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लोक लेखा समिति (पीएसी) संक्षिप्त इतिहास, भूमिका एवं कार्य

लोक लेखा समिति: यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता

जीएस 2: संसद, भारतीय संविधान, कार्यपालिका

लोक लेखा समिति (पीएसी) संक्षिप्त इतिहास, भूमिका एवं कार्य_3.1

लोक लेखा समिति (पब्लिक अकाउंट्स कमिटी/पीएसी): परिचय

  • लोक लेखा समिति सबसे पुरानी संसदीय समिति है एवं प्रथम बार 1921 में गठित की गई थी।
  • समिति में 22 सदस्य होते हैं, जिसमें से 15 सदस्य लोकसभा द्वारा चुने जाते हैं तथा राज्यसभा के 7 सदस्य इससे संबद्ध होते हैं।
  • अध्यक्ष को इसके सदस्यों में से समिति के अध्यक्ष को नियुक्त करने का अधिकार है।
  • लोक लेखा समिति या कोई अन्य संसदीय समिति व्यापक अर्थों में नीति निर्माण से संबंधित नहीं है,  यद्यपि यह उसके अधिकार क्षेत्र में है कि वह यह बताए कि क्या उस नीति को लागू करने में धन का अपव्यय या बर्बादी हुई है।

 

लोक लेखा समिति (पीएसी): संसदीय लोकतंत्र में समिति प्रणाली का महत्व

  • संसदीय लोकतंत्र में समिति प्रणाली का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है। संसदीय समितियों के बिना संसदीय लोकतंत्र अधूरा होगा, क्योंकि जनप्रतिनिधियों द्वारा सार्वजनिक खातों की जांच जवाबदेही सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो शासन के लिए केंद्रीय है।
  • विधायिका के प्रति प्रशासनिक जवाबदेही ऐसी संसदीय प्रणाली की अनिवार्य शर्त बन जाती है।
  • संसद द्वारा कार्यपालिका पर जो नियंत्रण स्थापित किया जाता है, वह इस मूल सिद्धांत से उत्पन्न हुआ है कि संसद लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है एवं इसलिए, संसद द्वारा निर्धारित सार्वजनिक नीति को लागू करने की रीति की निगरानी करने में सक्षम होना चाहिए।
  • यद्यपि, सरकारी क्रियाकलापों में हुए अभूतपूर्व प्रसार ने विधायिकाओं के कार्य को अत्यधिक जटिल एवं विविध बना दिया है।
  • अपनी प्रकृति से, संसद, एक निकाय के रूप में सरकार तथा उसके क्रियाकलापों के संपूर्ण क्षेत्र पर प्रभावी नियंत्रण नहीं रख सकती है।
  • समितियों के माध्यम से विधायिका के प्रति प्रशासनिक जवाबदेही हमारी राजनीतिक व्यवस्था की विशेषता रही है।

 

लोक लेखा समिति (पीएसी): पीएसी के बारे में

  • लोक लेखा समिति को हमारी समिति प्रणाली में प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त है।
  • लोक लेखा समिति सबसे पुरानी संसदीय समिति है एवं प्रथम बार 1921 में गठित की गई थी।
  • समिति में 22 सदस्य होते हैं, जिसमें से 15 सदस्य लोकसभा द्वारा चुने जाते हैं तथा राज्यसभा के 7 सदस्य इससे संबद्ध होते हैं।
  • अध्यक्ष को इसके सदस्यों में से समिति के अध्यक्ष को नियुक्त करने का अधिकार है।
  • लोक लेखा समिति का गठन प्रत्येक वर्ष संसद द्वारा भारत सरकार के व्यय के लिए संसद द्वारा दी गई राशियों के विनियोग, भारत सरकार के वार्षिक वित्तीय लेखों एवं संसद के समक्ष रखे गए अन्य लेखों जिन्हें  समिति उचित समझे जैसे, स्वायत्त एवं अर्ध-स्वायत्त निकायों  के खातों (सार्वजनिक उपक्रमों तथा सरकारी कंपनियों के उन खातों को छोड़कर जो सार्वजनिक उपक्रमों की समिति के दायरे में आते हैं) की जांच के लिए किया जाता है।

 

लोक लेखा समिति (पीएसी): पीएसी का संक्षिप्त इतिहास

स्वतंत्रता पूर्व ढांचा

  • लोक लेखा समिति का गठन प्रथम बार 1921 में मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के आलोक में किया गया था।
  • कार्यकारी परिषद के वित्त सदस्य समिति के अध्यक्ष हुआ करते थे।
  • समिति को सचिवालय सहायता तत्कालीन वित्त विभाग (अब वित्त मंत्रालय) द्वारा प्रदान की जाती थी।
  • यह स्थिति 1949 तक बनी रही। अंतरिम सरकार के दिनों में, तत्कालीन वित्त मंत्री ने समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया तथा बाद में, अगस्त, 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात, वित्त मंत्री इस समिति के अध्यक्ष बने।
  • इसने स्वाभाविक रूप से कार्यपालिका के विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति एवं आलोचना को प्रतिबंधित कर दिया।

26 जनवरी 1950 के बाद आमूलचूल परिवर्तन

  • लोक लेखा समिति ने 26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान के लागू होने के साथ एक आमूलचूल परिवर्तन किया, जब समिति के लिए निर्वाचित लोकसभा सदस्यों में से लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नियुक्त एक गैर-सरकारी अध्यक्ष के साथ समिति लोकसभा अध्यक्ष के नियंत्रण में कार्य करने वाली एक संसदीय समिति बन गई।
  • लोकसभा में प्रक्रिया एवं कार्य संचालन के नियमों के नियम 309 (i) के तहत वित्त मंत्री समिति के सदस्य नहीं रहे।
  • स्वतंत्रता के बाद इस निकाय को और अधिक शक्तियां प्राप्त हुई, विशेष रूप से 1967 के बाद जब यह निर्णय लिया गया कि विपक्षी दल का एक लोकसभा सांसद इसकी अध्यक्षता करेगा।

 

लोक लेखा समिति (पीएसी): सदस्यता के लिए शर्तें

  • वर्ष 1954-55 से पूर्व, समिति में 15 सदस्य होते थे जो लोकसभा द्वारा इसके सदस्यों में से चुने जाते थे।
  • किंतु वर्ष 1954-55 से राज्य सभा के 7 सदस्यों को भी समिति से संबद्ध किया जा रहा है। 1966-67 तक, सत्ताधारी दल के एक वरिष्ठ सदस्य को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जाता था।
  • 1967 में, यद्यपि, प्रथम बार लोकसभा में विपक्ष के एक सदस्य को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। यह प्रथा आज तक जारी है।
  • समिति के सदस्यों का कार्यकाल एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होता है।
  • एक मंत्री को समिति का सदस्य नहीं चुना जाता है तथा यदि कोई 2 सदस्य, समिति के लिए उसके चयन के पश्चात् मंत्री नियुक्त किया जाता है, तो ऐसी नियुक्ति की तिथि से समिति का सदस्य नहीं रह जाता है।
  • समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा से समिति के सदस्यों में से लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है।

 

लोक लेखा समिति (पीएसी): लोक लेखा समिति के प्रमुख कार्य

लोक लेखा समिति भारत सरकार के विनियोग लेखाओं एवं उन पर भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के प्रतिवेदनों की संवीक्षा करती है। ऐसा करते समय, समिति का यह कर्तव्य है कि वह स्वयं का समाधान करे:-

  1. कि खातों में दिखाया गया धन जिसका व्यय किया गया है, कानूनी रूप से उपलब्ध है एवं उस सेवा या उद्देश्य के लिए अनुप्रयोज्य है, जिसके लिए उपयोजित या भारित किया गया है;
  2. कि व्यय उस प्राधिकार के अनुरूप है जो इसे शासित करता है; तथा
  3. कि प्रत्येक पुनर्विनियोजन सक्षम प्राधिकारी द्वारा बनाए गए नियमों के तहत इस संबंध में किए गए प्रावधानों के अनुसार किया गया है।
  4. पीएसी का यह भी कर्तव्य है कि:-
  5. राज्य निगमों की आय एवं व्यय, व्यापार  तथा निर्माण योजनाओं, प्रतिष्ठान एवं परियोजनाओं के साथ-साथ  तुलन पत्र (बैलेंस शीट) तथा लाभ एवं हानि खातों के विवरण प्रदर्शित करने वाले खातों के विवरण की जांच करने हेतु जिन्हें राष्ट्रपति तैयार करना आवश्यक समझे अथवा किसी विशेष निगम व्यापार या निर्माण योजना या प्रतिष्ठानों अथवा परियोजना के वित्तपोषण को विनियमित करने वाले सांविधिक नियमों  के प्रावधानों के तहत  तैयार किए गए हों एवं उस पर सीएजी की रिपोर्ट;
  6. स्वायत्त एवं अर्ध-स्वायत्त निकायों की आय तथा व्यय को दर्शाने वाले खातों के विवरण की जांच करने के लिए, जिसकी लेखा परीक्षा भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा या तो राष्ट्रपति के निर्देशों के तहत या संसद की एक विधि द्वारा की जा सकती है; तथा
  7. उन मामलों में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए जहां राष्ट्रपति ने उनसे  किन्ही प्राप्तियों का अंकेक्षण करने अथवा संधारण एवं स्टॉक के खातों की जांच करने की आवश्यकता की हो।

 

लोक लेखा समिति (पीएसी): संसदीय समितियों का महत्व

  • संसदीय समितियां सभी राजनीतिक दलों से दोनों सदनों के सांसदों की छोटी इकाइयां हैं तथा वे पूरे वर्ष कार्य करती हैं।
  • सांसदों के ये छोटे समूह सभी मंत्रालयों के कई विषयों, विधेयकों एवं बजटों का अध्ययन तथा विचार-विमर्श करते हैं।
  • चूंकि समितियों की बैठक पूरे वर्ष भर होती है, इसलिए वे सदन के पटल पर उपलब्ध समय  के इस अभाव को पूरा करने में सहायता करती हैं।
  • संसद जटिल मामलों पर विचार करती है एवं इसलिए ऐसे मामलों को बेहतर ढंग से समझने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। समितियां एक मंच प्रदान करके इसमें सहायता करती हैं जहां सदस्य अपने अध्ययन के दौरान क्षेत्र के विशेषज्ञों एवं सरकारी अधिकारियों के साथ जुड़ सकते हैं।है

 

लोक लेखा समिति (पीएसी): लोक लेखा समिति में आवश्यक सुधार

  • लोक लेखा समिति को लोक लेखा एवं लेखा परीक्षा समिति के रूप में पुन: नामित किया जा सकता है, इस तथ्य को देखते हुए कि लेखा परीक्षा समीक्षा भी इसका प्रमुख कार्य है।
  • इसे लोगों से प्रत्यक्ष अंतः क्रिया करनी चाहिए एवं उनसे इनपुट लेना चाहिए। जितना अधिक वे लोगों के साथ अंतःक्रिया करेंगे, उनकी संस्तुतियां उतनी ही प्रभावी एवं सार्थक होंगी।
  • चूंकि लोक लेखा समिति को सामाजिक-आर्थिक परिणामों के संदर्भ में संसाधन उपयोग की प्रभावशीलता की जांच करनी है, इसलिए समिति के लिए व्यापक प्रतिफल हेतु इन दो उद्देश्यों को संतुलित करने के मुद्दे की जांच करना वैध हो सकता है।
  • लोक लेखा समिति के अध्यक्षों की एक समिति होनी चाहिए, जो लोक लेखा समिति के कामकाज पर विस्तृत चर्चा कर सके।
  • संसद एवं राज्य विधानसभाओं की लोक लेखा समितियों के लिए एक साझा मंच होना चाहिए। इससे कार्यपालिका का बेहतर समन्वय एवं अधिक पारदर्शिता  तथा जवाबदेही सुनिश्चित होगा।
  • लोक लेखा समिति को अधिक उत्तरदायी, पारदर्शी एवं जनता के लिए लाभकारी बनाने के लिए कार्यान्वयन  हेतु इस समिति के सुझावों पर पीठासीन अधिकारियों के मध्य चर्चा की जा सकती है।

 

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