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क्योटो प्रोटोकोल: प्रासंगिकता
- जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।
क्योटो प्रोटोकॉल के बारे में
- यूएनएफसीसीसी (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र संरचना अभिसमय) का कॉप 3 1997 में क्योटो, जापान में आयोजित हुआ था।
- इसने सहमत व्यक्तिगत लक्ष्यों के अनुसार हरित गृह गैसों (जीएचजी) के उत्सर्जन को सीमित करने एवं कम करने के लिए कुछ प्रतिबद्धताओं एवं रोडमैप को देखा। इन प्रतिबद्धताओं को क्योटो प्रोटोकॉल के रूप में जाना जाता है।
- क्योटो प्रोटोकॉल ने विकसित देशों के लिए अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने हेतु कुछ कानूनी रूप से बाध्यकारी दायित्वों की स्थापना की।
क्योटो प्रोटोकॉल: महत्वपूर्ण तथ्य
- यह 16 फरवरी 2005 को प्रवर्तन में आया।
- भारत ने 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल का अनुसमर्थन किया।
- जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका कभी भी क्योटो प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं था, कनाडा ने 2012 में स्वयं को इससे वापस ले लिया।
- वर्तमान में, क्योटो प्रोटोकॉल के 192 पक्षकार हैं।
क्योटो प्रोटोकॉल: प्रथम प्रतिबद्धता अवधि हेतु लक्ष्य
क्योटो प्रोटोकॉल की प्रथम प्रतिबद्धता अवधि के लक्ष्य छह मुख्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को सम्मिलित करते हैं, अर्थात्:
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2);
- मीथेन (CH4);
- नाइट्रस ऑक्साइड (N2O);
- हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी);
- परफ्लोरोकार्बन (पीएफसी); एवं
- सल्फर हेक्साफ्लोराइड (SF6)
अनुकूलन कोष
- क्योटो प्रोटोकॉल के पक्षकार विकासशील देशों में ठोस अनुकूलन परियोजनाओं एवं कार्यक्रमों के वित्तपोषण के लिए एक अनुकूलन कोष की स्थापना की गई थी।
- कोष (फंड) को स्वच्छ विकास तंत्र (सीडीएम) परियोजना गतिविधियों एवं अन्य स्रोतों से प्राप्त आय के हिस्से से वित्त पोषित किया जाता है।
क्योटो प्रोटोकॉल: सिद्धांत
- क्योटो प्रोटोकॉल मात्र विकसित देशों हेतु बाध्यकारी है, एवं “सामान्य किंतु पृथक – पृथक उत्तरदायित्व एवं संबंधित क्षमताओं” के सिद्धांत के तहत उन पर भारी बोझ डालता है, क्योंकि यह मानता है कि वे वातावरण में जीएचजी उत्सर्जन के वर्तमान उच्च स्तर के लिए अत्यधिक सीमा तक जिम्मेदार हैं।
- उद्देश्य: वातावरण में ग्रीनहाउस गैस के संकेंद्रण को “एक ऐसे स्तर तक कम करके वैश्विक तापन से लड़ना जो जलवायु प्रणाली के साथ हानिकारक मानवजनित हस्तक्षेप को रोक सके।”
- अपने अनुच्छेद बी में, क्योटो प्रोटोकॉल 37 औद्योगिक देशों एवं यूरोपीय संघ के लिए उत्सर्जन में कमी के बाध्यकारी लक्ष्य निर्धारित करता है।
- कुल मिलाकर, ये लक्ष्य 2008-2012 की पांच वर्ष की अवधि में 1990 के स्तर की तुलना में उत्सर्जन में औसतन 5 प्रतिशत की कमी को जोड़ते हैं।
दोहा संशोधन
- दोहा, कतर में, 2012 में, क्योटो प्रोटोकॉल में दोहा संशोधन को द्वितीय प्रतिबद्धता अवधि हेतु अपनाया गया था, जो 2013 में प्रारंभ हुआ एवं 2020 तक चला।
- यद्यपि, दोहा संशोधन अभी तक प्रवर्तन में नहीं आया है।
- संशोधन में सम्मिलित हैं
- क्योटो प्रोटोकॉल के अनुच्छेद I पक्षकारों हेतु नई प्रतिबद्धताएं जो 1 जनवरी 2013 से 31 दिसंबर 2020 तक द्वितीय प्रतिबद्धता अवधि में प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने हेतु सहमत हुए;
- द्वितीय प्रतिबद्धता अवधि में पक्षकारों द्वारा रिपोर्ट की जाने वाली जीएचजी की एक संशोधित सूची;
- तथा क्योटो प्रोटोकॉल के अनेक अनुच्छेदों में संशोधन जो विशेष रूप से प्रथम प्रतिबद्धता अवधि से संबंधित मुद्दों को संदर्भित करता है तथा जिन्हें द्वितीय प्रतिबद्धता अवधि हेतु अद्यतन करने की आवश्यकता है।
क्योटो तंत्र
- क्योटो प्रोटोकॉल का एक महत्वपूर्ण तत्व यह था कि इसने एक लचीले बाजार तंत्र की स्थापना की, जो उत्सर्जन अनुज्ञापत्र (परमिट) के व्यापार पर आधारित है।
- प्रोटोकॉल के तहत, देशों को मुख्य रूप से राष्ट्रीय उपायों के माध्यम से अपने लक्ष्यों को पूर्ण करना चाहिए।
- यद्यपि, प्रोटोकॉल उन्हें तीन बाजार-आधारित तंत्रों के माध्यम से अपने लक्ष्यों को पूर्ण करने हेतु एक अतिरिक्त साधन भी प्रदान करता है।
अंतर्राष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार
- उत्सर्जन व्यापार उन देशों को अनुमति प्रदान करता है जिनके पास अतिरिक्त उत्सर्जन इकाइयाँ हैं, अर्थात देश को आवंटित उत्सर्जन लक्ष्य, किंतु जिनका उपयोग नहीं किया गया है, इस अतिरिक्त क्षमता को उन देशों को विक्रय करने हेतु जो अपने उत्सर्जन लक्ष्यों से ऊपर हैं।
- इस प्रकार, उत्सर्जन में कमी अथवा समाप्ति के रूप में एक नई वस्तु का निर्माण किया गया।
- चूंकि कार्बन डाइऑक्साइड प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है, लोग प्रायः कार्बन के व्यापार के लिए एक तंत्र कहते हैं, इस प्रकार इसे कार्बन बाजार के रूप में जाना जाता है।
स्वच्छ विकास तंत्र (सीडीएम)
- स्वच्छ विकास तंत्र (सीडीएम) विकासशील देशों में उत्सर्जन में कमी परियोजना को लागू करने के लिए क्योटो प्रोटोकॉल (अनुच्छेद बी पक्षकार) के अंतर्गत उत्सर्जन में कमी की प्रतिबद्धता वाले देश को अनुमति प्रदान करता है।
- ऐसी परियोजनाएं विक्रय योग्य प्रमाणित उत्सर्जन में कमी (सीईआर) साख अर्जित कर सकती हैं, प्रत्येक एक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर, जिसे क्योटो लक्ष्यों को पूर्ण करने हेतु सम्मिलित किया जा सकता है।
- अनेक व्यक्तियों/ संस्था द्वारा तंत्र को एक पथ प्रदर्शक के रूप में देखा जाता है। यह अपनी तरह की प्रथम वैश्विक, पर्यावरणीय निवेश एवं साख (क्रेडिट) योजना है, जो एक मानकीकृत उत्सर्जन प्रतिसंतुलन उपकरण, सीईआर प्रदान करती है।
- एक सीडीएम परियोजना गतिविधि में सम्मिलित हो सकते हैं, उदाहरण के लिए, सौर पैनलों का उपयोग कर एक ग्रामीण विद्युतीकरण परियोजना या अधिक ऊर्जा कुशल बॉयलरों की स्थापना।
संयुक्त कार्यान्वयन
- संयुक्त कार्यान्वयन एक देश को क्योटो प्रोटोकॉल (अनुच्छेद बी पक्षकार) के अंतर्गत उत्सर्जन में कमी अथवा सीमित करने की प्रतिबद्धता के साथ एक अन्य अनुलग्नक बी पक्षकार में उत्सर्जन में कमी या उत्सर्जन को समाप्त करने की परियोजना से उत्सर्जन में कमी इकाइयों (ईआरयू) को अर्जित करने की अनुमति प्रदान करता है, प्रत्येक एक टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के समतुल्य है, जिसे इसके क्योटो लक्ष्य को पूर्ण करने उपयोग किया जा सकता है।
- संयुक्त कार्यान्वयन पक्षकारों को उनकी क्योटो प्रतिबद्धताओं के एक अंश को पूर्ण करने का एक लचीला एवं लागत प्रभावी साधन प्रदान करता है, जबकि मेजबान पक्षकार को विदेशी निवेश एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से लाभ प्राप्त होता है।




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