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भारत में भ्रष्टाचार

प्रासंगिकता

  • जीएस 3: आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौतियां उत्पन्न करने में बाह्य राज्य एवं गैर-राज्य कर्ताओं की भूमिका।

 

भ्रष्टाचार क्या है?

  • ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल भ्रष्टाचार को निजी लाभ के लिए न्यासित (सौंपी गई) शक्ति के दुरुपयोग के रूप में परिभाषित करता है।
  • द्वितीय एआरसी के अनुसार, भ्रष्टाचार = एकाधिकार विवेक-जवाबदेही
  • भ्रष्टाचार एक जटिल सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक घटना है जो सभी देशों को प्रभावित करती है।

भारत में भ्रष्टाचार_3.1

 

भ्रष्टाचार के प्रकार

  • भ्रष्टाचार की एक क्रिया में दो पक्ष होते हैं: रिश्वत देने वाला एवं रिश्वत लेने वाला।
  • मिलीभगत भ्रष्टाचार: मिलीभगत भ्रष्टाचार तब घटित होता है जब रिश्वत, देने वाले और लेने वाले दोनों को अवैध तरीकों से अपने व्यक्तिगत लाभ को आगे बढ़ाने में सहायता करता है। सांठ-गांठ वाला भ्रष्टाचार देश के लिए एक गंभीर खतरा है।
  • प्रपीड़क भ्रष्टाचार: प्रपीड़क भ्रष्टाचार दलित एवं वंचित समुदाय का शोषण करता है। इसे अत्याचार का कृत्य कहा जाता है क्योंकि रिश्वत देने वाला बलपूर्वक वसूली का शिकार होता है।

 

भ्रष्टाचार का प्रभाव

  • भ्रष्टाचार विश्वास को मिटाता है, लोकतंत्र को कमजोर करता है, आर्थिक विकास को बाधित करता है एवं असमानता, निर्धनता, सामाजिक विभाजन एवं पर्यावरण संकट को और गहन कर देता है है।
  • भ्रष्टाचार लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करता है, आर्थिक विकास को मंद करता है एवं सरकारी अस्थिरता में योगदान देता है।
  • भ्रष्टाचार चुनावी प्रक्रियाओं को विकृत करके, विधि के शासन को विकृत करके एवं नौकरशाही दलदल उत्पन्न करके लोकतांत्रिक संस्थाओं की नींव पर हमला करता है, जिसके अस्तित्व का एकमात्र कारण रिश्वत की याचना है।
  • आर्थिक विकास अवरुद्ध होता है क्योंकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को हतोत्साहित किया जाता है एवं देश के भीतर छोटे व्यवसायों को भ्रष्टाचार के कारण आवश्यक “स्टार्ट-अप लागत” को दूर करना प्रायः असंभव प्रतीत होता है।

 

भ्रष्टाचार के कारण

  • आर्थिक कारण: अनौपचारिक क्षेत्र का उच्च अंश, उच्च असमानताएं।
  • राजनीतिक कारण: राजनीति का अपराधीकरण, चुनावों में बेहिसाब धन का उपयोग, पक्षपातपूर्ण पूंजीवाद (क्रोनी कैपिटलिज्म)।
  • प्रशासनिक कारण: नौकरशाही का राजनीतिकरण, औपनिवेशिक नौकरशाही, असफल प्रशासनिक सुधार, सार्वजनिक विकास का अभाव एवं लोक सेवकों की कम आय, न्यायिक विफलताएं, प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र की कमी।
  • सामाजिक एवं नैतिक कारण: बढ़ता हुआ व्यक्तिवाद एवं भौतिकवाद, मूल्य आधारित शिक्षा को प्रभावित करने में शिक्षा प्रणाली की विफलता, सामाजिक भेदभाव एवं शोषण।

 

भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष में भारत के प्रयास

  • भारत ने 2003 में भ्रष्टाचार के विरुद्ध यूएनजीए द्वारा अंगीकृत किए गए संयुक्त राष्ट्र के अभिसमयों पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • भारत ने एशिया प्रशांत के लिए एडीबी ओईसीडी भ्रष्टाचार विरोधी कार्य योजना पर भी हस्ताक्षर किए हैं।
  • पारदर्शी नागरिक अनुकूल सेवाएं प्रदान करने एवं भ्रष्टाचार को कम करने के लिए प्रणालीगत संशोधन एवं सुधार।
    • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण पहल के माध्यम से पारदर्शी तरीके से सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत नागरिकों को प्रत्यक्ष कल्याणकारी लाभ का वितरण।
    • सार्वजनिक खरीद में ई-निविदा का क्रियान्वयन।
    • ई-गवर्नेंस का प्रारंभ एवं प्रक्रिया तथा प्रणालियों का सरलीकरण।
    • सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जीईएम) के माध्यम से सरकारी खरीद की शुरुआत।
  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में 07.2018 को संशोधन किया गया है। यह स्पष्ट रूप से रिश्वत देने के कृत्य का अपराधीकरण करता है एवं वाणिज्यिक संगठनों के वरिष्ठ प्रबंधन के संबंध में एक प्रतिपक्षी दायित्व निर्मित कर व्यापक भ्रष्टाचार को रोकने में सहायता करेगा।
  • केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने विभिन्न आदेशों एवं परिपत्रों के माध्यम से प्रमुख खरीद गतिविधियों में सभी संगठनों के लिए एवं जहां भी कोई अनियमितता / कदाचार देखा जाता है, प्रभावी एवं त्वरित जांच सुनिश्चित करने हेतु सत्यनिष्ठा समझौते को अंगीकृत करने की सिफारिश की।
  • लोकपाल संस्था को अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति के द्वारा संचालित किया गया है। लोकपाल को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत लोक सेवकों के विरुद्ध कथित अपराधों के संबंध में शिकायतों को सीधे प्राप्त करने एवं उन पर कानूनी कार्यवाही करने हेतु वैधानिक रूप से अधिदेशित किया गया है।
  • दिल्ली में यूनिट एरिया स्कीम, पंजाब में ई- कॉप्स, आंध्र प्रदेश में ई-गवर्नेंस, विवेकाधिकार को कम करने एवं पारदर्शिता में सुधार करने हेतु।

 

भ्रष्टाचार को दूर करने की दिशा में भारत के प्रयासों में समस्याएं

  • पीसीए में भ्रष्टाचार की कोई परिभाषा नहीं दी गई है।
  • वोहरा समिति ने व्यावसायिक घरानों, सरकारी पदाधिकारियों एवं राजनेताओं के मध्य गठजोड़ का खुलासा किया।
  • भारत में व्यवस्थागत एवं गैर-व्यवस्थागत भ्रष्टाचार दोनों इस रीति से भ्रष्टाचार के संस्कृतिकरण की ओर अग्रसर हैं।

भारत में भ्रष्टाचार_4.1

 

आवश्यक समाधान

द्वितीय एआरसी ने भ्रष्टाचार को कम करने हेतु निम्नलिखित सिफारिशें की हैं

  • मिलीभगत वाले भ्रष्टाचार को विशेष अपराध घोषित किया जाना चाहिए।
  • रंगेहाथ पकड़े गए लोक सेवक पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व सहमति आवश्यक नहीं होनी चाहिए।
  • एनजीओ जो पर्याप्त मात्रा में धन प्राप्त करते हैं उन्हें पीसीए के अंतर्गत सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  • बेनामी लेनदेन अधिनियम को लागू करने हेतु आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए।
  • विधि आयोग के अनुसार व्हिसल ब्लोअर की सुरक्षा के लिए कानून प्रस्तावित किया जाना चाहिए।
  • अनुच्छेद 105(2) में संशोधन किया जाना चाहिए ताकि यह प्रावधान किया जा सके कि सांसद द्वारा प्राप्त उन्मुक्तियों में भ्रष्टाचार के कृत्य सम्मिलित नहीं हों।
  • अनुच्छेद 311 को निरस्त किया जाना चाहिए।
  • सीवीसी को लोकपाल के मार्गदर्शन में कार्य करना चाहिए।
  • लोकपाल तीन सदस्यीय निकाय होना चाहिए।
  • यदि सेवाएं प्राप्त नहीं होती हैं तो उपचार प्रदान करके सिटीजन चार्टर को प्रभावी बनाया जाना चाहिए।
  • बड़ी संख्या में सेवाओं में सरकार का एकाधिकार समाप्त करना।
  • मध्य प्रदेश में ज्ञानदूत परियोजना के समान सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
  • सत्यनिष्ठा संधियों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
    • सत्यनिष्ठा समझौता: वस्तुओं एवं सेवाओं के क्रय में सम्मिलित सार्वजनिक एजेंसियों एवं एक सार्वजनिक अनुबंध के लिए बोली लगाने वाले के मध्य इस आशय का समझौता कि बोलीदाता अनुबंध को सुरक्षित/ प्राप्त करने हेतु किसी भी अवैध परितोषण का भुगतान नहीं करेगा।
  • आकस्मिक निरीक्षण
  • सभी बड़े सरकारी संगठनों में ऑनलाइन शिकायत ट्रैकिंग प्रणाली।
  • पांचवें वेतन आयोग एवं एनसीआरडब्ल्यूसी ने स्थानांतरण उद्योग के संबंध में सिफारिशें कीं।
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