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लोक अदालत

लोक अदालत: प्रासंगिकता

  • जीएस 2: विभिन्न अंगों,  विवाद निवारण तंत्रों एवं संस्थानों के मध्य शक्तियों का पृथक्करण।

मूल अधिकारों की सूची

लोक अदालत: प्रसंग

  • हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने अवलोकन किया है कि लोक अदालत के पास गुण-दोष के आधार पर मामले का निर्णय करने का कोई क्षेत्राधिकार नहीं है।

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लोक अदालत: प्रमुख बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि एक बार जब यह पाया जाता है कि पक्षकारों के मध्य समझौता या निपटारा नहीं किया जा सकता है, तो लोक अदालत के पास गुण-दोष के आधार पर मामलों का निर्णय करने का कोई  क्षेत्राधिकार नहीं है।
  • शीर्ष अदालत ने कहा है कि विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के प्रावधान स्पष्ट रूप से प्रावधान कर दे हैं कि लोक अदालत का अधिकार क्षेत्र विवाद के पक्षकारों के मध्य समझौता करना होगा।
  • न्यायालय ने कहा है कि एक बार समझौता विफल हो जाने पर, लोक अदालत को मामले की गुणावगुण पर निर्णय करने हेतु मामला मूल न्यायालय को वापस करना होगा

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लोक अदालत

  • लोक अदालत वैकल्पिक परिवाद निवारण तंत्रों में से एक है जहां विधि के न्यायालय में वाद-पूर्व स्तर पर अथवा लंबित मामलों को सौहार्दपूर्ण ढंग से समझौता किया जाता है।

 

विधिक आधार

  • लोक अदालतों को विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है।
  • अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 39 के अनुसार समाज के कमजोर वर्गों को निशुल्क विधिक सेवाएं प्रदान करने के प्रावधानों को सम्मिलित करता है।

शक्तियां

  • उक्त अधिनियम के तहत, लोक अदालतों द्वारा दिए गए अधिनिर्णय को एक दीवानी न्यायालय की डिक्री माना जाता है एवं यह सभी पक्षों के लिए अंतिम तथा बाध्यकारी होता है एवं इस प्रकार के निर्णय के विरुद्ध किसी भी न्यायालय के समक्ष कोई अपील नहीं होती है।
  • यदि पक्ष लोक अदालत के निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं, तो इस तरह के निर्णय के विरुद्ध अपील का कोई प्रावधान नहीं है, हालांकि वे उचित क्षेत्राधिकार के न्यायालय में जाकर वाद आरंभ करने के लिए स्वतंत्र हैं।

 

42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976

कोई अदालत शुल्क नहीं

  • लोक अदालत में वाद दायर करने पर कोई अदालती शुल्क देय नहीं है।
  • यदि विधि के न्यायालय में लंबित मामला लोक अदालत को भेजा जाता है एवं बाद में निपटारा किया जाता है, तो मूल रूप से न्यायालय में शिकायतों/याचिका पर भुगतान किया गया न्यायालय शुल्क भी पक्षकारों को वापस कर दिया जाता है।

 

लोक अदालत की संरचना

  • किसी क्षेत्र के लिए आयोजित प्रत्येक लोक अदालत में सम्मिलित होंगे:
  • अध्यक्ष के रूप में एक न्यायिक अधिकारी, एवं
  • सदस्य के रूप में एक अधिवक्ता एवं एक सामाजिक कार्यकर्ता

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लोक अदालत के प्रकार

  • राष्ट्रीय लोक अदालत
    • ये राज्य प्राधिकरण स्तर से लेकर तालुका स्तर तक सभी स्तरों पर संपूर्ण देश में नियमित अंतराल पर आयोजित किए जाते हैं।
  • स्थायी लोक अदालत
    • इन्हें एक अध्यक्ष एवं दो सदस्यों के साथ स्थायी निकायों के रूप में स्थापित किया जाता है जो सार्वजनिक उपादेयता सेवाओं से संबंधित मामलों के निपटारे के लिए एक वाद-पूर्व तंत्र प्रदान करते हैं।
    • यदि विवाद के पक्षकार निपटान तंत्र का पालन करने में विफल रहते हैं, तो स्थायी लोक अदालत के पास मामले को निर्धारित करने का क्षेत्राधिकार है।
    • भारत के विधिक सेवा प्राधिकरण के अनुसार, स्थायी लोक अदालत का क्षेत्राधिकार 10 लाख रुपए से अधिक के बाद का नहीं है।
  • चलंत लोक अदालत
  • चलंत (मोबाइल) लोक अदालत ऐसी अदालतें हैं जो विवाद में पक्षों को सौहार्दपूर्ण समाधान तक पहुंचने में सहायता करने हेतु एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करती हैं।

सर्वोच्च न्यायालय की त्वरित प्रणाली

लोक अदालत: चुनौतियां

  • शीघ्र न्याय प्रदान करने की आकांक्षा में, कभी-कभी पक्षकारों के अधिकारों की उपेक्षा की जाती है।
  • अधिवक्ता भी मामले को लोक अदालत में निपटाने के लिए रेफर करने से कतराते हैं
  • लोक अदालत समझौता पर आधारित है अतः इसे परिवाद निवारण के प्रभावी निवारण के रूप में नहीं माना जाता है बल्कि यह न्याय वितरण की पहले से ही विलम्बित प्रक्रिया में और विलंब उत्पन्न करता है।
  • एक प्रभावशाली पक्ष अधिवक्ता को सख्त प्रक्रिया का पालन करने के लिए धमकाता है। यह लोक अदालत की स्थापना के पीछे के वास्तविक आधार को चुनौती देता है।
  • यह भी आरोप लगाया जाता है कि राजनीतिक लाभ के लिए किसी मामले पर निर्णय लेने हेतु न्यायाधीशों को चयनित किया जाता है

 

न्यायालय की अवमानना

 

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