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भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था कैसे बन सकता है?

5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था: प्रासंगिकता

  • जीएस 3: भारतीय अर्थव्यवस्था एवं नियोजन, संसाधन, वृद्धि, विकास एवं रोजगार से संबंधित मुद्दे।

 

उम्मीदवारों ने अब तक बहुत सारे लेख पढ़े हैं जो भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात करते हैं। यह यूपीएससी सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है एवं उम्मीदवारों को इस विषय को  विस्तृत रूप से तैयार करने की आवश्यकता है। इस लेख में, हम आपको पर्याप्त वैचारिक सामग्री प्रदान करेंगे जो यूपीएससी  सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन के पेपर 3 में अच्छे अंक लाने में आपकी सहायता कर सकती है।

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2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था

  • विभिन्न रिपोर्टों ने सुझाव दिया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति धीरे-धीरे कोविड-19 के विध्वंस से उबर रही है। हालांकि, पुनर्प्राप्ति (रिकवरी) पर्याप्त नहीं है एवं 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कुछ कदमों का निश्चित रूप से पालन किया जाना चाहिए। नीचे, हम अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्रों- प्राथमिक, माध्यमिक एवं तृतीयक में सुझाए गए उपायों पर चर्चा कर रहे हैं।

 

प्राथमिक क्षेत्र

  • भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है। आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार, 60% लोग अभी भी कृषि क्षेत्र में संलग्न हैं,  किंतु कृषि जीवीए लगभग 18% के आस पास है। यद्यपि,  कोविड-19 के इन कठिन समय में, कृषि एकमात्र उज्जवल पक्ष (सिल्वर लाइनिंग) है जो 4% की वृद्धि प्रदर्शित कर रही है।
  • मोटे तौर पर कृषि के 3 चरण होते हैं- उत्पादन पूर्व, उत्पादन एवं उत्पादन पश्च।

 

उत्पादन-पूर्व

उत्पादन-पूर्व (प्री-प्रोडक्शन) चरण में, निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए:

  • अधिक संख्या में किसानों को एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) में शामिल करना क्योंकि हमारे 86% किसान छोटे एवं सीमांत श्रेणी के अंतर्गत आते हैं;
  • खरीफ रणनीति 2021 जैसी योजनाओं के माध्यम से किफायती एवं अच्छी गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराना;
  • नदी जोड़ने वाली परियोजनाओं एवं पीएमकेएसवाई (प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना) जैसी योजनाओं के माध्यम से सिंचाई सुविधाएं प्रदान करना;
  • पीएम-आशा (प्रधान मंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान) एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य/ मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) जैसी योजनाओं के माध्यम से मूल्य आश्वासन एवं;
  • पीएम-किसान जैसी योजनाओं के माध्यम से प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण (कैश-इन-हैंड) करना।

 

उत्पादन

उत्पादन चरण में, प्रयत्न निम्नलिखित बिंदुओं पर होने चाहिए:

  • पीकेवीवाई (परंपरागत कृषि विकास योजना) जैसी योजनाओं के माध्यम से उर्वरकों की भूमिका को कम करना;
  • एसएमएएम (कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन/ सब-मिशन ऑन एग्रीकल्चरल मैकेनाइजेशन) जैसी योजनाओं के माध्यम से कृषि-मशीनीकरण;
  • पीएमएफबीवाई (प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना) जैसी योजनाओं के माध्यम से फसल बीमा,एवं ;
  • सूक्ष्म कृषि जैसी जलवायु-प्रतिस्कंदी कृषि पद्धतियों को अपनाना।

 

उत्पादन-पश्चात/पोस्ट-प्रोडक्शन

उत्पादन-पश्चात चरण में, निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए:

  • शांता कुमार समिति की अनुशंसा को स्वीकार कर भंडारण सुविधाओं का निर्माण करना;
  • पीएम-एफएमई एवं संपदा जैसी योजनाओं के जरिए फॉरवर्ड लिंकेज एवं बैकवर्ड लिंकेज में सुधार करना;
  • कृषि निर्यात नीति, 2018 के क्रियान्वयन के माध्यम से कृषि निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना।
  • इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, बागवानी हेतु एकीकृत विकास मिशन एवं पीएमएमएसवाई (प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना) जैसी योजनाओं के माध्यम से पशुपालन, बागवानी एवं मत्स्य पालन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

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माध्यमिक क्षेत्र

  • हमारे देश में विनिर्माण क्षेत्र उदारीकरण निजीकरण एवं वैश्वीकरण (एलपीजी) सुधारों के बाद से समस्याओं का सामना कर रहा है। पीएमआई सूचकांक से भयावह वास्तविकता स्पष्ट हो जाती है।
  • हमारे देश में रोजगार का सबसे बड़ा प्रदाता एमएसएमई क्षेत्र अनेक संकटों से जूझ रहा है, जिसे तत्काल स्तरोन्नयन (अपग्रेड) करने की आवश्यकता है।
  • नकदी के अभाव से जूझ रहे एमएसएमई की सहायता हेतु सीजीटीएमएसई (क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट फॉर माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज) जैसे कदम सही दिशा में हैं।
  • इसके अतिरिक्त, विपणन सहायता योजना जैसे कदमों के माध्यम से स्थानीय उत्पादों के विपणन को सशक्त करने की आवश्यकता है।
  • विनिर्माण खंड के पुनरुद्धार के चरण 4एम – मैटेरियल (सामग्री), मशीन, मैन पावर (कार्यबल) एवं  मेथड्स (पद्धतियों) पर आधारित होने चाहिए।
  • मैटेरियल/सामग्री: मैटेरियल के मोर्चे पर, भारत को विश्व के एक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित होने की आवश्यकता है, जो निरंतर सरकारी प्रयासों से ही संभव होगा।
  • मशीन: मशीन के मोर्चे पर, विश्व उद्योग 0 को अपना रही है, इसलिए हमें भी अपने पारंपरिक संयंत्रों को स्मार्ट कारखानों में रूपांतरित करने हेतु कदम उठाने की आवश्यकता है।
  • मैन पावर/कार्यबल: जहां तक ​​कार्यबल का संबंध है, इस प्रौद्योगिकी संचालित समाज में एक कुशल कार्यबल एक पूर्वापेक्षा बन गया है एवं यह संकल्प एवं स्ट्राइव जैसी योजनाओं की भूमिका को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
  • मेथड्स/पद्धति: पद्धति के मोर्चे पर, उत्पादन की कम लागत वाले उत्पादों के मानकीकरण को सक्षम करने हेतु पारंपरिक एवं अप्रचलित प्रक्रियाओं को रूपांतरित करने की आवश्यकता है। इन कदमों से हमारे निवेश अनुपात में वृद्धि होगी एवं साथ ही आईकोर (वृद्धिशील पूंजी-उत्पादन अनुपात) में कमी आएगी।

 

तृतीयक क्षेत्र

  • सेवा क्षेत्रों को भी सरकार के प्रेरण की आवश्यकता है।त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई एवं सुगमता कार्य सूची (ईज एजेंडा) जैसे कदमों के जरिए बैंकिंग क्षेत्र को पटरी पर लाने की  आवश्यकता है।
  • इसके अतिरिक्त, हमारी शिक्षा प्रणाली को तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा को समाभिरूप होने तथा शिक्षा को उद्योगों के लिए प्रासंगिक बनाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • इसी तरह, भारत को विभिन्न प्रकार के पर्यटन स्थलों का सौभाग्य प्राप्त है। अतः, हमें प्रसाद (तीर्थयात्रा कायाकल्प एवं आध्यात्मिक वृद्धि अभियान/पिलग्राइमेज रिजूवनेशन एंड स्पिरिचुअल ऑग्मेंटेशन ड्राइव) तथा हृदय (राष्ट्रीय विरासत शहर विकास और वृद्धि योजना/ नेशनल हेरिटेज सिटी डेवलपमेंट एंड ऑग्मेंटेशन योजना) जैसी योजनाओं के माध्यम से पर्यावरण को संकट में डाले बिना इसका लाभ उठाने की आवश्यकता है।
  • इसके अतिरिक्त, आधारिक अवसंरचना को एक कायाकल्प (ओवरहॉल) की आवश्यकता है जिसे राष्ट्रीय आधारिक अवसंरचना पाइपलाइन ( नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन) में उचित रूप से लक्षित किया गया है।
  • स्टार्ट-अप को सुरक्षा एवं क्षेपण (थ्रस्ट) देने की नितांत आवश्यकता है एवं स्टार्ट-अप इंडिया, एंजेल निवेशकों के लिए आयकर छूट तथा स्टार्ट-अप इंडिया सीड फंड योजना जैसी योजनाएं देश की स्वस्थ अर्थव्यवस्था को अनुरक्षित रखने में योगदान देंगी।

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आगे की राह

  • इन कदमों को मानव पूंजी, कौशल एवं सेवाकालीन प्रशिक्षण तथा मूलभूत सामाजिक सुरक्षा में दीर्घकालिक निवेश उपलब्ध कराने के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
  • हमारी अर्थव्‍यवस्‍था के व्‍यापक विकास हेतु एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • ऊपर वर्णित कदम आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को वास्तविकता में परिवर्तित करने में अत्यधिक सहायक होंगे।

 

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