नौकरशाही की डिजिटल चुनौती

नौकरशाही की डिजिटल चुनौती- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: शासन के महत्वपूर्ण पहलू- पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व
    • ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएं, सीमाएं तथा संभावनाएं।

नौकरशाही की डिजिटल चुनौती- संदर्भ

  • यदि लोक सेवक सोशल मीडिया का उचित उपयोग नहीं करते हैं, तो स्वतंत्र सलाहकार के रूप में उनकी भूमिका खतरे में पड़ जाती है।

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भारतीय नौकरशाही- डेस्क से डिजिटल में परिवर्तन

  • यह बदलाव अनेक क्षेत्रों जैसे ई-ऑफिस तथा ई-गवर्नेंस की ओर संक्रमण में है।
  • संबोधित नहीं किए गए क्षेत्र: डिजिटल स्पेस के लिए संगठनात्मक एवं नौकरशाही प्रतिक्रिया में परिवर्तन, विशेष रूप से सोशल मीडिया के उपयोग पर काफी हद तक ध्यान नहीं दिया गया है।

सिविल सेवकों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग का मुद्दा

  • अनेक व्यक्ति सिविल सेवकों द्वारा अपनी आधिकारिक क्षमता में सोशल मीडिया के उपयोग का समर्थन करते हैं, जबकि अनेक तर्क देते हैं कि अनामता, भारतीय नौकरशाही की परिभाषित विशेषता, प्रक्रिया में जोखिम में पड़ जाती है।
  • सोशल मीडिया बनाम नौकरशाही: दोनों एक दूसरे के साथ असंगत हैं।
    • जबकि नौकरशाही को पदानुक्रम, औपचारिक संबंधों और मानक प्रक्रियाओं के द्वारा अभिलक्षित किया है, सोशल मीडिया की पहचान खुलेपन, पारदर्शिता एवं लचीलेपन से होती है।
  • स्व-प्रचार के लिए सोशल मीडिया का उपयोग: सोशल मीडिया का उपयोग सिविल सेवकों द्वारा स्व-प्रचार हेतु किया जा रहा है एवं इसे अभिगम्यता एवं उत्तरदायित्व के नाम पर सही ठहराया जा रहा है।
    • किंतु उत्तरदायित्व एवं अभिगम्यता सुनिश्चित करने का यह सही तरीका नहीं है क्योंकि सिविल सेवकों को उनकी वांछित सूचना साझा करने तथा उन लोगों को जवाब देने का लाभ होता है जो वे चाहते हैं।
    • यह कोई औपचारिक व्यवस्था नहीं है जहां अभिगम्यता एवं उत्तरदायित्व व्यवहार की एकरूपता पर आधारित हो।
  • अनामता एवं अपारदर्शिता के साथ जुड़े मुद्दे: सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के माध्यम से अनामता  एवं अपारदर्शिता को पहले ही कमजोर बना दिया गया है, किंतु वे प्रमुख विशेषताएं बनी हुई हैं।
    • लोक शासन के युग में, नौकरशाही के स्वभावतः अनाम रहने का कोई अर्थ नहीं है।

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019

शासन पर सोशल मीडिया के सकारात्मक पहलू

  • वर्धित अभिगम्यता: कई सिविल सेवक आम लोगों के लिए सुलभ हो गए हैं एवं सार्वजनिक सेवा वितरण के मुद्दों को सोशल मीडिया के उपयोग के माध्यम से हल किया गया है।
  • विश्वास सृजित करता है तथा खुलेपन को बढ़ावा देता है: सोशल मीडिया ने लंबे समय से अपारदर्शी एवं अगम्य मानी जाने वाली संस्था के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण भी निर्मित किया है।
    • सोशल मीडिया ने सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों के बारे में लोगों में जागरूकता में वृद्धि की है।
  • सोशल मीडिया नौकरशाहों को राजनीतिक रूप से तटस्थ रहते हुए सार्वजनिक वार्ता को आकार देने एवं जनता के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।

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नौकरशाही एवं सोशल मीडिया- आगे की राह

  • सार्वजनिक मूल्यों के प्रतीक एवं तथ्यों के भंडार के रूप में नौकरशाही: निजी तौर पर शासन करने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए,  विशेष रूप से जब फर्जी समाचारों एवं सार्वजनिक नीति के दायरे में व्यवस्थित प्रचार के कारण मूल्यों एवं तथ्यों दोनों को नया स्वरूप दिया जा रहा है।
  • सोशल मीडिया के उपयोग को संस्थागत बनाना: जैसा कि कई वेस्टमिंस्टर प्रणाली-आधारित देशों में किया जा रहा है।
    • उदाहरण के लिए, यूके में ब्रेक्जिट चर्चा के दौरान, कई सिविल सेवकों ने राजनीतिक रूप से तटस्थ रहते हुए भी सोशल मीडिया के उपयोग के माध्यम से सार्वजनिक चर्चा को आकार दिया।
  • सोशल मीडिया उत्तरदायित्व, संस्थागत एवं नागरिक-केंद्रित उत्तरदायित्व का कोई विकल्प नहीं है: वास्तव में, कार्यालय समय के दौरान सोशल मीडिया का उपयोग करना एवं इसे उचित ठहराना आंशिक रूप से अनैतिक है, जब लंबी दूरी की यात्रा कर पहुंचे कुछ लोग कार्यालय के बाहर इंतजार कर रहे हों।

निष्कर्ष

  • नौकरशाहों को सार्वजनिक नीतियों में सुधार के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करना चाहिए। यदि वे सोशल मीडिया का उपयोग उचित रूप से नहीं करते हैं, तो स्वतंत्र सलाहकार के रूप में उनकी भूमिका खतरे में पड़ जाती है।

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manish

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