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राजा राममोहन राय- भारतीय समाज सुधारक

राजा राममोहन राय- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 1: भारतीय इतिहास- आधुनिक भारतीय इतिहास- अठारहवीं शताब्दी के मध्य से लेकर वर्तमान तक की महत्वपूर्ण घटनाएं, व्यक्तित्व, मुद्दे।

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राजा राममोहन राय

  • राजा राममोहन राय, एक महान विद्वान एवं एक स्वतंत्र विचारक, 19वीं सदी के आधुनिक भारत के एक प्रमुख भारतीय समाज सुधारक थे।
  • राजा राममोहन राय को समकालीन भारतीय समाज के सामाजिक-धार्मिक सुधारों में उनके योगदान के लिए ‘भारतीय पुनर्जागरण के जनक’ के रूप में भी जाना जाता है।

राजा राममोहन राय- प्रमुख बिंद

  • जन्म: राजा राम मोहन राय का जन्म मई 1772 में बंगाल प्रेसीडेंसी के हुगली जिले के राधानगर में हुआ था।
    • राजा राममोहन राय का जन्म एक रूढ़िवादी बंगाली हिंदू परिवार में हुआ था।
  • शिक्षा:
    • राजा राम मोहन राय ने पटना, बिहार में उच्च शिक्षा प्राप्त की जहां उन्होंने फारसी एवं अरबी का अध्ययन किया।
    • विभिन्न भाषाएँ सीखना: राजा राममोहन राय ने हिंदी एवं अंग्रेजी के साथ-साथ बांग्ला, फारसी, अरबी एवं संस्कृत भी सीखी थी।
  • धर्मों के बारे में सीखना: राजा राममोहन राय वाराणसी चले गए एवं वेदों, उपनिषदों और हिंदू दर्शन का गहराई से अध्ययन किया।
    • राजा राममोहन राय ने ईसाई धर्म एवं इस्लाम के बारे में भी ज्ञान प्राप्त किया।
  • ब्रिटिश सरकार से जुड़ाव: राजा राममोहन राय ने 1809 से 1814 तक ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व विभाग में कार्य किया।
    • राजा राममोहन राय ने वुडफोर्ड एवं डिग्बी के निजी दीवान के रूप में भी कार्य किया।
  • शैक्षिक संस्थानों के साथ जुड़ाव: राजा राममोहन राय ने भारतीयों को पश्चिमी वैज्ञानिक शिक्षा में अंग्रेजी भाषा में शिक्षित करने हेतु अनेक शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना में सहायता की। उदाहरण के लिए-
    • हिंदू कॉलेज, (1817): राजा राममोहन राय ने 1817 में हिंदू कॉलेज की स्थापना के डेविड हेयर के प्रयासों में सहायता की।
    • राजा राममोहन राय के अंग्रेजी स्कूल में यांत्रिकी एवं वॉल्टेयर का दर्शन पढ़ाया जाता था। 1822 में, राजा राममोहन राय ने अंग्रेजी शिक्षा पर आधारित एक विद्यालय की स्थापना की।
    • वेदांत कॉलेज (1825): राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित वेदांत कॉलेज ने भारतीय शिक्षा एवं पश्चिमी सामाजिक तथा भौतिक विज्ञान दोनों में पाठ्यक्रम प्रारंभ किए।

राजा राममोहन राय- साहित्यिक कार्य

  • राजा राममोहन राय ने सोलह वर्ष की आयु में हिंदू मूर्ति पूजा की तर्कसंगत आलोचना की।
  • राजा राममोहन राय ने वेदों एवं पांच उपनिषदों का बंगाली में अनुवाद किया।
  • महत्वपूर्ण रचनाएं: राजा राममोहन राय ने तुहफत-उल-मुवाहिदीन (देवताओं को एक उपहार) (1803), एकेश्वरवादियों को उपहार (1809), कठोपनिषद (1816), मुण्डक उपनिषद (1917), यीशु के उपदेश (1820), इत्यादि की रचना की।
  • महत्वपूर्ण पत्रिकाएं-
    • बंगाली में संवाद कौमुदी (1821) : यह नियमित रूप से सती प्रथा की एक बर्बर कृत्य के रूप में एवं हिंदू धर्म के सिद्धांतों के विरुद्ध होने की निंदा करता था।
    • ब्रह्मनिकल मैगजीन (1821)
    • मिरात-उल-अखबर (फारसी भाषा की पत्रिका) 1822

राजा राम मोहन राय- सामाजिक-धार्मिक संगठनों का गठन

  • राजा राममोहन राय को उस समय के समकालीन भारतीय समाज के सामाजिक-धार्मिक सुधारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सामाजिक-धार्मिक संगठनों की स्थापना का श्रेय प्रदान किया जाता है।
  • राजा राममोहन राय द्वारा गठित महत्वपूर्ण संगठन हैं- आत्मीय सभा (1814), कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन (1821), ब्रह्म सभा (1828) (बाद में 1830 में यह ब्रह्म समाज बन गया)।
  • इन संगठनों के माध्यम से, राजा राममोहन राय ने समान विचारधारा वाले लोगों का समर्थन सुनिश्चित किया और अपने सुधार आंदोलन को धरातल पर लागू किया।

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राजा राममोहन राय- रोचक तथ्य

  • रवींद्र नाथ टैगोर ने राममोहन को ‘भारतीय इतिहास के आकाश में एक चमकदार सितारा’ के रूप में संदर्भित किया।
  • राजा राममोहन राय को मुगल सम्राट अकबर द्वितीय द्वारा ‘राजा’ की उपाधि दी गई थी, जिनकी शिकायतों को उन्होंने ब्रिटिश राजा के सामने प्रस्तुत किया था।
    • राजाराम मोहन राय ने मुगल सम्राट अकबर शाह द्वितीय के राजदूत के रूप में इंग्लैंड का दौरा किया, जहां सितंबर 1833 में ब्रिस्टल, इंग्लैंड में उनकी मृत्यु हो गई।

 

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