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44वां संशोधन अधिनियम- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान एवं आधारिक संरचना।
संवैधानिक संशोधन अधिनियम
- भारतीय संविधान यह सुनिश्चित करने के लिए संविधान में संशोधन की गुंजाइश छोड़ता है कि यह परिवर्तित होते समय के अनुसार प्रासंगिक बना रहे। यही कारण है कि कभी-कभी भारतीय संविधान को ‘जीवंत दस्तावेज’ भी कहा जाता है।
- संविधान के भाग XX का अनुच्छेद 268: यह संविधान एवं इसकी प्रक्रिया में संशोधन करने के लिए भारतीय संसद की शक्तियों से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि संसद इस उद्देश्य के लिए निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार किसी भी प्रावधान को जोड़ने, परिवर्तित करने अथवा निरसन के माध्यम से संविधान में संशोधन कर सकती है।
44वां संविधान संशोधन अधिनियम 1978- पृष्ठभूमि
- 1978 में, जनता पार्टी की सरकार ने 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के माध्यम से लाए गए विभिन्न संदिग्ध संशोधनों को पूर्णतया परिवर्तित करने के लिए 45 वें संशोधन विधेयक के माध्यम से 44 वें संशोधन अधिनियम को अधिनियमित करने का निर्णय लिया।
- उदाहरण के लिए, 44 वें संशोधन अधिनियम ने संविधान के अंतर्गत राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान इसे और अधिक पारदर्शी बनाने एवं सत्तारूढ़ सरकार के उत्तरदायित्व में वृद्धि करने हेतु अनुच्छेद 352 को संशोधित किया।
- 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान में और भी कई संशोधन किए गए। वे नीचे सूचीबद्ध हैं-
44वां संशोधन अधिनियम- प्रमुख संशोधन
- संसद एवं राज्य विधान मंडलों के संबंध में
- लोकसभा एवं राज्यसभा के कार्यकाल की पुनः स्थापना: 44 वें संशोधन अधिनियम ने लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के मूल कार्यकाल को पुनर्स्थापित किया जो कि 5 वर्ष की अवधि का है।
- गणपूर्ति (कोरम): 44 वें संशोधन अधिनियम ने संसद एवं राज्य विधानसभाओं में गणपूर्ति के संबंध में प्रावधानों को पुनर्स्थापित कर दिया।
- संसदीय विशेषाधिकार: 44 वें संशोधन अधिनियम ने संसदीय विशेषाधिकारों से संबंधित प्रावधानों में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के संदर्भ को भी विलोपित कर दिया।
- प्रकाशन/रिपोर्ट का अधिकार: 44 वें संशोधन अधिनियम ने संसद एवं राज्य विधानसभाओं की कार्यवाही की वास्तविक रिपोर्ट के समाचार पत्र में प्रकाशन को संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया।
- भारत के राष्ट्रपति एवं राज्यों के राज्यपाल के संबंध में
- 44 वें संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रपति को कैबिनेट के परामर्श को पुनर्विचार के लिए एक बार वापस भेजने का अधिकारप्रदान किया।
- इसने पुनर्विचार के पश्चात प्राप्त परामर्श को भी राष्ट्रपति हेतु बाध्यकारी बना दिया।
- 44 वें संशोधन अधिनियम ने उस प्रावधान को विलोपित कर दिया जिसने अध्यादेश जारी करने में राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं प्रशासकों के समाधान को निर्णायक बना दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के संबंध में
- 44 वें संशोधन अधिनियम ने सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों की कुछ शक्तियों को पुनर्स्थापित कर दिया।
- 44 वें संशोधन अधिनियम ने उन प्रावधानों को भी विलोपित कर दिया जो राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं लोकसभा के अध्यक्ष के निर्वाचन से संबंधित विवादोंका न्याय निर्णय करने कि न्यायालय की शक्ति को छीन लेते थे।
- राष्ट्रीय आपातकाल एवं राष्ट्रपति शासन के संबंध में
- सशस्त्र विद्रोह: 44 वें संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रीय आपातकाल के संबंध में ‘आंतरिक अशांति’ शब्द को ‘सशस्त्र विद्रोह’ से प्रतिस्थापित कर दिया।
- कैबिनेट की भूमिका: 44 वां संशोधन अधिनियम यह प्रावधान करता है कि राष्ट्रपति मात्र कैबिनेट की लिखित संस्तुति के आधार पर ही राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं।
- प्रक्रियात्मक रक्षोपाय: 44 वें संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रीय आपातकाल एवं राष्ट्रपति शासन के संबंध में कुछ प्रक्रियात्मक रक्षोपाय किए।
- मौलिक अधिकारों का निलंबन: 44 वां संशोधन अधिनियम यह प्रावधान करता है कि अनुच्छेद 20 एवं अनुच्छेद 21 द्वारा प्रत्याभूत मौलिक अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान निलंबित नहीं किया जा सकता है।
- अन्य प्रमुख संशोधन:
- संपत्ति के अधिकार को विधिक अधिकार बनाया: 44 वें संशोधन अधिनियम ने संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया एवं इसे केवल एक विधिक अधिकार बना दिया।
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