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संपादकीय विश्लेषण: नगरीय सरकारों का लोकतंत्रीकरण एवं उन्हें सशक्त बनाना

स्थानीय स्वशासन:प्रासंगिकता

  • जीएस 2: संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढांचे से संबंधित मुद्दे एवं चुनौतियां, स्थानीय स्तर तक शक्तियों एवं वित्त का हस्तांतरण एवं अंतर्निहित चुनौतियां।

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आरबीआई राज्य वित्त: संदर्भ

 

नगरीय  सरकारों की वित्तीय निर्भरता: प्रमुख बिंदु

  • 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के समान, रिपोर्ट ने टिप्पणी की कि नागरिक निकायों की कार्यात्मक स्वायत्तता में वृद्धि होनी चाहिए तथा उनकी शासनके ढांचे को सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
  • 221 नगर निगमों (2020-21) के आरबीआईके एक सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि 70% से अधिक नगर निगमों के राजस्व में गिरावट देखी गई, जबकि उनके व्यय में लगभग 2% की वृद्धि हुई।
  • इसका तात्पर्य है कि न केवल नगरीय सरकारों को राजस्व अर्जित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था, बल्कि व्यय में भी अत्यधिक वृद्धि हुई थी
  • आरबीआई की रिपोर्ट में संपत्ति कर के सीमित कवरेज एवं नगर निगम के राजस्व में वृद्धि करने में इसकी विफलता पर भी प्रकाश डाला गया है।
    • आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन/ ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनामिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के आंकड़ों से पता चलता है कि विश्व में न्यूनतम संपत्ति कर संग्रह दर- अर्थात संपत्ति कर से जीडीपी अनुपात भारत में है ।

 

वर्तमान स्थानीय स्वशासन तंत्र: मुद्दे

  • निर्वाचित प्रतिनिधियों हेतु कोई स्थान नहीं: आपदा प्रबंधन कार्य योजना के तहत, शहर महामारी से लड़ने में अग्रणी हैं; यद्यपि, निर्वाचित नेतृत्व को उनमें कोई स्थान  प्राप्त नहीं होता है। शहरों को निरंतर राज्य सरकारों के सहायक के रूप में देखा जा रहा है।
  • वित्तीय सशक्तिकरण हेतु कोई स्थान नहीं:  नगरीय विकास राज्य का विषय है, जो राज्यों में राजनीतिक एवं लोकतांत्रिक आंदोलनों से अधिक जुड़ा हुआ है। जबकि स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक दर्जा ने मूल स्तर पर लोकतंत्र को आवश्यक वैधता प्रदान की, वित्तीय सशक्तिकरण पर आवश्यक ध्यान नहीं दिया गया।
  • अपूर्ण 12वीं अनुसूची: 12वीं अनुसूची शहरी स्थानीय निकायों को 18 कार्यों को संपादित करने  हेतु सशक्त बनाने की बात करती है। यद्यपि, इन कार्यों में वित्तीय सशक्तिकरण का कोई उल्लेख नहीं है।
  • कोई निवेश नहीं: “प्रतिस्पर्धी नगरों” का विचार जहां शहरी केंद्रों में उनकी संरचनाओं तथा भूमि कानूनों को लचीला बनाकर निवेश आकर्षित करने की योजना थी, सफल नहीं हो सका क्योंकि शहरों में अधिक निवेश नहीं हुआ है।
  • करों को एकत्र करने की शक्ति को शहरों को छीनना: मूल्य वर्धित कर (वैट) के लागू होने से पहले, चुंगी कर शहरों के लिए सर्वाधिक वांछित करों में से एक था।
    • उदाहरण के लिए: पिंपरी-चिंचवाड़ एवं पुणे बहुत अधिक राजस्व अर्जित करने वाली नगर पालिकाओं में से दो थीं जो चुंगी पर निर्भर थीं, क्योंकि दोनों शहरों में औद्योगिक उत्पादन के मजबूत आधार हैं। यद्यपि, वैट के आगमन ने उनसे राजस्व के इस स्रोत को छीन लिया।
    • पहले, जबकि शहरी केंद्रों के कुल राजस्व व्यय का लगभग 55% चुंगी (जैसे, शिमला) द्वारा वहन किया जाता था, अब, अनुदान – जैसा कि जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल के आधार पर वित्त आयोग द्वारा सुझाया गया है – मात्र 15% व्यय को कवर करता है।
    • इसी प्रकार, जीएसटी के आगमन ने शहरी सरकारों की वित्तीय स्वायत्तता को और कम कर दिया है।

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शहरी सरकारों का वित्तीय सशक्तिकरण: सुझाए गए उपाय

  • जैसा कि आरबीआई की रिपोर्ट द्वारा प्रकाश डाला गया है, नगरीय सरकारों की कार्यात्मक स्वायत्तता की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए।
  • यह कार्यात्मक स्वायत्तता तीन एफ (3 F) के साथ होनी चाहिए: शहर की सरकारों को ‘कार्यों, वित्त और पदाधिकारियों’ (फंक्शंस, फाइनेंसेज एंड फंक्शनरीज) का हस्तांतरण।
  • 74वें संविधान संशोधन की समीक्षा के लिए एक समिति ने सुझाव दिया कि शहरों से एकत्र किए गए आयकर का 10% केंद्र सरकार से प्रत्यक्ष राजस्व अनुदान के रूप में उन्हें वापस दिया जाना था।
  • शहरों को शासन के महत्वपूर्ण केंद्रों के रूप में माना जाना चाहिए, जहां पारदर्शिता एवं लोगों की पर्याप्त भागीदारी होनी चाहिए।
  • शहरों को उद्यमिता के स्थान के रूप में नहीं माना जाना चाहिए जहां एकमात्र प्रेरक शक्ति उन्हें निवेश आकर्षित करने हेतु प्रतिस्पर्धी बनाना है।
  • संवेदनशील समुदायों को ध्यान में रखते हुए आपदा जोखिम न्यूनीकरण योजना सुनिश्चित करने हेतु शहरों को मात्रात्मक एवं गुणात्मक आंकड़ों के लिए आवश्यक संसाधन शीघ्र उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
  • स्मार्ट सिटीजकी अवधारणा जैसे टुकड़ों में बंटे हुए दृष्टिकोण को पूर्ण रूप से त्याग दिया जाना चाहिए। यह दृष्टिकोण लोगों के विभिन्न समूहों के मध्य की खाई को और चौड़ा करता है।
    • बल्कि, केंद्र से अनुदान में वृद्धि की जानी चाहिए एवं शहरों को शहर के निवासियों की प्राथमिकता के आधार पर अपनी योजनाओं की रूपरेखा को स्वयं तैयार करने के लिए कहा जाना चाहिए।
  • शहरों में नेतृत्व को पांच वर्ष की अवधि हेतु निर्वाचित किया जाना चाहिए।
    • कुछ शहरों में मेयर का कार्यकाल एक वर्ष की अवधि के लिए होता है!
  • इसी प्रकार, तीसरे एफ, अर्थात पदाधिकारियों (फंक्शनरीज) को स्थायी संवर्ग वाले शहरों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
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