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वैश्विक कृषि उत्पादकता रिपोर्ट 2021

वैश्विक कृषि उत्पादकता रिपोर्ट 2021: प्रासंगिकता

  • जीएस 3: देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख फसल-फसल प्रतिरूप, – विभिन्न प्रकार की सिंचाई एवं सिंचाई प्रणाली कृषि उपज के भंडारण, परिवहन एवं विपणन तथा मुद्दों एवं संबंधित बाधाओं; कृषकों की सहायता हेतु ई-प्रौद्योगिकी।

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वैश्विक कृषि उत्पादकता रिपोर्ट 2021: प्रसंग

  • हाल ही में, वैश्विक कृषि उत्पादकता रिपोर्ट 2021 जारी की गई थी जिसके अनुसार उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति करने एवं मानव  तथा पर्यावरणीय  कल्याण के लिए वर्तमान एवं भविष्य के संकटों को दूर करने हेतु समस्त उत्पादन स्तरों पर उत्पादकता वृद्धि में तेजी लाने की आवश्यकता है।

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वैश्विक कृषि उत्पादकता रिपोर्ट 2021: मुख्य बिंदु

  • उत्पादकता वृद्धि विश्व स्तर पर कृषि उत्पादन वृद्धि का प्राथमिक स्रोत बनी हुई है। फिर भी, यूएसडीए आर्थिक अनुसंधान सेवा की कुल कारक उत्पादकता (टीएफपी) की गणना हेतु नवीन पद्धति से ज्ञात होता है कि यह उतनी तीव्र गति से वृद्धि नहीं कर रहा है जितना पूर्व में अनुमान लगाया गया था।
  • वैश्विक स्तर पर, टीएफपी वार्षिक औसतन 36 प्रतिशत (2010 से 2019) बढ़ा, जो वैश्विक कृषि उत्पादकता सूचकांक 1.73 प्रतिशत के लक्ष्य से काफी कम है।
  • भारत, चीन, ब्राजील सहित मध्य-आय वाले देशों में सर्वाधिक सुदृढ़ टीएफपी विकास दर बनी हुई है।
  • कम आय वाले देशों में, जो अनेक छोटे पैमाने के कृषकों का निवास स्थान है, उनकी ऋणात्मक टीएफपी वृद्धि दर –31 प्रतिशत वार्षिक है।
  • कम आय वाले देशों में लगभग सभी कृषि आगत वृद्धि भूमि उपयोग परिवर्तन, कृषि कार्य एवं चराई के लिए वनों एवं घास के मैदानों के विनाश से होती है।
  • मानव जनित जलवायु परिवर्तन ने 1961 से वैश्विक कृषि उत्पादकता वृद्धि को 21 प्रतिशत तक मंद कर दिया है।

कृषि में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका

वैश्विक कृषि उत्पादकता रिपोर्ट 2021: प्रमुख निष्कर्ष

  • विश्व की 36% भूमि का उपयोग कृषि कार्य हेतु किया जाता है।
  • 2050 तक पृथ्वी की 90% मिट्टी अपरदन से अपक्षीण हो सकती है
  • मानव प्रभावित गतिविधियों से होने वाले मीथेन उत्सर्जन का 37 प्रतिशत मवेशियों एवं अन्य जुगाली करने वाले पशुओं से उत्पन्न होता है।
  • अकुशल सिंचाई के कारण 40% सिंचाई जल नष्ट हो जाता है।

 

कृषि उत्पादकता क्या है?

  • कृषि में, उत्पादकता में वृद्धि तब होती है जब समान मात्रा में या कम संसाधनों के साथ अधिक कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जाता है।
  • कुल कारक उत्पादकता में परिवर्तन होता है कि किस प्रकार कुशलता से कृषि आदानों (भूमि, श्रम, उर्वरक, चारा, मशीनरी एवं पशुधन) को निर्गत (फसल, पशुधन एवं जलीय कृषि उत्पादों) में रूपांतरित कर दिया जाता है।

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कुल कारक उत्पादकता बनाम उपज

  • उपज एक आगत के प्रति इकाई उत्पादन को मापता है, उदाहरण के लिए, एक हेक्टेयर भूमि पर काटी गई फसलों की संख्या।
    • उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से उपज में वृद्धि हो सकती है, किन्तु वे अधिक आगत के प्रयोग द्वारा भी बढ़ सकते हैं, जिसे आगत गहनता कहा जाता है।
    • अतः, उपज में वृद्धि स्थिरता में सुधार का प्रतिनिधित्व कर सकती है या नहीं भी कर सकती है।
  • कुल कारक उत्पादकता अनेक कृषि आगतों एवं निर्गतों के मध्य अन्तः क्रिया को प्रग्रहित करती है।
    • टीएफपी वृद्धि इंगित करती है कि अधिक कृषक समान मात्रा में या कम भूमि, श्रम, उर्वरक, चारा, मशीनरी एवं पशुधन के साथ अधिक फसलें, पशुधन एवं जलीय कृषि उत्पाद उत्पन्न करते हैं।
    • परिणाम स्वरूप, टीएफपी कृषि प्रणालियों की धारणीयता के मूल्यांकन एवं अनुश्रवण हेतु एक शक्तिशाली मापक है।

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वैश्विक कृषि उत्पादकता रिपोर्ट 2021: भारत के बारे में रिपोर्ट

  • भारत ने इस सदी में सुदृढ़ टीएफपी एवं उत्पादन वृद्धि देखी है।
    • सर्वाधिक नवीनतम आंकड़े 81 प्रतिशत की औसत वार्षिक टीएफपी वृद्धि दर एवं 3.17 प्रतिशत (2010-2019) की उत्पादन वृद्धि प्रदर्शित करते है।
  • भारत के कृषि क्षेत्र के लिए जलवायु परिवर्तन के निहितार्थ अत्यंत गंभीर हैं।
    • तेजी से बढ़ता तापमान, वर्षा के प्रतिरूप में हो रहे परिवर्तन के साथ, 2035 तक भारत की प्रमुख खाद्य फसलों की पैदावार में 10 प्रतिशत की कटौती कर सकता है।
    • पर्यावरणीय धारणीयता के लिए चुनौतियों के अतिरिक्त, भारत के छोटे स्तर के कृषकों को आर्थिक और सामाजिक  धारणीयता के लिए महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • भारत में 147 मिलियन भूमि जोतों में से, 100 मिलियन आकार में दो हेक्टेयर से कम हैं
    • परिवार के सदस्य अधिकांश कृषि कार्य करते हैं क्योंकि पर्याप्त गैर-कृषि रोजगार उपलब्ध नहीं हैं एवं किराया अथवा स्वामित्व पर मशीनीकरण, परिवार या किराए के श्रमिकों की तुलना में अधिक महंगा है।

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वैश्विक कृषि उत्पादकता रिपोर्ट 2021: छह प्रमुख रणनीतियाँ

  • खाद्य बाहुल्य, कम खाद्य कीमतों एवं भूख तथा निर्धनता को कम करने के लिए शोध एवं विकास एवं विस्तार में निवेश करें
  • विज्ञान आधारित एवं सूचना प्रौद्योगिकी प्रथाओं को अपनाएं तथा उत्पादकों को कीटों एवं रोगों के प्रकोप, मौसम की प्रचंड घटनाओं एवं बाजार में अचानक उतार-चढ़ाव की योजना बनाने, प्रतिक्रिया प्रकट करने एवं उनसे उबरने के लिए उपकरण उपलब्ध कराएं।
  • उत्पादकों को आगत एवं निर्गत बाजारों तक वहनीय एवं समान अधिगम प्रदान करने हेतु परिवहन, सूचना एवं वित्त  आधारिक संरचना को कुशल बनाना एवं सतत आर्थिक विकास की सुविधा प्रदान करना।
  • उत्पादकों को पर्यावरण एवं सामाजिक रूप से प्रासंगिक प्रौद्योगिकी तथा ज्ञान के हस्तांतरण की सुविधा के लिए सार्वजनिक-निजी-उत्पादक भागीदारी में वृद्धि करना
  • उन प्रणालियों एवं सेवाओं में सुधार करना जो फलों तथा सब्जियों के वैश्विक व्यापार का समर्थन करती हैं जो उत्पादकों के लिए आय उत्पन्न करती हैं एवं उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध पौष्टिक खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता एवं विविधता में वृद्धि करती हैं।
  • फसल-कटाई के पश्चात के नुकसान एवं भोजन की बर्बादी को कम करें। यह
    • पौष्टिक भोजन की उपलब्धता एवं वहनीयता में वृद्धि करना,
    • खाद्य एवं कृषि उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना, एवं
    • उत्पादन प्रक्रिया में उपयोग की जाने वाली भूमि, श्रम, पानी एवं अन्य आदानों के मूल्य को संरक्षित करना।

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