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दल बदल विरोधी कानून- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
दल बदल विरोधी कानून: दल बदल विरोधी कानून उन सांसदों/विधायकों को निरर्ह घोषित करने का एक तंत्र है जो अपनी आधिकारिक पार्टी लाइन के विरुद्ध कार्य करते हैं। दल बदल विरोधी कानून यूपीएससी मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन के पेपर 2 (भारतीय संविधान- संसद एवं राज्य विधानमंडल – संरचना, कार्यकरण, कार्यों का संचालन, शक्तियां तथा विशेषाधिकार एवं इनसे उत्पन्न होने वाले मुद्दों) का हिस्सा है।
समाचारों में दल-बदल विरोधी कानून
- महाराष्ट्र में हालिया राजनीतिक संकट ने इस प्रश्न को जन्म दिया है कि क्या शिवसेना के बागी दल-बदल विरोधी कानून के तहत निरर्हता से बच सकते हैं।
- दल बदल विरोधी कानून को लागू करने का आह्वान इस आधार पर है कि ये विधायक आधिकारिक बैठक में सम्मिलित नहीं हुए तथा व्हिप का पालन नहीं किया।
- यद्यपि, एक व्हिप मात्र विधायिका के कार्य तक ही सीमित है।
दल बदल विरोधी कानून से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- 52वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1985: दल बदल विरोधी प्रावधान को समाविष्ट किया। इसने दल बदल के आधार पर संसद एवं राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की निरर्हता/अयोग्यता का प्रावधान किया। दल-बदल विरोधी कानून के तहत, एक विधायिका के सदस्य को निरर्ह घोषित किया जा सकता है-
- यदि उसने स्वेच्छा से अपने राजनीतिक दल की सदस्यता त्याग दी है; तथा
- यदि वह अपनी पार्टी (या पार्टी द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति या प्राधिकरण) द्वारा जारी किसी भी निर्देश के विपरीत सदन में मतदान करता है अथवा मतदान से दूर रहता है।
- दसवीं अनुसूची: 52 वें संविधान संशोधन अधिनियम ने एक नई दसवीं अनुसूची को भी जोड़ा जिसमें दल बदल विरोधी कानून के बारे में विवरण सम्मिलित हैं।
- 91वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2003: यह प्रावधान करता है कि यदि दो-तिहाई सदस्य किसी अन्य दल/पार्टी के साथ विलय हेतु सहमत होते हैं, तो उन्हें निरर्ह/अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।
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- इसने निरर्हता से उन्मुक्ति को समाप्त कर दिया यदि एक तिहाई सदस्य एक पृथक समूह (संशोधन से पूर्ण का नियम) बनाते हैं।
- निरर्हता प्राधिकरण: दल बदल विरोधी कानून के तहत किसी सदस्य को निरर्ह घोषित करने की बात आने पर राज्य विधान सभा का अध्यक्ष अंतिम प्राधिकार होता है।
दल बदल विरोधी कानून पर न्यायपालिका
- गिरीश चोडनकर बनाम अध्यक्ष, गोवा विधानसभा: बंबई उच्च न्यायालय (बॉम्बे हाईकोर्ट) ने माना कि 10 कांग्रेस विधायक और दो एमजीपी विधायक, जो 2019 में भाजपा में शामिल हो गए थे, उन्हें निरर्हता से उनमुक्ति प्रदान की गई है।
- इसने माना कि कांग्रेस विधायकों के इस समूह का विलय भाजपा के साथ मूल राजनीतिक दल का “विलय माना जाता है”।
- राजेंद्र सिंह राणा बनाम स्वामी प्रसाद मौर्य (2007): सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने “एक राजनीतिक दल की स्वेच्छा से सदस्यता त्यागने” शब्द की व्याख्या की।
- इसने निर्धारित किया कि “एक व्यक्ति के बारे में कहा जा सकता है कि उसने स्वेच्छा से एक मौलिक पार्टी की सदस्यता त्याग दी है, भले ही उसने पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र नहीं दिया है” तथा यह कि सदस्य के आचरण से एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है।