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रक्षा उपकरणों में एम-चिप्स: यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता
रक्षा उपकरणों में एम-चिप्स: चर्चा में क्यों है?
- रक्षा मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस/MoD) ने “चिप्स” निर्मित करने तथा “भारतीय माइक्रोप्रोसेसर चिप” विकसित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी/MeitY) के साथ अनुबंध किया है।
- आरंभ में रक्षा मंत्रालय ने 5 लाख चिप्स मांगे हैं।
- अनुमान के अनुसार, चिप्स 2023 के अंत तक या 2024 के आरंभ में तैयार हो जाएंगे।
रक्षा उपकरणों में एम-चिप्स: एम-चिप्स क्या हैं?
- अर्धचालक (सेमीकंडक्टर्स) – जिन्हें इंजीनियरिंग शब्दावली में ‘चिप्स’ के रूप में भी जाना जाता है – का उपयोग लड़ाकू जेट, कॉप्टर, टैंक, नौसेना के युद्धपोतों, पनडुब्बियों, प्रक्षेपास्त्रों, नाइट-विजन उपकरणों, रडार, पायलटों के लिए डिस्प्ले, अंतरिक्ष अनुप्रयोगों तथा संचार नेटवर्क में किया जाता है।
- सेमीकंडक्टर चिप का मूल घटक सिलिकॉन का एक टुकड़ा होता है, जिसे अरबों सूक्ष्म ट्रांजिस्टर के साथ उकेरा जाता है एवं विशिष्ट खनिजों तथा गैसों के लिए प्रक्षेपित किया जाता है, जो विभिन्न अभिकलनात्मक (कम्प्यूटेशनल) निर्देशों का पालन करते हुए धारा के प्रवाह को नियंत्रित करने हेतु प्रतिरूप निर्मित करते हैं।
- आज उपलब्ध सर्वाधिक उन्नत अर्धचालक प्रौद्योगिकी नोड 3 नैनोमीटर (एनएम) एवं 5 एनएम वाले हैं।
- उच्च नैनोमीटर मान वाले अर्धचालक ऑटोमोबाइल, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स इत्यादि में प्रयुक्त होते हैं, जबकि कम मान वाले अर्धचालकों का उपयोग स्मार्टफोन एवं लैपटॉप जैसे उपकरणों में किया जाता है।
रक्षा उपकरणों में एम-चिप्स: भारत स्वदेशी चिप निर्मित करने हेतु क्यों प्रयासरत है?
- प्राथमिक लक्ष्य स्वदेशी रूप से डिजाइन एवं विकसित ‘सुरक्षित चिप्स’ के दो संस्करण हैं।
- लगभग 50,000 ऐसे चिप्स सशस्त्र बलों के लिए प्रणालियों एवं उपकरणों में तैनात किए जाने की संभावना है।
- वर्तमान में, अर्धचालक के लिए सेना आंशिक रूप से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन/DRDO) की आंतरिक प्रयोगशालाओं पर निर्भर है। सेमीकंडक्टर प्रयोगशाला, मोहाली, निर्माण इकाई है।
- अधिकांश चिप्स आयात किए जाते हैं।
रक्षा उपकरणों में एम-चिप्स: युद्ध के मैदान में छोटे माइक्रोचिप्स की भूमिका
- महत्वपूर्ण एवं उदीयमान प्रौद्योगिकियों के लिए वर्तमान भू-राजनीतिक संघर्ष में, रक्षा क्षेत्र में अर्धचालक प्रौद्योगिकी के योगदान को उपेक्षित नहीं किया जा सकता है।
- जबकि उन्नत सैन्य प्रणालियाँ उच्च अंत इलेक्ट्रॉनिक्स का उपयोग करती प्रतीत होती हैं, इन प्रणालियों का अभिन्न अंग मौलिक अर्धचालक घटक बना हुआ है।
- कुछ घटक प्राचीन एकल-खंड उपकरणों से जटिल उपकरणों तक विकसित हुए हैं। कुछ अर्धचालक घटक हैं जो आधुनिक सैन्य प्रणालियों के लिए अपरिहार्य बने रहने की क्षमता रखते हैं।
- कुछ उदाहरण:
- सेंसर एवं एक्चुएटर्स
- मेमोरी चिप्स
- इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सिस्टम
- माइक्रोकंट्रोलर
- लॉजिक डिवाइसेस
- डिस्क्रीट डिवाइसेस
रक्षा उपकरणों में एम-चिप्स: वैश्विक चिप की कमी के पीछे क्या है?
- चिप या सेमीकंडक्टर, जो किसी भी इलेक्ट्रॉनिक तकनीक का मस्तिष्क-केंद्र है, ने स्वयं को कोविड पश्चात युग में दुर्लभ पाया है, दक्षिण कोरिया एवं ताइवान जैसे स्थानों पर अनेक बड़े कारखाने बंद हो गए हैं। इसने मांग में एक कोलाहल उत्पन्न कर दिया है कि ये संधानशालाएं एक बार खुलने के बाद मांग की पूर्ति नहीं कर पाएंगे।
- एक ओर, महामारी कंप्यूटर, लैपटॉप एवं स्मार्टफोन इत्यादि जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मांग में वृद्धि का कारण बना।
- विनिर्माण तथा रसद बाधाओं का अर्थ था कि स्थिति केवल विकट थी।
- पिछले वर्ष प्रारंभ हुई यह कमी 2022 तक जारी रहने की संभावना है एवं भविष्य में ऐसी स्थिति को रोकने के लिए, कई कंपनियां मात्र कुछ बड़े कारखानों पर अपनी निर्भरता कम करने की योजना बना रही हैं जो संपूर्ण विश्व को आपूर्ति करती हैं।
रक्षा उपकरणों में एम-चिप्स: भारत के लिए एक अवसर
- वैश्विक अर्धचालक बाजार 2015 में 340 अरब डॉलर से बढ़कर 2025 में 650 अरब डॉलर होने का अनुमान है, जिसमें 6.7% सीएजीआर है।
- ताइवान अर्धचालकों का विश्व का सर्वाधिक वृहद निर्माता है, जिसकी बाजार में हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से अधिक है।
- आज, भारत की अर्धचालक (सेमीकंडक्टर) मांग लगभग 24 अरब डॉलर है एवं 2025 तक 100 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। वर्तमान में देश की अर्धचालक मांग पूर्ण रूप से आयात के माध्यम से पूरी की जाती है।
- तकनीक में हो रही वृद्धि एवं भारत में इंटरनेट ऑफ थिंग्स तथा 5 जी तकनीक के आगमन के साथ, सेमीकंडक्टर चिप्स की मांग में भी वृद्धि हो रही रही है।
- भारत 2025 तक इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण, इंटरनेट ऑफ थिंग्स उत्पादों तथा डेटा सेंटर केंद्रों द्वारा संचालित एक महत्वपूर्ण मांग में स्पष्ट वृद्धि देखने के लिए तैयार है।
- महामारी में अर्धचालक की कमी तथा अर्धचालक आपूर्ति श्रृंखलाओं की नई भू-राजनीतिक वास्तविकताएं अर्धचालकों के लिए भरोसेमंद एवं विश्वसनीय स्रोत विकसित करने की आवश्यकता को और बढ़ा देती हैं।
रक्षा उपकरणों में एम-चिप्स: सरकारी पहल
– केंद्रीय बजट 2017-18 में, अर्धचालक के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने संशोधित विशेष प्रोत्साहन पैकेज योजना (मॉडिफाइड- स्पेशल इंसेंटिव पैकेज स्कीम/एम-एसआईपीएस) एवं इलेक्ट्रॉनिक विकास कोष (इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट फंड/ईडीएफ) जैसी प्रोत्साहन योजनाओं के लिए आवंटन बढ़ाकर 745 करोड़ रुपये (111 मिलियन अमेरिकी डॉलर) कर दिया। ।
– केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में निवेश को और प्रोत्साहित करने, रोजगार उत्पन्न करने तथा आयात पर निर्भरता कम करने के लिए संशोधित विशेष प्रोत्साहन पैकेज योजना (एम-एसआईपीएस) में संशोधन करके निवेशकों के लिए 10,000 करोड़ रुपये तक के प्रोत्साहन को अपनी स्वीकृति प्रदान की।
– इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय अपने नीतिगत ढांचे को संशोधित करने की योजना बना रहा है, जिसमें सरकार अधिक निजी प्रतिभागियों को आकर्षित करके एवं भारत को वैश्विक अर्धचालक केंद्र के रूप में निर्मित करने के लिए प्रारंभिक पूंजी प्रदान करके इस क्षेत्र के विकास में अधिक सक्रिय भूमिका निभाएगी।
रक्षा उपकरणों में एम-चिप्स: आगे की राह
- चिप निर्माण भी एक दिन में कई गैलन अति शुद्ध (अल्ट्रा प्योर) जल की आवश्यकता होती है, जो विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के लिए कारखानों को प्रदान करना एक कठिन कार्य हो सकता है, जो देश के बड़े हिस्से में प्रायः सूखे की स्थिति से भी संयुक्त होता है।
- इसके अलावा, विद्युत की एक निर्बाध आपूर्ति इसके निर्माण के लिए केंद्रीय है, मात्र कुछ सेकंड के उतार-चढ़ाव या मांग में तीव्र वृद्धि के कारण लाखों का नुकसान होता है।
- सरकार के लिए एक अन्य कार्य अर्धचालक उद्योग में उपभोक्ता मांग में वृद्धि करना है ताकि ऐसी स्थिति में समाप्त न हो जहां ये उद्यम मात्र तब तक सफल रहें जब तक करदाताओं को आवश्यक सब्सिडी के लिए निधि प्रदान करने हेतु बाध्य न किया जाए।
रक्षा उपकरणों में एम-चिप्स: निष्कर्ष
रक्षा निर्माण को प्रोत्साहित करने एवं देश में अर्धचालकों का निर्माण आरंभ करने के लिए सरकार की नीतियों के साथ, यह भारत के राष्ट्रीय हित में दोनों के संगम का समय है।