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संपादकीय विश्लेषण: वह पाल जिसकी भारतीय कूटनीति, शासन कला को आवश्यकता है

प्रासंगिकता

  • जीएस 2: भारत और उसके पड़ोस- संबंध।

UPSC Current Affairs

प्रसंग

  • भारत ने इस वर्ष गणतंत्र दिवस परेड में मध्य एशिया के पांच नेताओं की मेजबानी करने का निर्णय लिया है। जबकि निमंत्रण प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण है, भारत-मध्य एशिया संबंधों को मूर्त रूप देने के लिए अत्यधिक परिश्रम करने की आवश्यकता है।

 

मध्य एशिया के साथ संबंध बनाने का भारत का प्रयास

  • 2015 में, निर्वाचित होने के एक वर्ष पश्चात, हमारे प्रधान मंत्री ने सभी पांच मध्य एशियाई राज्यों का दौरा किया।
  • भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल एवं विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी दिल्ली में अपने मध्य एशियाई समकक्षों की मेजबानी की।
  • भारत की महाद्वीपीय रणनीति: कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना, प्रारंभिक रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग, भारत की सॉफ्ट पावर को संवर्धित करना एवं व्यापार तथा निवेश को बढ़ावा देना।
  • यद्यपि प्रशंसनीय, उपरोक्त रणनीतियाँ इस क्षेत्र में व्याप्त व्यापक भू-राजनीतिक चुनौतियों का समाधान करने हेतु अपर्याप्त प्रतीत होती हैं।

 

भारतीय कूटनीति का केंद्र बिंदु: व्यापक रूपरेखा

यूरेशिया पर ध्यान केंद्रित करना

  • यूरेशिया पृथ्वी पर सर्वाधिक वृहद महाद्वीपीय क्षेत्र है, जिसमें संपूर्ण यूरोप एवं एशिया शामिल हैं।
  • निम्नलिखित सदृश कारणों से यूरेशिया एक भू-राजनीतिक रूप से सक्रिय क्षेत्र बन गया है
    • अफगानिस्तान से संयुक्त राज्य अमेरिका/उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सैन्य बलों की वापसी,
    • इस्लामी कट्टरपंथी शक्तियों का उदय,
    • रूस की ऐतिहासिक स्थिरीकरण भूमिका की परिवर्तित होती गतिशीलता (हाल ही में कजाकिस्तान में)
    • संबंधित बहुपक्षीय तंत्र – शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ), सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन एवं यूरेशियन आर्थिक संघ।
  • इस क्षेत्र का सक्रिय सदस्य बनने के लिए, भारत को एक जटिल एवं दीर्घकालिक अभ्यास करने की आवश्यकता है।

 

समुद्री सुरक्षा को फिर से संरेखित करना

  • वर्तमान में, भारत की समुद्री सुरक्षा मुख्य रूप से, राष्ट्रीय समुद्री रणनीति, हिंद महासागर क्षेत्र के लिए सुरक्षा एवं क्षेत्र में सभी के लिए विकास (एसएजीएआर/सागर) पहल एवं भारत प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) तथा क्वाड से संबंधित प्रमुख पहलों द्वारा निर्देशित है।
  • चीन की आक्रामकता को निम्नलिखित मामलों में देखा जा सकता है: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, परंपरागत रूसी प्रभाव को कम करना, ऊर्जा एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच प्राप्त करना, निर्भरता उत्पन्न करने वाले निवेश, साइबर एवं डिजिटल अंतर्वेशन एवं संपूर्ण महाद्वीप में राजनीतिक एवं आर्थिक अभिजात वर्ग के मध्य प्रभाव का विस्तार .
  • क्षेत्र में अपना आधिपत्य स्थापित करने के चीनी प्रयास का प्रतिरोध करने हेतु भारतीय रणनीतियों को बेहतर ढंग से संरेखित करने की आवश्यकता है। भारतीय समुद्री रणनीतियों को निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:
    • व्यापार, वाणिज्य एवं नौवहन की स्वतंत्रता के लिए समुद्री मार्गों को खुला रखना,
    • दक्षिण चीन सागर एवं अन्य स्थानों पर चीनी क्षेत्रीय विस्तार का विरोध करना, एवं
    • समुद्र तटीय राज्यों को अंतरराज्यीय संबंधों में चीनी धौंस दिखाने की रणनीति का विरोध करने में सहायता करना।
  • जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) की केंद्रीयता इंडो-पैसिफिक की कुंजी है, मध्य एशियाई राज्यों की केंद्रीयता यूरेशिया की कुंजी (के लिए महत्वपूर्ण) होनी चाहिए।

 

 अनुयोजकता के मुद्दों का समाधान

  • हमारे देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में दोनों ओर – पूर्व में पाकिस्तान एवं पश्चिम में चीन से सैन्यीकरण में वृद्धि देखी जा रही है।
  • अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे जैसे वैकल्पिक मार्ग, जो ईरान के कारण अमेरिकी शत्रुता से पीड़ित हैं, को उचित राजनयिक कदमों द्वारा चालू करने की आवश्यकता है।
  • आईएनएसटीसी के बारे में: अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा ( इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर) भारत, ईरान, अफगानिस्तान, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया एवं यूरोप के मध्य माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल एवं सड़क मार्गों का 7,200 किलोमीटर लंबा बहुविध (मल्टी-मोड) नेटवर्क है।।

 

समुद्री सुरक्षा में ‘आत्मनिर्भर’ होना

  • अमेरिका-रूस संबंध अनेक टकरावों से पीड़ित हैं। इसमें शामिल हैं, यूक्रेन से संबंधित टकराव, भविष्य में नाटो विस्तार के लिए रूसी विरोध,एवं अन्य कारणों के साथ इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज (आईएनएफ) संधि का अवसान।
  • इसके अतिरिक्त, अफगानिस्तान से सैन्य बलों की वापसी एवं उसके यूरोपीय कमान के तहत सैनिकों की कमी जैसी वैश्विक सैन्य प्रतिबद्धताओं की अमेरिकी समीक्षा भी विश्व मामलों में सक्रिय भूमिका निभाने हेतु अमेरिका की अनिच्छा प्रदर्शित कर रही है।
  • इस स्थिति में भारतीय रणनीतियाँ किसी विशेष देश के इर्द-गिर्द केंद्रित नहीं होनी चाहिए एवं इस क्षेत्र के सभी हितधारकों को शामिल करना चाहिए।

 

समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग करना

  • भारत को ईरान एवं रूस के साथ मध्य एशिया में अपने भागीदारों के साथ प्रभावी सहयोग एवं एससीओ, यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (ईएईयू) तथा सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) से लेकर आर्थिक एवं सुरक्षा एजेंडा के साथ अधिक अग्रसक्रिय जुड़ाव के माध्यम से अपने अधिकार का दावा करने की आवश्यकता है। ।

UPSC Current Affairs

 आगे की राह

  • भारत को अपने हितों के अनुरूप महाद्वीपीय एवं समुद्री सुरक्षा के अपने मानकों को परिभाषित करने की आवश्यकता होगी।
  • महाद्वीपीय एवं समुद्री सुरक्षा के मध्य उचित संतुलन स्थापित करना हमारे दीर्घकालिक सुरक्षा हितों का सर्वोत्तम प्रत्याभूतिदाता (गारंटर) होगा।
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