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सतत विकास एवं 17 एसडीजी-1

सतत विकास एवं 17 एसडीजी-1: प्रासंगिकता

  • जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।

 

यह दो लेखों की श्रंखला होगी। इस लेख में, हम सतत विकास एवं इसके विकासक्रम की अवधारणा पर चर्चा करेंगे। आगामी लेख में हम संयुक्त राष्ट्र 17 एसडीजी पर चर्चा करेंगे। दोनों लेख  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2022 के सभी चरणों- प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार के लिए  अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।

 

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सतत विकास क्या है?

  • सतत विकास को उस विकास के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो भविष्य की पीढ़ियों की उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना वर्तमान पीढ़ी की की आवश्यकताओं को पूर्ण करता है।

 

सतत विकास के आयाम

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, सतत विकास के चार आयाम हैं – समाज, पर्यावरण, संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था – जो परस्पर अंतर्ग्रथित हैं, पृथक नहीं।

  • पर्यावरणीय आयाम: सतत विकास प्राकृतिक संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा देता है। यह कोयले जैसे ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के प्रतिस्थापन के रूप में ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देता है।
  • आर्थिक आयाम: सतत विकास समान आर्थिक विकास पर केंद्रित है जो पर्यावरण को हानि पहुंचाए बिना सभी के लिए संपन्नता उत्पन्न करता है। यह अपने सभी रूपों में निर्धनता उन्मूलन का पक्ष पोषण करता है।
  • सामाजिक आयाम: सतत विकास का केंद्र बिंदु मात्र पर्यावरण की तुलना में कहीं अधिक व्यापक है। यह एक  सुदृढ़ सुदृढ़, स्वस्थ एवं न्यायपूर्ण समाज सुनिश्चित करने के बारे में भी है। इसका अर्थ वर्तमान एवं भविष्य के समुदायों में समस्त व्यक्तियों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करना, व्यक्तिगत कल्याण, सामाजिक सामंजस्य एवं समावेश को बढ़ावा देना तथा समान अवसर सृजित करना है ।
  • सांस्कृतिक आयाम: सांस्कृतिक विरासत से सांस्कृतिक एवं रचनात्मक उद्योगों तक, संस्कृति सतत विकास के आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय आयामों को संबल प्रदान करने वाली एवं चालक दोनों है।

 

सतत विकास: उत्पत्ति

  • सतत विकास की अवधारणा को पहली बड़ी अंतरराष्ट्रीय मान्यता 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में प्राप्त हुई।
  • यद्यपि इस शब्द का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया था, फिर भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस धारणा से सहमत था कि विकास एवं पर्यावरण दोनों को पारस्परिक रूप से लाभकारी तरीके से प्रबंधित किया जा सकता है।
  • पर्यावरण एवं विकास पर विश्व आयोग की रिपोर्ट, ‘सतत विकास’ शब्द को 15 वर्ष पश्चात आवर कॉमन फ्यूचर में लोकप्रिय बनाया गया था।
  • 1987 ब्रंटलैंड आयोग रिपोर्ट, आवर कॉमन फ्यूचर ने सतत विकास को “ऐसे विकास के रूप में वर्णित किया है जो भविष्य की पीढ़ियों की उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना वर्तमान पीढ़ी की की आवश्यकताओं को पूर्ण करता है।”
  • सतत विकास की अवधारणा ने 1992 में रियो डी जेनेरियो में आयोजित पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का आधार निर्मित किया।
  • हाल ही में, सतत विकास पर विश्व शिखर सम्मेलन 2002 में जोहान्सबर्ग में रियो के बाद से प्रगति का आकलन करने हेतु आयोजित किया गया था।
  • जोहान्सबर्ग शिखर सम्मेलन ने तीन प्रमुख परिणाम दिए: एक राजनीतिक घोषणा, क्रियान्वयन की जोहान्सबर्ग योजना एवं साझेदारी पहल की एक श्रृंखला। प्रमुख प्रतिबद्धताओं में सतत उपभोग एवं उत्पादन, जल एवं स्वच्छता तथा ऊर्जा शामिल हैं।

टिप्पणी: सतत विकास पर विश्व शिखर सम्मेलन, विश्व सतत विकास शिखर सम्मेलन से अलग है। जबकि सतत विकास पर विश्व शिखर सम्मेलन को पिछली बार 2002 में आयोजित किया गया था (जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है), एवं विश्व सतत विकास शिखर सम्मेलन विश्व के सर्वाधिक प्रबुद्ध नेताओं एवं विचारकों को एक मंच पर एकत्रित करके वैश्विक समुदायों के लाभ हेतु दीर्घकालिक समाधान प्रदान करने के लिए द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) का एक वार्षिक प्रमुख कार्यक्रम है। 

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अगले लेख में, हम संयुक्त राष्ट्र 17 सतत विकास लक्ष्यों पर चर्चा करेंगे।

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