सूचना का अधिकार अधिनियम- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: शासन के महत्वपूर्ण पहलू– नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व तथा संस्थागत एवं अन्य उपाय।
सूचना का अधिकार अधिनियम
- सूचना का अधिकार अधिनियम एक क्रांतिकारी अधिनियम है जिसका उद्देश्य भारत में सरकारी संस्थानों में पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।
- भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं के निरंतर प्रयासों के बाद 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम अस्तित्व में आया।
- हम पहले ही निम्नलिखित प्रमुख अवधारणाओं पर चर्चा कर चुके हैं-
- इस लेख में, हम आरटीआई अधिनियम एवं गोपनीयता तथा आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (ओएसए) के अधिकार के मध्य दुविधाओं पर चर्चा करने जा रहे हैं।
सूचना का अधिकार बनाम निजता का अधिकार
- आधुनिक समय में जब तकनीकी सूचना का उल्लंघन बहुत आम है, निजता का अधिकार एवं सूचना का अधिकार दोनों ही आवश्यक मानव अधिकार हैं।
- पूरकता: अधिकांश मामलों में सरकारों को व्यक्तियों के प्रति उत्तरदायी ठहराने में दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
- परस्पर विरोधी क्षेत्र: जहां आरटीआई सूचनाओं तक पहुंच में वृद्धि करता है, वहीं गोपनीयता का अधिकार इसकी सुरक्षा करता है।
- जब परस्पर विरोधी अधिकारों के सामंजस्य का प्रश्न उठता है, तो उसे-
- व्यापक जनहित को न्याय प्रदान करना चाहिए
- सार्वजनिक नैतिकता की उन्नति करनी चाहिए
सूचना का अधिकार बनाम आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (ओएसए)
- ओएसए की पृष्ठभूमि: यह 1923 में ब्रिटिश द्वारा कुछ विशिष्ट प्रकार की सूचनाओं को गोपनीय रखने हेतु अधिनियमित किया गया था, जिसमें राज्य, कूटनीति, राष्ट्रीय सुरक्षा, जासूसी एवं अन्य राज्य के रहस्यों से जुड़ी सूचनाएं सम्मिलित हैं।
- आरटीआई एवं ओएसए के मध्य संघर्ष की स्थिति में: आरटीआई अधिनियम के प्रावधान ओएसए के प्रावधानों को अध्यारोपित (ओवरराइड) करते हैं।
- आरटीआई अधिनियम की धारा 22: इसमें कहा गया है कि इसके प्रावधान ओएसए में उनके साथ असंगत किसी भी तथ्य के बावजूद प्रभावी होंगे।
- आरटीआई अधिनियम की धारा 8(2): एक सार्वजनिक प्राधिकरण ओएसए के अंतर्गत सम्मिलित की गई सूचना तक पहुंच की अनुमति प्रदान कर सकता है, “यदि प्रकटीकरण में सार्वजनिक हित, संरक्षित हित को होने वाली हानि से अधिक महत्वपूर्ण है”।
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