Table of Contents
1991 के एलपीजी सुधारों को बढ़ावा देने वाले कारक
- कीमतों में वृद्धि: मुद्रास्फीति की दर लगभग 6% से बढ़कर 16% हो गई एवं देश की आर्थिक स्थिति खराब हो गई।
- राजकोषीय घाटे में वृद्धि: गैर-विकास व्यय में वृद्धि के कारण सरकार के राजकोषीय घाटे में वृद्धि हुई। राजकोषीय घाटे में वृद्धि के कारण, सार्वजनिक ऋण एवं भुगतान किए जाने वाले ब्याज में वृद्धि हुई। 1991 में, ब्याज देयता कुल सरकारी व्यय का 4% हो गई।
- प्रतिकूल भुगतान संतुलन: 1980-81 में चालू खाता घाटा 2214 करोड़ रुपये था एवं 1990-91 में बढ़कर 17,367 करोड़ रुपये हो गया।। इस घाटे को कवर करने के लिए, सरकार ने बड़ी मात्रा में विदेशी ऋण लिया, जिससे ब्याज भुगतान में और वृद्धि हुई।
- इराक युद्ध: 1990-91 में, इराक में युद्ध छिड़ गया, जिसके कारण पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि हुई। खाड़ी देशों से विदेशी मुद्रा का प्रवाह रुक गया एवं इसने समस्या को और गहन कर दिया।
- सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निराशाजनक प्रदर्शन: अनेक कारणों से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे थे, जिसमें राजनीतिक हस्तक्षेप एवं संचालन में गैर-व्यावसायिकता शामिल हैं।
- विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट: भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 1990-91 में अपने सर्वाधिक निम्नतम स्तर पर गिर गया एवं यह 2 सप्ताह के लिए भी आयात बिल का भुगतान करने हेतु अपर्याप्त था।
भारत में एलपीजी सुधार: एलपीजी का अर्थ
- उदारीकरण- उदारीकरण एक व्यापक शब्द है जो कानूनों, प्रणालियों या अनुमानों को, आमतौर पर कुछ सरकारी नियमों या प्रतिबंधों को समाप्त करने के अर्थ में कम गंभीर बनाने की प्रथा को संदर्भित करता है।
- निजीकरण- यह एक सरकार से एक निजी स्वामित्व वाली इकाई को संपत्ति या व्यवसाय के स्वामित्व के हस्तांतरण को संदर्भित करता है।
- वैश्वीकरण- यह आर्थिक गतिविधियों के विस्तार, राष्ट्र राज्यों की राजनीतिक सीमाओं को पार करने को संदर्भित करता है।
एलपीजी नीति 1991 की विशेषताएं
- औद्योगिक लाइसेंसिंग/परमिट राज का उन्मूलन
- सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को कम करना
- निजीकरण का प्रारंभ
- विदेशी निवेश एवं प्रौद्योगिकी में निर्बाध प्रवेश
- औद्योगिक अवस्थिति नीति को उदार बनाया गया
- नवीन परियोजनाओं के लिए चरणबद्ध निर्माण कार्यक्रमों को समाप्त करना
- अनिवार्य परिवर्तनीयता खंड को हटाना
- आयात शुल्क में कमी
- बाजारों का विनियमन
- करों में कमी किया जाना
भारत में एलपीजी सुधार: सकारात्मक परिणाम:
- भारत की जीडीपी के विकास दर में वृद्धि: 1990-91 के दौरान, भारत की जीडीपी विकास दर मात्र 1% थी, किंतु 1991 के एलपीजी सुधारों के पश्चात, जीडीपी विकास दर साल दर साल बढ़ती गई एवं 2015-16 में आईएमएफ द्वारा इसके 7.5% होने का अनुमान लगाया गया था।
- विदेशी निवेश गंतव्य: 1991 से, भारत ने स्वयं को एक आकर्षक विदेशी निवेश गंतव्य के रूप में दृढ़ता से स्थापित किया है एवं 2019-20 (अगस्त तक) में भारत में एफडीआई इक्विटी प्रवाह 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- बेरोजगारी दर में कमी: 1991 में बेरोजगारी दर उच्च थी। यद्यपि, 1991 के एलपीजी सुधारों ने नई विदेशी कंपनियों के आगमन का मार्ग प्रशस्त किया जिससे अधिक रोजगार सृजित हुए एवं परिणाम स्वरूप बेरोजगारी दर में कमी आई।
- रोजगार में वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई।
- निर्यात में वृद्धि हुई है एवं अक्टूबर, 2019 तक निर्यात 38 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा है।
भारत में एलपीजी सुधार: चुनौतीपूर्ण परिणाम
- कृषि जीवीए में कमी: 1991 में, कृषि ने 72% आबादी को रोजगार प्रदान किया एवं सकल घरेलू उत्पाद का 02 प्रतिशत योगदान दिया। अब, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का अंश तीव्र गति से गिरकर 18% हो गया है। इससे किसानों की प्रति व्यक्ति आय में कमी आई है एवं ग्रामीण ऋणग्रस्तता में वृद्धि हुई है।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियां बनाम स्थानीय व्यापार: भारतीय अर्थव्यवस्था के विदेशी प्रतिस्पर्धा हेतु खुलने के कारण, अधिक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने स्थानीय व्यवसायों के साथ प्रतिस्पर्धा करना प्रारंभ कर दिया। इसने अत्यधिक असमान व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा को अग्रसर किया।
- वैश्वीकरण ने विनिर्माण संयंत्रों से उत्सर्जन एवं वनस्पति आवरण का निर्वृक्षीकरण करके प्रदूषण के माध्यम से पर्यावरण के विनाश में भी योगदान दिया है।
- आय के अंतराल को और व्यापक करना: 1991 के एलपीजी सुधारों ने देश के भीतर आय के अंतराल को और व्यापक किया है। अधिकांश व्यक्तियों की आय में गिरावट की कीमत पर उच्च विकास दर प्राप्त की गई, जिससे असमानता में वृद्धि हुई।




TSPSC Group 1 Question Paper 2024, Downl...
TSPSC Group 1 Answer key 2024 Out, Downl...
UPSC Prelims 2024 Question Paper, Downlo...
