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पीओएसएच अधिनियम (कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम अधिनियम)

पीओएसएच अधिनियम- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: संसद एवं राज्य विधानमंडल – संरचना, कार्यकरण, कार्य संचालन, शक्तियां एवं विशेषाधिकार तथा इनसे उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
    • केंद्र एवं राज्यों द्वारा आबादी के कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं तथा इन योजनाओं का प्रदर्शन।

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समाचारों में पीओएसएच अधिनियम 2013

  • हाल ही में, केरल उच्च न्यायालय ने फिल्म उद्योग से जुड़े संगठनों को महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए एक संयुक्त समिति गठित करने के लिए कदम उठाने के लिए कहा।
    • ये कार्रवाइयां कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध पता निवारण) अधिनियम, 2013 के अनुरूप होनी चाहिए।
  • ऐसा करने में, न्यायालय ने रेखांकित किया कि फिल्म निर्माण इकाइयों को यौन उत्पीड़न के विरुद्ध निर्मित कानून का पालन करना चाहिए, जिसे आम तौर पर 2013 में संसद द्वारा पारित POSH अधिनियम कहा जाता है।

 

कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध तथा निवारण) अधिनियम

  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध तथा निवारण) अधिनियम के बारे में: कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध तथा निवारण) अधिनियम को 2013 में पारित किया गया था।
  • परिभाषा: POSH अधिनियम यौन उत्पीड़न को परिभाषित करता है, शिकायत तथा अन्वेषण के लिए प्रक्रियाओं एवं की जाने वाली कार्रवाई का निर्धारण करता है।
    • POSH अधिनियम 2013 ने विशाखा दिशानिर्देशों को भी विस्तृत किया, जो पहले से ही लागू थे।

 

POSH अधिनियम 2013 के तहत दिशा निर्देश

  • विशाखा दिशा निर्देश: ये दिशा निर्देश कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं, यौन उत्पीड़न  को परिभाषित करते हैं एवं संस्थानों पर तीन प्रमुख दायित्व- निषेध, रोकथाम, निवारण आरोपित किए हैं ।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि उन्हें एक परिवाद समिति का गठन करना चाहिए, जो कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच करेगी।
  • POSH अधिनियम 2013: 2013 के अधिनियम ने इन दिशानिर्देशों को विस्तृत किया।
    • POSH अधिनियम 2013 अधिदेशित है कि प्रत्येक नियोक्ता को प्रत्येक कार्यालय या शाखा में 10 या अधिक कर्मचारियों के साथ एक आंतरिक परिवाद समिति (इंटरनल कंप्लेंट्स कमिटी/ICC) का गठन करना चाहिए।
    • POSH अधिनियम 2013 ने यौन उत्पीड़न के विभिन्न पहलुओं को परिभाषित किया है, जिसमें व्यथित पीड़िता भी शामिल है, जो “किसी भी आयु की महिला चाहे नियोजित हो अथवा न हो”, जो “यौन उत्पीड़न के किसी भी कार्य के अधीन होने का आरोप लगाती है”।
    • इसका तात्पर्य था कि किसी भी सामर्थ्य में कार्य करने वाली या किसी भी कार्यस्थल पर जाने वाली सभी महिलाओं के अधिकारों को अधिनियम के तहत संरक्षित किया गया था।

 

POSH अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न की परिभाषा

POSH अधिनियम 2013 के तहत, यौन उत्पीड़न में निम्नलिखित में से “कोई एक या अधिक” सम्मिलित है “अवांछित कृत्य अथवा व्यवहार” जो प्रत्यक्ष अथवा निहितार्थ से कारित किया गया है-

  • शारीरिक संपर्क एवं प्रयास
  • यौन अनुग्रह के लिए एक मांग या अनुरोध
  • यौन रंजित टिप्पणी
  • अश्लील साहित्य का प्रदर्शन
  • यौन प्रकृति का कोई अन्य अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक आचरण।

 

इसके अतिरिक्त, POSH अधिनियम में पांच परिस्थितियों का उल्लेख है जो यौन उत्पीड़न के समान है- 

  • उसके नियोजन में तरजीही व्यवहार का निहित या सुस्पष्ट वादा;
  • हानिकारक व्यवहार का निहित अथवा सुस्पष्ट खतरा;
  • उसकी वर्तमान या भविष्य की नियोजन स्थिति के बारे में निहित अथवा सुस्पष्ट धमकी;
  • उसके काम में हस्तक्षेप या एक आक्रामक या शत्रुतापूर्ण कार्य वातावरण निर्मित करना;
  • अपमानजनक व्यवहार जिससे उसके स्वास्थ्य या सुरक्षा पर असर पड़ने की संभावना हो।

 

 

कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न पर पुस्तिका

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न पर एक पुस्तिका (हैंडबुक) का प्रकाशन किया है जिसमें कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के व्यवहार के अधिक विस्तृत उदाहरण हैं। इनमें शामिल हैं, मोटे तौर पर:
    • यौन रूप से विचारोत्तेजक टिप्पणी या आक्षेप; गंभीर या बार-बार की जाने वाली आपत्तिजनक टिप्पणी;
    • किसी व्यक्ति के यौन जीवन के बारे में अनुचित प्रश्न अथवा टिप्पणी लिंग भेद द्योतक (सेक्सिस्ट) या आपत्तिजनक तस्वीरें, पोस्टर, एमएमएस, एसएमएस, व्हाट्सएप या ईमेल का प्रदर्शन
    • यौन संबंधों के इर्द-गिर्द डराना-धमकाना, धमकी देना, ब्लैकमेल करना; इसके अतिरिक्त, किसी कर्मचारी के विरुद्ध ,  भय, धमकी या प्रतिशोध जो इनके बारे में बोलता है
    • यौन अतिव्यापन के साथ अवांछित सामाजिक निमंत्रण, जिसे आमतौर पर छेड़खानी के रूप में देखा जाता है
    • अवांछित यौन प्रयास।
  • हैंडबुक कहती है कि “अवांछित व्यवहार” का अनुभव तब होता है जब पीड़िता असह्य या शक्तिहीन महसूस करती है; यह क्रोध/उदासी या नकारात्मक आत्म-सम्मान का कारण बनता है।
  • यह जोड़ता है कि अवांछित व्यवहार वह है जो “अवैध, अपमानजनक, लंघन कारी, एकपक्षीय एवं शक्ति आधारित” है।

 

POSH अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया

  • शिकायत दर्ज करना: तकनीकी रूप से, व्यथित पीड़िता के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह आईसीसी को कार्रवाई करने के लिए शिकायत दर्ज करे।
    • अधिनियम कहता है कि वह ऐसा कर सकती है – और यदि वह नहीं कर सकती है, तो ICC का कोई भी सदस्य उसे लिखित रूप में शिकायत करने के लिए “सभी उचित सहायता” प्रदान करेगा।
    • यदि महिला “शारीरिक अथवा मानसिक अक्षमता या मृत्यु  अथवा अन्यथा” के कारण शिकायत नहीं कर सकती है, तो उसका विधिक उत्तराधिकारी ऐसा कर सकता है।
  • शिकायत के लिए समय अवधि: POSH अधिनियम के तहत, शिकायत “घटना की तिथि से तीन माह के भीतर” की जानी चाहिए।
    • हालाँकि, ICC “समय सीमा में वृद्धि कर सकता है” यदि “यह संतुष्ट है कि परिस्थितियाँ ऐसी थीं जो महिला को उक्त अवधि के भीतर शिकायत दर्ज करने से रोकती थीं”।
  • ICC पूछताछ से पहले एवं “पीड़ित महिला के अनुरोध पर, सुलह के माध्यम से उसके तथा प्रतिवादी के मध्य मामले को निपटाने के लिए आवश्यक कदम उठा सकती है” – बशर्ते कि “सुलह के आधार के रूप में कोई मौद्रिक समझौता नहीं किया जाएगा”।
  • पूछताछ: आईसीसी या तो पीड़ित की शिकायत पुलिस को भेज सकती है, या वह जांच प्रारंभ कर सकती है जिसे 90 दिनों के भीतर पूरा किया जाना है।
    • किसी भी व्यक्ति को शपथ लेकर बुलाने तथा जांच करने  एवं दस्तावेजों की खोज तथा प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता के संबंध में आईसीसी के पास सिविल न्यायालय  के समान अधिकार हैं।

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आईसीसी की रिपोर्ट तथा दंड

  • जब जांच पूरी हो जाती है, तो ICC को अपने निष्कर्षों की रिपोर्ट 10 दिनों के भीतर नियोक्ता को देनी होगी। रिपोर्ट दोनों पक्षों को भी उपलब्ध करा दी जाती है।
    • अधिनियम में कहा गया है कि महिला की पहचान, प्रतिवादी, गवाह, जांच, सिफारिश तथा की गई कार्रवाई के बारे में कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए।
  • आईसीसी की सिफारिशें: यदि यौन उत्पीड़न के आरोप सिद्ध हो जाते हैं, तो आईसीसी सिफारिश करती है कि नियोक्ता कंपनी के “सेवा नियमों के प्रावधानों के अनुसार” कार्रवाई करे।
    • ये प्रत्येक कंपनी के लिए भिन्न भिन्न हो सकते हैं।
    • आईसीसी यह भी सिफारिश करता है कि कंपनी दोषी पाए गए व्यक्ति के वेतन से कटौती करे, “जैसा कि वह उचित समझे”।
  • मुआवजा: मुआवजा पांच पहलुओं के आधार पर निर्धारित किया जाता है:
    • महिला को हुई पीड़ा एवं भावनात्मक संकट;
    • कैरियर के यह उपलब्धि अवसर में हानि;
    • उसका चिकित्सा व्यय;
    • प्रतिवादी की आय एवं वित्तीय स्थिति; तथा
    • इस तरह के भुगतान की व्यवहार्यता।
  • अपील का प्रावधान: सिफारिशों के बाद, पीड़ित महिला या प्रतिवादी 90 दिनों के भीतर न्यायालय में अपील कर सकते हैं।
  • दंड: POSH अधिनियम की धारा 14 मिथ्या आत्मा दुर्भावनापूर्ण शिकायत तथा झूठे साक्ष्यों के लिए सजा से संबंधित है।
    • ऐसे मामले में, ICC नियोक्ता को “अनुशंसित” कर सकती है कि वह “सेवा नियमों के प्रावधानों के अनुसार” महिला या शिकायत करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध कार्रवाई करे।
    • अधिनियम, हालांकि, यह स्पष्ट करता है कि “शिकायत को प्रमाणित करने या पर्याप्त साक्ष्य प्रदान करने” हेतु “केवल अक्षमता” के लिए कार्रवाई नहीं की जा सकती है।

 

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