Table of Contents
सूरसंहारम 2022: यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता
जीएस 1: भारतीय समाज, भारतीय कला एवं संस्कृति
सूरसंहारम 2022: चर्चा में क्यों है?
- तमिलनाडु राज्य के मुरुगन मंदिरों में चल रहे कांडा षष्ठी उत्सव, ‘सूरसंहारम अनुष्ठान’ (भगवान द्वारा राक्षस सुरपद्मन का विनाश) का आयोजन किया जा रहा है।
- चंद्र कैलेंडर के अनुसार, स्कंद षष्ठी कार्तिक मास के छठे दिन आती है।
सूरसंहारम 2022: स्कंद षष्ठी के बारे में जानें
- स्कंद षष्ठी या कुमार षष्ठी एक लोकप्रिय हिंदू त्योहार है जो देवी पार्वती एवं भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित है।
- भगवान कार्तिकेय को उनके भक्तों द्वारा अनेक नामों से जाना जाता है जैसे कुमार, मुरुगा, सुब्रमण्यम इत्यादि।
- अतः, स्कंद षष्ठी को कुमार षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।
- स्कंद षष्ठी का महत्व
- स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय या सुब्रमण्यम के जन्म के दिन से मेल खाती है जिसे तमिल में मुरुगा भी कहा जाता है।
- स्कंद षष्ठी कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के महीने में शुक्ल पक्ष की छठी तिथि (षष्ठी तिथि) है।
- भगवान स्कंद सुब्रमण्य के लोकप्रिय नामों में से एक है एवं इसलिए इस घटना को स्कंद षष्ठी कहा जाता है।
- स्कंद षष्ठी पर लोग भगवान सुब्रमण्यम को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखते हैं।
- तमिलनाडु में मुरुगा के मंदिरों में भव्य समारोह आयोजित किए जाते हैं।
- स्कंद षष्ठी का त्यौहार
- स्कंद षष्ठी का त्योहार तमिलनाडु एवं कुछ अन्य राज्यों में दस दिनों तक चलने वाला कार्यक्रम है।
- तिरुचेंदूर में स्थित भगवान सुब्रमण्यम के मंदिर में, इन दिनों एक भव्य उत्सव मनाया जाता है एवं त्योहार के समापन के लिए भगवान स्कंद द्वारा सुर संहार या राक्षसों की हत्या की घटना को आज तक अभिनीत किया जाता है।
- भक्त इस भव्य आयोजन को देखने एवं भगवान स्कंद का आशीर्वाद लेने के लिए उमड़ पड़ते हैं।
सूरसंहारम 2022: कैसे मनाया गया सूरसंहारम उत्सव?
- स्कंद षष्ठी के दौरान, अनुयायी छह दिवसीय उपवास का पालन करते हैं जो चंद्र मास कार्तिक के प्रथम दिन पिराथमई से आरंभ होता है एवं छठे दिन सूरसंहारम पर समाप्त होता है।
- छह दिवसीय उत्सव का अंतिम तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिन सूर्य संहारम के नाम से जाना जाता है।
- प्रत्येक वर्ष, बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में सूरसंहारम का त्योहार आयोजित किया जाता है, क्योंकि भगवान मुरुगन ने इस दिन राक्षस सुरपद्मन को मार डाला था, जिससे विश्व में शांति आई थी।
- यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पंचमी तिथि एवं षष्ठी तिथि को सूरसंहारम व्रतम के लिए दिन का चयन करते समय संयुग्मित किया जाता है।
- अतः, यदि पंचमी तिथि को सूर्यास्त से पूर्व षष्ठी तिथि आरंभ हो जाती है, तो सभी मंदिर कांड षष्ठी का पालन करते हैं।
सूरसंहारम 2022: तमिलनाडु में भगवान मुरुगन के छह धाम
- भगवान मुरुगा के छह महलों को अरुपड़ाई वीदु कहा जाता है जिसका अनुवाद में अर्थ “भगवान के छह युद्ध गृह” होता है। ये छह महल संपूर्ण विश्व से हजारों अनुयायियों को आकर्षित करते हैं, हालांकि मुरुगा को समर्पित अनगिनत मंदिर हैं, जो भगवान शिव एवं मां पार्वती के पुत्र हैं। मुरुगा को विभिन्न नामों से भी जाना जाता है, जैसे कार्तिकेय, सुब्रमण्यम, कुमारन, इत्यादि।
- तमिलनाडु में, इन छह विशिष्ट मंदिरों को भक्तों के बीच अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
- मुरुगन के छह सबसे पवित्र महलों का उल्लेख, थिरुमुरुगत्रुपदाई, नक्कीरर द्वारा लिखित एवं थिरुप्पुगज़ में, अरुणगिरिनाथर द्वारा लिखित तमिल संगम साहित्य में किया गया था।
- मुरुगन के छह सर्वाधिक पवित्र महल (निवास) हैं:
- तिरुपरणकुंद्रम में अरुल्मिगु सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर
- पझामुदिर चौलाई में अरुलमिगु सोलैमलाई मुरुगन मंदिर
- पलानी में अरुल्मिगु धनदायूंथापनी स्वामी मंदिर
- स्वामीनाथ स्वामी मंदिर, स्वामीमलाई
- तिरुचेंदूर, तूतीकोरिन
- तिरुचेंदूर में सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर।
सूरसंहारम 2022: थिरुचेंदुर मुरुगन मंदिर में सूरसंहारम उत्सव 2022
- जबकि सूरसंहारम मनाने के कई तरीके हैं, तिरुचेंदुर मुरुगन मंदिर में मनाया जाने वाला त्योहार अत्यंत भव्य है।
- तिरुचेंदूर मंदिर, भगवान मुरुगा (अरुपदाई वेदु) के छह महलों में से दूसरा होने के कारण प्रसिद्ध है कि विभिन्न स्थलों से पांच से सात लाख से अधिक भक्तों ने यहां ‘सूरसंहारम’ देखा।
- यह त्यौहार मंदिर द्वारा छह दिनों के दौरान मनाया जाता है, जो सूरसंहारम के दिन समाप्त होता है।
- इस वर्ष भी, छह दिवसीय ‘कांडा षष्ठी’ उत्सव के एक भाग के रूप में, समारोह 25 अक्टूबर को यज्ञ शाला पूजन के साथ प्रारंभ हुआ। मंदिर को प्रकाशित (रोशन) किया गया था एवं ‘सूरसंहारम’ इस छह दिवसीय उत्सव का मुख्य आकर्षण था। थिरु कल्याणम सूरसंहारम के अगले दिन मनाया जाता है।
- प्रत्येक दिन, गर्भगृह को प्रातः 3 बजे खोला जाता था एवं ‘विश्वरूप’ दर्शन के बाद, पीठासीन देवताओं के लिए उदय मर्थंद अभिषेकम किया जाता था।
- लगभग 50 मिनट का कार्यक्रम (सूरार वधम) सुरपद्मन के नेतृत्व में राक्षसों के वध का प्रतिबिंब था, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक था।
- ‘सूरसंहारम’ के बाद, अनेक भक्तों ने समुद्र में पवित्र डुबकी लगाई।
- देवताओं – वल्ली दीवानई एवं जयंतीनाथर को ‘सूरसंहारम’ समाप्त होने के पश्चात ‘संतोष’ मंडपम में लाया गया था।
- ‘कांडा षष्ठी’ का अंतिम दिन – 31 अक्टूबर – मंदिर में होने वाली दिव्य विवाह का साक्षी बनेगा।