प्रारूप मध्यस्थता विधेयक 2021

प्रारूप मध्यस्थता विधेयक 2021: प्रासंगिकता

  • जीएस 3: कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की संरचना, संगठन एवं कार्यप्रणाली—सरकार के मंत्रालय एवं विभाग; दबाव समूह तथा औपचारिक/अनौपचारिक संघ एवं राजनीति में उनकी भूमिका।

 

प्रारूप मध्यस्थता विधेयक 2021: प्रसंग

  • हाल ही में, विधि एवं न्याय मंत्रालय ने देश के प्रथम मध्यस्थता कानून– प्रारूप मध्यस्थता विधेयक 2021 का मसौदा विधेयक जारी किया है।

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प्रारूप मध्यस्थता विधेयक 2021: मुख्य बिंदु

  • यह विधेयक ‘समझौता’ एवं ‘मध्यस्थता’ शब्दों को एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग करने की अंतरराष्ट्रीय प्रथा पर विचार करता है।
  • इसके अतिरिक्त, घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के मुद्दों पर मध्यस्थता में एक विधान निर्मित करना भी समीचीन हो गया है क्योंकि भारत मध्यस्थता पर सिंगापुर अभिसमय का एक हस्ताक्षरकर्ता है।
  • विधेयक का उद्देश्य देश में विशेष रूप से संस्थागत मध्यस्थता को बढ़ावा देना, प्रोत्साहित करना एवं मध्यस्थता की सुविधा प्रदान करना है।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवाएं

प्रारूप मध्यस्थता विधेयक 2021: : मुख्य विशेषताएं

  • प्रारूप विधेयक मुकदमेबाजी-पूर्व मध्यस्थता का प्रस्ताव का प्रावधान करता है एवं साथ ही तत्काल राहत की मांग के मामले में सक्षम न्यायिक मंचों/ न्यायालयों से संपर्क करने हेतु वादियों/पक्षकारों के हितों की रक्षा करता है।
  • मध्यस्थता समझौता करारनामा (एमएसए) के रूप में मध्यस्थता के सफल परिणाम को विधि द्वारा प्रवर्तनीय बनाया गया है। चूंकि मध्यस्थता समझौता करारनामा पक्षकारों/पार्टियों के मध्य सहमति से बाहर है, अतः सीमित आधार पर इसे चुनौती देने की अनुमति प्रदान की गई है।
  • मध्यस्थता प्रक्रिया, संपादित की गई मध्यस्थता की गोपनीयता की रक्षा करती है एवं कतिपय मामलों में इसके प्रकटीकरण के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रदान करती है।
  • 90 दिनों के भीतर राज्य/जिला/तालुका कानूनी प्राधिकारियों के साथ मध्यस्थता निपटान समझौते का पंजीकरण का प्रावधान भी किया गया है ताकि इस प्रकार पहुंचे समझौते के प्रमाणित अभिलेख का अनुरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
  • भारतीय मध्यस्थता परिषद की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • सामुदायिक मध्यस्थता का प्रावधान करता है।

 

न्यायालय की अवमानना

वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र

  • आर्बिट्रेशन,  मेडिएशन एवं समझौता, वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) हेतु तीन विधियां हैं।

 

आर्बिट्रेशन

  • मध्यस्थता एक न्यायालयी प्रक्रिया की भांति है क्योंकि पक्ष एक वाद (मुकदमे) की तरह साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं जहां एक तृतीय पक्ष पूरी स्थिति को सुनता है एवं अपना निर्णय देता है, जो पक्षकारों के लिए बाध्यकारी होता है।
  • मध्यस्थता स्वैच्छिक अथवा अनिवार्य विधियों से की जा सकती है।
  • स्वैच्छिक मध्यस्थता: जब दोनों पक्षों के मध्य कोई विवाद उत्पन्न होता है एवं वे अपने मतभेदों को स्वयं हल करने में असमर्थ होते हैं, तो पक्ष अपने विवाद को उचित प्राधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए सहमत होते हैं एवं निर्णय दोनों पक्षों पर बाध्यकारी होगा।
  • अनिवार्य मध्यस्थता: यह एक ऐसी विधि है जहां पक्षकारों को अपनी ओर से बिना किसी इच्छा के मध्यस्थता स्वीकार करने की अनिवार्यता होती है।
    • जब किसी औद्योगिक विवाद में एक पक्ष दूसरे पक्ष के कृत्य से व्यथित अनुभव करता है, तो वह विवाद को निपटाने के लिए न्यायनिर्णयन के किसी भी संगठन को विवाद को संदर्भित करने के लिए उपयुक्त सरकार से संपर्क कर सकता है।

लोक अदालत

मेडिएशन

  • मध्यस्थता वैकल्पिक विवाद समाधानों में से एक है जो विवादों के समाधान हेतु एक स्वैच्छिक एवं अनौपचारिक प्रक्रिया है
  • मध्यस्थता एक ऐसी प्रक्रिया है जो पक्षकारों के नियंत्रण में होती है
  • मेडिएटर एक मध्यस्थ व्यक्ति के रूप में कार्य करता है जो उनके विवाद के समझौते के बिंदु पर आने में सहायता करता है।

 

समझौता/सुलह

  • एक सुलहकर्ता एक तृतीय पक्ष है जो पक्षों के विवाद के निस्तारण में शामिल होता है।
  • आम तौर पर, विवादों के निस्तारण हेतु एक सुलहकर्ता होता है, किंतु एक से अधिक सुलहकर्ता भी हो सकते हैं, यदि पक्षकारों ने इसके लिए अनुरोध किया हो।
  • यदि एक से अधिक सुलहकर्ता हैं तो वे संबंधित मामले में संयुक्त रूप से कार्य करेंगे।

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