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भारत में अवेक्षण का मुद्दा: पेगासस स्पाइवेयर, संबद्ध चिंताएं और आगे की राह
प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां एवं अंतःक्षेप तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
- जीएस पेपर 3: साइबर सुरक्षा, साइबर युद्ध, तथा संचार संजाल (नेटवर्क) के द्वारा आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौतियां।
प्रसंग
- अनेक एजेंसियों द्वारा एक वैश्विक सहयोगपूर्ण अनुसंधान परियोजना से ज्ञात हुआ है कि इजरायली स्पाइवेयर पेगासस का उपयोग संपूर्ण विश्व में में हजारों व्यक्तियों को लक्षित करने के लिए किया गया था।
- माना जाता है कि भारत में कम से कम 300 व्यक्तियों को लक्षित किया गया है।
- सरकार ने इसका खंडन किया है और दावा किया है कि भारत में सभी अन्तर्रोध विधिक रूप से होते हैं।
पेगासस के बारे में अधिक जानकारी हेतु –Pegasus Spyware को पढ़िए
भारत में अवेक्षण से संबंधित विधान
संचार के अन्तर्रोध एवं अवेक्षण को अधिकृत करने वाले विधान हैं:
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 92
- टेलीग्राफ अधिनियम, 1885: कॉल अपरोधन (इंटरसेप्शन) से संबंधित है।
- खंड 5(2) में दिए गए अनुसार अन्तर्रोध के लिए आधार:
- भारत की संप्रभुता एवं अखंडता के हित,
- राज्य की सुरक्षा,
- विदेशी राज्यों या सार्वजनिक व्यवस्था के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध,
- किसी अपराध को कारित करने वाले उकसावे को रोकना।
- टेलीग्राफ अधिनियम के नियम 419 ए के अंतर्गत प्रदान किए गए प्रक्रियात्मक रक्षोपाय: यह कहता है कि गृह मंत्रालय में भारत सरकार का एक सचिव (संयुक्त सचिव के पद से नीचे का नहीं)केंद्र के मामले में और इसी तरह के प्रावधान राज्य स्तर पर उपस्थित होने की स्थिति में अवरोधन के आदेश पारित कर सकता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: समस्त इलेक्ट्रॉनिक संचार के अवेक्षण से संबंधित है।
- आईटी अधिनियम की धारा 69: इसमें प्रावधान अस्पष्ट हैं एवं अवेक्षण हेतु व्यापक गुंजाइश है क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक अवेक्षण को सम्मिलित करने हेतु एकमात्र आवश्यकता ” एक अपराध का अन्वेषण” के लिए है।
- अस्पष्ट एवं व्यापक प्रावधान सरकारों को अवैध अन्तर्रोध तथा अवेक्षण गतिविधियों में सम्मिलित होने का अवसर प्रदान करते हैं।
- खंड 5(2) में दिए गए अनुसार अन्तर्रोध के लिए आधार:
संबंधित चिंताएं
- मूल अधिकारों का उल्लंघन: एक अवेक्षण प्रणाली का अस्तित्व निजता के अधिकार (के.एस. पुट्टास्वामी निर्णय, 2017) तथा वाक् स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) एवं प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) के अधिकार को प्रभावित करता है।
- पत्रकारों, नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं की सुरक्षा को संकट में डालना, जिससे भारत एवं विश्व में प्रेस की स्वतंत्रता में और गिरावट आई है।
- विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक ने 2021 में 180 देशों में से भारत को 142 वें स्थान पर रखा है (2016 में भारत का स्थान 133वां था)।
- व्यापक स्तर पर अवेक्षण का मुद्दा: प्रौद्योगिकी की उन्नति के कारण, राज्य द्वारा विशिष्ट अवेक्षण के स्थान पर व्यापक स्तर पर अवेक्षण हेतु स्पाइवेयर जैसे उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है, जो लोकतांत्रिक राष्ट्र की आत्मा एवं सार को संकट में डालते हैं।
- अपर्याप्त विधायी रक्षोपाय: भारत को अवेक्षण के लिए वर्तमान अवसंरचना में कमियों को दूर करने के लिए एक व्यापक डेटा संरक्षण विधान निर्मित करना शेष है।
- अवेक्षण हेतु अधिकृत एजेंसियों के संदर्भ में स्पष्टता का अभाव: विधिक खामियां उत्पन्न करता है जिसका दुरुपयोग सुरक्षा एजेंसियों द्वारा कुछ निहित स्वार्थो की पूर्ति करने हेतु निर्देशित अवैध अवेक्षण करने के लिए किया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रेक्षण
- पब्लिक यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1996):
- सर्वोच्च न्यायालय ने टेलीग्राफ अधिनियम के प्रावधानों में प्रक्रियात्मक रक्षोपायों के अभाव की ओर संकेत किया एवं अन्तर्रोध के लिए कुछ दिशा निर्देश निर्धारित किए।
- न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में से एक समीक्षा समिति का गठन करना था जो टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5(2) के अंतर्गत किए गए प्राधिकारों पर विचार कर सकती है।
- अवेक्षण के संबंध में के.एस. पुट्टास्वामी निर्णय, 2017:
- निर्णय ने तीन परीक्षण निर्धारित किए जिनका व्यक्तिगत निजता का उल्लंघन करने से पूर्व समाधान होना चाहिए। वे हैं–
- वे प्रतिबंध विधि अनुसार होने चाहिए;
- यह आवश्यक होना चाहिए ( मात्र यदि अन्य साधन उपलब्ध नहीं हों) एवं आनुपातिक ( मात्र उतना ही जितना आवश्यक हो);
- इसे एक वैध राज्य हित (जैसे, राष्ट्रीय सुरक्षा) को प्रोत्साहन देना चाहिए।
- निजता का अधिकार राज्य और गैर-राज्य दोनों हितधारकों के विरुद्ध उपलब्ध है।
- न्यायालय ने कहा कि निजता का अधिकार संविधान के भाग III का एक अंतर्निहित और अभिन्न अंग है जो मूल अधिकारों की प्रत्याभूति प्रदान करता है।
- निर्णय ने तीन परीक्षण निर्धारित किए जिनका व्यक्तिगत निजता का उल्लंघन करने से पूर्व समाधान होना चाहिए। वे हैं–
आगे की राह
- व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) विधेयक, 2019: देश में व्यापक विधिक गोपनीयता सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संसद द्वारा इसके अधिनियमन के बाद व्यापक रूप से विचार एवं चर्चा की जानी चाहिए।
- अवेक्षण की नैतिकता को सम्मिलित करना: भारत की अवेक्षण प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिए जो व्यक्तिगत नागरिकों पर अवेक्षण को क्रियान्वित करने के लिए नैतिक पहलुओं पर विचार करता है।
- अवेक्षण प्रणालियों पर न्यायिक निरीक्षण: सरकार द्वारा इसके दुरुपयोग को सीमित करते हुए कार्यपालिका की अवेक्षण गतिविधियों पर एक नियंत्रण के रूप में कार्य करेगा।
- संसदीय निरीक्षण एवं संवीक्षा: विभिन्न जांच प्राधिकारों के कामकाज पर नजर रखी जानी चाहिए।
- संसद को विधायी कार्रवाई के माध्यम से विभिन्न जांच एजेंसियों के अस्तित्व और कामकाज के लिए एक स्पष्ट और व्यापक विधिक ढांचा प्रदान करना चाहिए।
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