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बक्सर का युद्ध 1764- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 1: भारतीय इतिहास- अठारहवीं शताब्दी के मध्य से लेकर वर्तमान तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्वपूर्ण घटनाएं, व्यक्तित्व, मुद्दे।
बक्सर का युद्ध 1764- प्रसंग
- बक्सर का युद्ध अंग्रेजी सेना एवं अवध के नवाब, बंगाल के नवाब तथा मुगल सम्राट की एक संयुक्त सेना के मध्य लड़ा गया था।
- 1764 ईसवी में बक्सरके युद्ध में विजय को भारत में राजनीतिक सत्ता में निर्णायक परिवर्तन माना गया। इसके बाद अंग्रेज भारत में सत्ता के स्थान के मुख्य दावेदार के रूप में उभरे।
बक्सर का युद्ध 1764- पृष्ठभूमि
- 1757 में प्लासी के युद्ध में प्राप्त किए गए लाभ को समेकित करने के पश्चात, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुख्य रूप से भारतीय सिपाहियों एवं भारतीय घुड़सवार सेना से मिलकर एक सेनाएकत्रित की।
- इस सेना के साथ, अंग्रेजों ने मुगल साम्राज्य के विरुद्ध बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का प्रयत्न किया।
- 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद, मीर जाफर सिराज-उद-दौला के स्थान पर बंगाल का नवाब बना। बंगाल का नया नवाब बनने के बाद मीर जाफर को अंग्रेजों ने अपनी कठपुतली बना लिया।
- मीर जाफर को यह पसंद नहीं आया एवं उसने डच ईस्ट इंडिया कंपनी के समर्थन से अंग्रेजों का विरोध करने का पैटर्न किया। अंग्रेजों ने उसके षड्यंत्र को पकड़ लिया।
- इस संदर्भ में, अंग्रेजों ने नया नवाब बनने के लिए मीर कासिम (मीर जाफर के दामाद) का समर्थन किया एवं कंपनी के दबाव में मीर जाफर ने मीर कासिम के पक्ष में पद छोड़ दिया।
- एक सक्षम शासक मीर कासिम ने वास्तविक ब्रिटिश इरादों को समझ लिया एवं इसलिए मुगल सम्राट तथा अवध के नवाब की संयुक्त सेना के साथ एक विरोध का आयोजन किया। इसके कारण 1764 में बक्सर का युद्ध हुआ।
बक्सर का युद्ध 1764- युद्ध के प्रमुख कारण
- स्वतंत्रता की इच्छा: मीर कासिम ने स्वतंत्रता की इच्छा की एवं अपनी राजधानी कलकत्ता से हटा कर मुंगेर किले में स्थापित की।
- अंग्रेजों से दूर सत्ता का केंद्र स्थापित करने से, उन्हें इसके बारे में अधिक मुखर हुए बिना अंग्रेजों के विरुद्ध समुचित तैयारी करने में सहायता प्राप्त हुई।
- विदेशी ताकतों का समर्थन: उन्होंने अपनी सेना को प्रशिक्षित करने के लिए विदेशी विशेषज्ञों का समर्थन भी प्राप्त किया, जिसमें कुछ ऐसे भी शामिल थे जो अंग्रेजों के साथ संघर्षरत थे।
- करों का उन्मूलन: ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा “दस्तक” एवं “फरमान” (अंग्रेजों को प्रदान किए गए व्यापारी विशेषाधिकार) के दुरुपयोग से भारतीय सौदागरों एवं व्यापारी वर्ग को गंभीर नुकसान हुआ।
- इस भेदभाव को समाप्त करने के लिए मीर कासिम ने इन करों को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया।
- इससे भारतीय व्यापारियों एवं अंग्रेजी व्यापारियों दोनों के साथ समान व्यवहार आरंभ हुआ, जिससे अंग्रेज व्यापारियों को कोई विशेष व्यवहार प्राप्त नहीं हुआ।
- इन कारणों से, अंग्रेजों ने उसका तख्तापलट करने की योजना बनाई एवं 1763 में, मीर कासिम एवं कंपनी के मध्य युद्ध छिड़ गया।
बक्सर का युद्ध 1764- युद्ध का क्रम
- 1763: मीर कासिम एवं ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं के मध्य युद्ध छिड़ गया। मीर कासिम को भारी नुकसान हुआ एवं कटवा, मुर्शिदाबाद, गिरिया, सूटी एवं मुंगेर में अंग्रेजों ने विजय प्राप्त की।
- इसने मीर कासिम को अवध (या औध) पलायन करने पर वाद्य कर दिया।
- वह बंगाल को वापस लेना चाहता था एवं इसलिए, शुजा-उद-दौला (अवध के नवाब) तथा शाह आलम द्वितीय (मुगल सम्राट) के साथ एक संघ का गठन किया।
- 1764: मुगलों, अवध के नवाब एवं मीर कासिम की संयुक्त सेना ने 1764 में ब्रिटिश सेना से भिड़ंत की।
- मीर कासिम ने भारतीय पक्ष का नेतृत्व किया जबकि ब्रिटिश पक्ष की कमान मेजर मुनरो ने संभाली।
- मुगलों, अवध एवं मीर कासिम से संबंधित 40,000 की एक संयुक्त सेना को 10,000 सैनिकों से गठित एक ब्रिटिश सेना ने क्रूरता से पराजित किया था।
- 22 अक्टूबर, 1764 को भारतीय पक्ष युद्ध में पराजित हो गया।
- मीर कासिम युद्ध से पलायन कर गया एवं अन्य दो ने अंग्रेजी सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।
- 1765: अंग्रेजों ने मुगल बादशाह एवं अवध के नवाब को 1765 में इलाहाबाद की अपमानजनक संधि के लिए बाध्य किया।




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