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तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध

तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • आधुनिक भारतीय इतिहास- अठारहवीं शताब्दी के मध्य से लेकर वर्तमान तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, मुद्दे।

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तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध की पृष्ठभूमि

  • भारत में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए ब्रिटिश  एवं मराठा साम्राज्य के  मध्य आंग्ल मराठा युद्ध लड़े गए थे। इन युद्धों के कारण मराठा साम्राज्य की पराजय हुई एवं भारत में ब्रिटिश वर्चस्व स्थापित हुआ।
  • द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध (1802-05) ने भारत में मराठा शक्ति को कमजोर कर दिया जो अंततः तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध (1817-18) के बाद नष्ट हो गई।

द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध

तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध के कारण

  • सत्ता प्राप्त करने का अंतिम मराठा प्रयास:  यद्यपि द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध में मराठे पराजित हुए, किंतु भारत में सर्वोच्च शक्ति बनने की उनकी आकांक्षाएं बनी रहीं, जिससे तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध हुआ।
  • पिंडारीसमस्या: पिंडारी मराठा सेना का हिस्सा थे जो मराठा शासकों के कमजोर होने के बाद बेरोजगार हो गए थे। उन्होंने अंग्रेजों एवं अन्य व्यापारियों पर छापा मारा।
    • अंग्रेजों ने इसके लिए मराठों को दोषी ठहराया एवं यहां तक ​​कि मराठों ने भी गुप्त रूप से पिंडारियों का समर्थन किया, जिससे तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ।
  • अंग्रेजों द्वारा मराठों पर ज्यादती: 1813 में, गवर्नर-जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स ने मराठों के विरुद्ध अनेक कार्रवाईयां की।
    • अंग्रेजों ने तब बाजीराव द्वितीय पर कुशासन का आरोप लगाया  तथा कई अपमानजनक संधियों के साथ मराठों को उत्पीड़ित करना जारी रखा।
    • चिढ़कर बाजीराव द्वितीय ने पुणे में ब्रिटिश रेसीडेंसी को लूटा एवं जला दिया।

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध

तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध का क्रम 

  • गठबंधन: मराठा प्रमुखों पेशवा बाजीराव द्वितीय, मल्हारराव होल्करएवं मुधोजी द्वितीय भोंसले ने तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी (ईआईसी) के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बनाया।
    • चौथे प्रमुख मराठा प्रमुख दौलतराव शिंदे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा लगाए गए राजनयिक दबाव के कारण इस गठबंधन से दूर रहे।
  • पेशवा की पराजय: पेशवा के नेतृत्व वाला गठबंधन खड़की  तथा कोरेगांव  के युद्ध में पराजित हो गया था।
    • जिसके बाद पेशवा की सेना ने अपनी पकड़ को बनाए रखने के लिए अनेक छोटी-छोटी लड़ाइयाँ लड़ीं  किंतु उसका कोई लाभ नहीं हुआ।

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तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध के परिणाम 

  • ब्रिटिश सत्ता की सर्वोच्चता: अंग्रेजों ने अनेक युद्धों में मराठों के प्रमुखों को पराजित किया एवं विभिन्न संधियों पर हस्ताक्षर किए, जिससे भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का आधिपत्य सुनिश्चित हुआ।
  • मराठा प्रदेशों का विलय: अंग्रेजों ने बॉम्बे प्रेसीडेंसी के अंतर्गत अधिकांश मराठा क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया  एवं बाजीराव द्वितीय को कानपुर के पास बिठूर में एक छोटी सी जागीर पर भेज दिया।
    • पेशवा बाजीराव द्वितीय को बिठूर में जीवन यापन करने हेतु पेंशन दी गई, जहां वे अपनी मृत्यु तक रहे।
  • मराठा संघ का नाममात्र प्रमुख: छत्रपति शिवाजी के वंशज को नाममात्र का प्रमुख बनाया गया एवं सतारा में रखा गया।
  • ब्रिटिश वर्चस्व: मराठे भारत में ब्रिटिश वर्चस्व सुनिश्चित करने की राह में अंतिम बाधा थे। तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध में अंग्रेजों की व्यापक विजय ने भारत में ब्रिटिश वर्चस्व की स्थापना की।

 

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