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भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश के उपयोग

जनसांख्यिकीय लाभांश यूपीएससी

 

जनसांख्यिकीय लाभांश क्या है?

  • जनसांख्यिकीय लाभांश का अर्थ: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ( यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड/यूएनएफपीए) जनसांख्यिकीय लाभांश को आर्थिक विकास की क्षमता के रूप में परिभाषित करता है जो जनसंख्या की आयु संरचना में परिवर्तन के परिणामस्वरूप हो सकता है।
  • अनेक रिपोर्टों के अनुसार,काल प्रभावन वाली दुनिया में, भारत में  सर्वाधिक युवा जनसंख्या (15-59 आयु वर्ग में इसकी आबादी का 62.5%) है।

जनसांख्यिकीय लाभांश के लाभ एवं अवसर

  • श्रम आपूर्ति: बढ़ी हुई श्रम आपूर्ति युवा जनसंख्या का प्रत्यक्ष लाभ है, क्योंकि अधिक संख्या में लोग  कार्यशील आयु तक पहुंचते हैं। यद्यपि, इस लाभ का परिमाण इन अतिरिक्त श्रमिकों को नियोजित करने के लिए अर्थव्यवस्था की क्षमता पर निर्भर करेगा।
  • पूंजी निर्माण: जैसे-जैसे परिवार में आश्रितों की संख्या घटती जाती है, व्यक्ति अधिक बचत करते हैं। राष्ट्रीय बचत दरों में यह वृद्धि विकासशील देशों में पूंजी स्टॉक में वृद्धि करती है, इसके अतिरिक्त निवेश के माध्यम से देश की पूंजी के सृजन का अवसर प्रदान करती है।
  • महिला मानव पूंजी: प्रजनन दर में कमी के परिणामस्वरूप महिलाएं स्वस्थ  होती हैं एवं घर पर आर्थिक दबाव कम होता है। यह बदले में, कार्यबल में अधिक महिलाओं को सम्मिलित करने का अवसर प्रदान करता है।
  • आर्थिक विकास: युवा आबादी  के बाहुल्य का अर्थ है मांग-संचालित आर्थिक विकास। विकास, शिक्षा, बेहतर आर्थिक सुरक्षा एवं अधिक टिकाऊ वस्तुओं की इच्छा युवा जनसांख्यिकी के कारण  तथा परिणाम हैं।
  • आधारिक अवसंरचना: जनसांख्यिकीय लाभांश द्वारा निर्मित राजकोषीय स्थान में वृद्धि सरकार को उपभोग पर कम निवेश पर अधिक व्यय करने में सक्षम बनाती है।

 

जनसांख्यिकीय लाभांश तथा भारत:

  • मानव पूंजी में वृद्धि: भारत के स्नातकों एवं स्नातकोत्तरों के मध्य नियोजनीयता अत्यंत कम है। एसोचैम के एक अध्ययन के अनुसार, केवल 20-30% इंजीनियरों को ही उनके कौशल के अनुसार नौकरी मिलती है। भारत में देश में बेरोजगारी एवं अल्प रोजगार दोनों के मुद्दे हैं।
  • निम्न मानव विकास: यूएनडीपी के मानव विकास सूचकांक में भारत 189 देशों में 130वें स्थान पर है। भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (68 वर्ष) जैसे बुनियादी संकेतक भी अन्य विकासशील देशों की तुलना में बहुत कम हैं।
  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था: भारत में अर्थव्यवस्था की अनौपचारिक प्रकृति भारत में जनसांख्यिकीय संक्रमण के लाभों को प्राप्त करने में एक अन्य चुनौती है। अधिकांश भारतीय कार्यबल असंगठित क्षेत्र में  कार्यरत हैं जहां न केवल उन्हें कम वेतन प्राप्त होता है, बल्कि उन्हें सामाजिक सुरक्षा की महत्वहीन परिस्थितियों में भी रहना पड़ता है।
  • रोजगार विहीन वृद्धि: अर्थव्यवस्था में वृद्धि कुल रोजगार में परिलक्षित नहीं होती है। एनएसएसओ (नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन/राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन) के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, 15-59 वर्ष के आयु वर्ग के लिए भारत की श्रम शक्ति भागीदारी दर लगभग 53% थी, जिसका अर्थ है कि लगभग 50% कार्यबल बेरोजगार है।
  • आनत लिंगानुपात का मुद्दा: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन/आईएलओ) एवं विश्व बैंक के अनुसार, भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर 1990 में 34.8% से गिरकर 2013 में 27% हो गई है। महिलाओं की भागीदारी के बिना, भारत जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त करने का स्वप्न नहीं देख सकता है।

जनसांख्यिकीय लाभांश तथा आर्थिक विकास: आवश्यक कदम

  • मानव पूंजी का निर्माण: भारत को प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण तक सभी स्तरों पर मानव पूंजी निर्माण में अधिक निवेश करना होगा। इसकी वृद्धिमान कार्यशील आयु की जनसंख्या के कौशल समुच्चय में वृद्धि करने हेतु नवाचार एवं अनुसंधान तथा विकास में भी निवेश किया जाना चाहिए।
  • कौशल विकासः युवा आबादी की नियोजनीयता में वृद्धि करने हेतु कौशल विकास अत्यावश्यक है। भारत के युवाओं को कौशल विकास प्रदान करने हेतु सरकार ने 2014 में स्किल इंडिया मिशन की शुरुआत की थी। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन/एनएसडीसी) की स्थापना 2022 तक भारत में 500 मिलियन लोगों को कौशल/कौशल उन्नयन के समग्र लक्ष्य के साथ युवा आबादी को कौशल प्रदान करने के लिए की गई थी।
  • शिक्षा : शिक्षा का प्रत्येक स्तर पर संवर्धन आवश्यक है। जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ प्राप्त करने हेतु, शिक्षा पर निवेश को जीडीपी के 6% तक बढ़ाना चाहिए, जैसा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 सहित  अनेक समितियों तथा नीतियों द्वारा अनुशंसित है।
  • स्वास्थ्य: स्वास्थ्य सेवा सामाजिक बुनियादी ढांचे का एक महत्वपूर्ण खंड है। भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को सुदृढ़ करने हेतु, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 द्वारा अनुशंसित क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% निवेश किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे में सुधार से युवा श्रम बल के लिए अधिक संख्या में उत्पादक दिन सुनिश्चित होंगे, एवं इस प्रकार अर्थव्यवस्था की उत्पादकता में वृद्धि होगी।
  • रोजगार सृजन: अतिरिक्त युवाओं को कार्यबल में समाहित करने हेतु हमें प्रति वर्ष दस मिलियन रोजगार सृजित करने की आवश्यकता है। औपचारिक नौकरियों की संख्या में, विशेष रूप से श्रम प्रधान क्षेत्रों तथा निर्यातोन्मुखी क्षेत्रों में उल्लेखनीय वृद्धि करने की आवश्यकता है।
  • सुशासन: सुशासन विकास के लिए एक पूर्वापेक्षा है। सुचारू रूप से कार्य करने वाली संस्थाओं वाला देश,  विधि के शासन के प्रति सम्मान, भ्रष्टाचार का निम्न स्तर, संपत्ति के अधिकारों का सम्मान, अनुबंधों की पवित्रता इत्यादि सभी को समान अवसर प्रदान करने हेतु पूर्वनिर्दिष्ट हैं।

 

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