सिंधु घाटी सभ्यता (इंडस वैली सिविलाइजेशन/आईवीसी), जिसे सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के रूप में भी जाना जाता है, दक्षिण एशिया के उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में कांस्य युगीन सभ्यता थी। यह 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक एवं इसके पूर्ण विकसित (परिपक्व) रूप में 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में रहे। सिंधु सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के रूप में भी जाना जाता है, इसके प्रकार के स्थल के पश्चात, हड़प्पा, इसके प्रथम स्थलों का उत्खनन 20 वीं शताब्दी के प्रारंभ में ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत में हुआ था एवं जो अब पाकिस्तान में है। इस लेख में हम हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न स्थलों एवं उनके उत्खनन के बारे में चर्चा करेंगे।
| वर्ष |
स्थल |
अवस्थिति |
उत्खनन कर्ता |
प्रमुख उपलब्धियाँ |
| 1921 |
हड़प्पा |
साहीवाल जिला, पंजाब; रावी नदी के तट के समीप |
दया राम साहनी |
- सिंधु लिपि के साथ मिट्टी के बर्तनों का टुकड़ा
- घनाकार चूना पत्थर बाट (वजन)
- मानव शरीर रचना विज्ञान की बलुआ पत्थर की मूर्तियाँ
- तांबे की बैलगाड़ी
- अनाज का भंडार शव पेटिका (ताबूत) समाधि (केवल हड़प्पा में प्राप्त)
- टेराकोटा मूर्तियां
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| 1922 |
मोहनजो-दारो |
सिंध का लरकाना जिला; सिंधु नदी के तट के समीप |
राखल दास बनर्जी |
- महा स्नानागार (ग्रेट बाथ)
- अन्नागार
- एकशृंगी मुद्राएं/मुहर (यूनिकॉर्न सील)
- नृत्यरत लड़की की कांस्य मूर्ति
- हिरण, हाथी, बाघ एवं गैंडों के साथ एक आदमी की मुहर- (इसे पशुपति मुहर माना जाता है)
- दाढ़ी वाले आदमी की सेलखड़ी (स्टीटाइट) की प्रतिमा
- कांस्य का भैंसा
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| 1 9 2 9 |
सुतकागेंडोर |
बलूचिस्तान; दास्त नदी पर |
स्टीन |
- हड़प्पा एवं बेबीलोन के मध्य व्यापार बिंदु
- चकमक पत्थर के ब्लेड
- पत्थर के बर्तन
- पत्थर के बाणाग्र
- शैल मणिकाऍं/मनके
- मिट्टी के बर्तन
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| 1931 |
चन्हुदड़ो
( एकमात्र शहर जहां गढ़ नहीं है) |
मुल्लां संधा, सिंध; सिंधु नदी पर |
एन जी मजूमदार |
- चूड़ी निर्माण का कारखाना
- स्याही पात्र (इंक पॉट)
- मनका निर्माताओं की दुकान
- एक बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते का पदचिह्न
- एक चालक के साथ गाड़ी
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| 1935 |
आमरी |
बलूचिस्तान के समीप; सिंधु नदी के तट पर |
एन जी मजूमदार |
- मृग के साक्ष्य
- गैंडे के साक्ष्य
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| 1953 |
कालीबंगा |
हनुमानगढ़ जिला, राजस्थान, घग्गर नदी के तट पर |
अमलानंद घोष |
- गढ़ युक्त निचला शहर
- लकड़ी की अपवाह प्रणाली
- तांबे का बैल
- भूकंप के साक्ष्य
- लकड़ी के हल
- ऊंट की हड्डी
- अग्नि वेदियां
- ऊंट की अस्थियां
- हल के निशान वाली भूमि
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| 1953 |
लोथल |
गुजरात; खंभात की खाड़ी के निकट, भोगवा नदी पर |
आर. राव |
- बंदरगाह नगर
- कब्रिस्तान
- हाथी दांत के तराजू
- तांबे का कुत्ता
- पहला मानव निर्मित बंदरगाह
- गोदी बाड़ा
- चावल की भूसी
- अग्नि वेदी
- शतरंज का खेल
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| 1964 |
सुरकोटदा |
गुजरात |
जे पी जोशी |
- घोड़ों की अस्थियां
- मनके
- पत्थर से आवरित मनके
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| 1974 |
- बनवाली (अरीय सड़कों वाला एकमात्र शहर)
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हरियाणा का फतेहाबाद जिला |
आर एस बिष्ट |
- मनके
- जौ
- अण्डाकार बस्ती
- खिलौना हल
- जौ के दानों की सर्वाधिक संख्या
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| 1985 |
- धोलावीरा (एकमात्र स्थल जिसे तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है)
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गुजरात; कच्छ के रण में |
आर एस बिष्ट |
- विशेष जल प्रबंधन
- विशाल जल भंडार
- अद्वितीय जल दोहन प्रणाली
- बांध
- तटबंध
- स्टेडियम
- शिला को उत्कीर्ण कर निर्मित वास्तुकला
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