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भारत में मौद्रिक नीति

भारत में मौद्रिक नीति: प्रासंगिकता

  • जीएस 3: भारतीय अर्थव्यवस्था एवं आयोजना, संसाधनों का अभिनियोजन, वृद्धि, विकास एवं रोजगार से संबंधित मुद्दे।

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मौद्रिक नीति क्या है?

  • मौद्रिक नीति, आर्थिक नीति के अंतिम उद्देश्य को प्राप्त करने की दृष्टि से ब्याज दरों, मुद्रा आपूर्ति एवं ऋण की उपलब्धता जैसे परिमाणों को विनियमित करने हेतु केंद्रीय बैंक के नियंत्रण में मौद्रिक साधनों के उपयोग से संदर्भित है।
  • भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को मौद्रिक नीति के संचालन का उत्तरदायित्व सौंपा गया है। यह उत्तरदायित्व भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत स्पष्ट रूप से अधिदेशित है।

मौद्रिक नीति का लक्ष्य

  • मौद्रिक नीति का प्राथमिक उद्देश्य विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना है।
  • मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिए, मुद्रास्फीति सीमा के भीतर होनी चाहिए। संशोधित आरबीआई अधिनियम में प्रत्येक पांच वर्ष में एक बार रिजर्व बैंक के परामर्श से भारत सरकार द्वारा मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित करने का प्रावधान है।
    • मई 2016 में, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम, 1934 को नम्य मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढांचे के क्रियान्वयन के लिए एक वैधानिक आधार प्रदान करने हेतु संशोधित किया गया था।

 

संकुचनकारी एवं विस्तारवादी मौद्रिक नीति

  • संकुचनकारी मौद्रिक नीति एक मौद्रिक उपाय है जिसका अर्थ है केंद्रीय बैंक द्वारा मौद्रिक विस्तार की दर में कमी। यह एक सूक्ष्म आर्थिक उपकरण है जिसे केंद्रीय बैंकों या सरकारी अंतःक्षेपों द्वारा निर्मित की गई उद्गामी मुद्रास्फीति या अन्य आर्थिक विकृतियों से निपटने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
  • विस्तारवादी मौद्रिक नीति संकुचनकारी मौद्रिक नीति के पूर्णतः विपरीत है। विस्तारवादी नीति व्यापक आर्थिक नीति का एक शिथिल रूप है जो आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना चाहता है। यह कीनेसियन अर्थशास्त्र के सामान्य नीतिगत आदेशों का हिस्सा है। इसका उपयोग आर्थिक मंदी एवं अवमंदन के दौरान आर्थिक चक्रों के नकारात्मक पक्ष को कम करने के लिए किया जाता है।

 

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मौद्रिक नीति के उपकरण

  • ऐसे अनेक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष साधन हैं जिनका उपयोग मौद्रिक नीति को क्रियान्वित करने हेतु किया जाता है।
  • रेपो दर: (निश्चित) ब्याज दर जिस पर रिज़र्व बैंक तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत सरकार एवं अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों के संपार्श्विक के विरुद्ध बैंकों को रातोंरात तरलता प्रदान करता है।
  • रिवर्स रेपो दर: (निश्चित) ब्याज दर जिस पर रिज़र्व बैंक, एलएएफ के तहत पात्र सरकारी प्रतिभूतियों के संपार्श्विक के एवज में बैंकों से रातोंरात (ओवर नाइट) आधार पर तरलता को अवशोषित करता है।
  • तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ): एलएएफ में ओवरनाइट के साथ-साथ आवधिक रेपो नीलामियां सम्मिलित हैं। क्रमिक रूप से, रिजर्व बैंक ने अनेक अवधियों की सूक्ष्म समस्वरण (फाइन-ट्यूनिंग) परिवर्तनीय दर रेपो नीलामियों के अंतर्गत अंतःक्षेपित तरलता के अनुपात में वृद्धि की है। आवधिक रेपो का उद्देश्य इंटरबैंक टर्म मनी मार्केट को विकसित करने में सहायता करना है, जो बदले में ऋणों एवं जमाओं के मूल्य निर्धारण  हेतु बाजार आधारित मानदंड निर्धारित कर सकता है, एवं इसलिए मौद्रिक नीति के प्रसारण में सुधार करता है। रिजर्व बैंक परिवर्तनीय ब्याज दर रिवर्स रेपो नीलामियां भी आयोजित करता है, जैसा कि बाजार की स्थितियों के अंतर्गत आवश्यक हो।
  • सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ): एक ऐसी सुविधा जिसके अंतर्गत अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक अपने सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) संविभाग (पोर्टफोलियो) में एक सीमा तक ब्याज की शास्तिक दर पर रिजर्व बैंक से अतिरिक्त राशि उधार ले सकते हैं। यह बैंकिंग प्रणाली को अप्रत्याशित चलनिधि आघातों के प्रति एक सुरक्षा वाल्व प्रदान करता है।
  • कॉरिडोर: एमएसएफ दर एवं रिवर्स रेपो दर भारित औसत मांग मुद्रा (कॉल मनी) दर में दैनिक संचलन के लिए कॉरिडोर का निर्धारण करते हैं।
  • बैंक दर: यह वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक विनिमय या अन्य वाणिज्यिक पत्रों के हुंडियों (बिलों) को क्रय करने अथवा पुनः भुनाने के लिए तैयार है। बैंक दर भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 49 के तहत प्रकाशित की जाती है। इस दर को एमएसएफ दर के साथ अनुयोजित कर दिया गया है एवं इसलिए, नीति रेपो दर में परिवर्तन के साथ-साथ एमएसएफ दर में परिवर्तन होने पर स्वचालित रूप से परिवर्तित हो जाता है।
  • नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर): औसत दैनिक शेष जो एक बैंक को रिजर्व बैंक के पास अपनी शुद्ध मांग एवं सावधि देनदारियों (एनडीटीएल) के ऐसे प्रतिशत के हिस्से के रूप में बनाए रखने की आवश्यकता होती है जिसे रिजर्व बैंक समय-समय पर भारत के राजपत्र में सूचित कर सकता है।
  • सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर): एनडीटीएल का वह अंश जो एक बैंक को सुरक्षित एवं तरल परिसंपत्ति, जैसे कि बिना भार वाली सरकारी प्रतिभूतियों, नकदी एवं सोने में बनाए रखने हेतु आवश्यक है। एसएलआर में परिवर्तन प्रायः निजी क्षेत्र को ऋण प्रदान करने हेतु बैंकिंग प्रणाली में संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं।
  • मुक्त बाजार संक्रियाएं / ओपन मार्केट ऑपरेशंस (ओएमओ): इनमें सरकारी प्रतिभूतियों की एकमुश्त खरीद एवं बिक्री, दोनों सम्मिलित हैं, जो क्रमशः स्थायी तरलता के अंतःक्षेपण एवं अवशोषण के लिए हैं।
  • बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस): मौद्रिक प्रबंधन के लिए यह साधन 2004 में आरंभ किया गया था। बृहत पूंजी प्रवाह से उत्पन्न होने वाली अधिक स्थायी प्रकृति की अधिशेष तरलता को लघु-दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों एवं ट्रेजरी बिलों के विक्रय के माध्यम से अवशोषित किया जाता है। इस प्रकार अभिनियोजित की गई नकदी को रिजर्व बैंक के पास एक पृथक सरकारी खाते में रखा जाता है।
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