत्व किसने किया था?
- आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर अब्दुस समद, जो तरंग ऊर्जा पर एक दशक से अधिक समय से कार्य कर रहे हैं, इस मिशन का नेतृत्व कर रहे हैं।
- उन्होंने आईआईटी मद्रास में एक अत्याधुनिक ‘वेव एनर्जी एंड फ्लुइड्स इंजीनियरिंग लेबोरेटरी’ (WEFEL) की स्थापना की।
- उनकी टीम ने एक स्केल्ड-डाउन मॉडल का डिज़ाइन एवं परीक्षण किया।
- प्रयोगशाला इस तकनीक के लिए अन्य अनुप्रयोगों पर भी शोध कर रही है जैसे समुद्र के लिए छोटे उपकरणों जैसे नौवहन प्लवक एवं डेटा प्लवक, तथा अन्य के लिए ऊर्जा का उत्पादन ।
सिंधुजा-1 महासागरीय तरंग ऊर्जा परिवर्तक के संभावित लाभ क्या हैं?
- सिंधुजा-1 महासागरीय तरंग ऊर्जा परिवर्तक से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए भारत के पास आदर्श स्थितियां हैं, क्योंकि भारत के पास 7,500 किमी लंबी तटरेखा है जो 54 गीगावॉट उर्जा उत्पादन में सक्षम है, जो देश की ऊर्जा आवश्यकता की पर्याप्त मात्रा को पूरा करती है।
- समुद्री जल ज्वारीय, तरंग एवं महासागरीय तापीय ऊर्जा को संग्रहित करता है।
- उनमें से भारत में 40 गीगा वाट तरंग ऊर्जा का दोहन संभव है।