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सूचना का अधिकार अधिनियम- लोक प्राधिकरण तथा आरटीआई की प्रयोज्यता

सूचना का अधिकार अधिनियम- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: शासन के महत्वपूर्ण पहलू– नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही तथा संस्थागत एवं अन्य उपाय।

सूचना का अधिकार अधिनियम-पृष्ठभूमि

  • सूचना का अधिकार अधिनियम एक क्रांतिकारी अधिनियम है जिसका उद्देश्य भारत में सरकारी संस्थानों में पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।
  • सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 में भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं के निरंतर प्रयासों के बाद अस्तित्व में आया।
  • हम पहले ही सूचना का अधिकार अधिनियम की प्रमुख अवधारणाओं, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं इसके उद्देश्यों तथा आरटीआई अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा कर चुके हैं।
  • इस लेख में, हम सार्वजनिक प्राधिकरण क्या है, आरटीआई आवेदनों के उत्तर देने हेतु समय अवधि तथा इसकी प्रयोज्यता पर चर्चा करेंगे।

सूचना का अधिकार अधिनियम- लोक प्राधिकरण तथा आरटीआई की प्रयोज्यता_3.1

 

सूचना का अधिकार अधिनियम- लोक प्राधिकरण

  • आरटीआई अधिनियम 2005 की धारा 2(जे) इस अधिनियम के अंतर्गत प्राप्य सूचना का अधिकार को परिभाषित करती है जो किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण के नियंत्रण के अधीन है।
  • इस संदर्भ में लोक प्राधिकरण का अर्थ है स्वशासन की कोई संस्था या निकाय अथवा संस्था जो स्थापित या गठित हो-
    • संविधान द्वारा अथवा उसके अधीन;
    • संसद/राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित किए गए किसी अन्य विधान द्वारा।
    • उपयुक्त सरकार द्वारा जारी अधिसूचना या आदेश द्वारा, और इसमें कोई भी शामिल है-
      • निकाय के स्वामित्व के अधीन, नियंत्रित अथवा पर्याप्त रूप से वित्त पोषित;
      • उपयुक्त सरकार द्वारा प्रदान की गई निधियों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पर्याप्त रूप से वित्त पोषित गैर-सरकारी संगठन ।

सूचना का अधिकार अधिनियम- आरटीआई की प्रयोज्यता

  • निजी संस्थाएं: यद्यपि सामान्य तौर पर निजी संस्थाएं आरटीआई अधिनियम 2005 के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आती हैं, किंतु निजीकृत सार्वजनिक उपादेयता कंपनियां इसके दायरे में आती हैं, जैसा कि केंद्रीय सूचना आयोग ने सरबजीत रॉय बनाम दिल्ली विद्युत नियामक आयोग वाद में पुनः इसकी पुष्टि की है।
  • राजनीतिक दल: वर्तमान में, किसी भी राजनीतिक दल ने आरटीआई अधिनियम के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार नहीं किया है।
    • पूर्व में, केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने माना था कि राजनीतिक दल सार्वजनिक प्राधिकरण हैं एवं आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत नागरिकों के प्रति जवाबदेह हैं।
    • इसे निरस्त करने हेतु, केंद्र सरकार ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2013 प्रस्तुत किया जो राजनीतिक दलों को इस विधान के दायरे से हटा देगा।
    • वर्तमान में, यह वाद सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है।
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश: सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय को सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे में लाने के दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा।

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