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वन्य वनस्पतियों एवं जीवों की संकटग्रस्त प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (सीआईटीईएस)

वन्य वनस्पतियों एवं जीवों की संकटग्रस्त प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (सीआईटीईएस) के बारे में

  • सीआईटीईएस संकटग्रस्त प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित अथवा प्रतिबंधित करने हेतु एक वैश्विक अंतर-सरकारी समझौता है।
  • सीआईटीईएस अंतरराष्ट्रीय व्यापार के कारण प्रजातियों को संकटग्रस्त अथवा विलुप्त होने से रोकने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।
  • इस संधि के तहत, देश पशुओं एवं पौधों की प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करने के लिए मिलकर कार्य करते हैं तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि यह व्यापार वन्य आबादी के अस्तित्व के लिए हानिकारक नहीं है।
  • सीआईटीईएस के अनुसार,गहन जैविक समझ एवं सिद्धांतों के आधार पर संरक्षित पौधों एवं पशुओं की प्रजातियों में कोई भी व्यापार धारणीय होना चाहिए।
  • यद्यपि सीआईटीईएस विधिक रूप से पक्षकारों के लिए बाध्यकारी है, किंतु यह राष्ट्रीय कानूनों का स्थान नहीं लेता है।  इसके स्थान पर यह प्रत्येक पक्षकार द्वारा सम्मानित किए जाने हेतु एक ढांचा प्रदान करता है, जिसे यह सुनिश्चित करने के लिए अपना स्थानीय (घरेलू) विधान को अंगीकृत करना पड़ता है ताकि सीआईटीईएस को राष्ट्रीय स्तर पर  क्रियान्वित किया जाए।

वन्य वनस्पतियों एवं जीवों की संकटग्रस्त प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (सीआईटीईएस)_3.1

सीआईटीईएस  का इतिहास

  • 1960 के दशक के आरंभ में, अंतरराष्ट्रीय चर्चा ने उस दर पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया जिस पर विश्व के वन्यजीवों एवं वनस्पतियों को अनियंत्रित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से खतरा था।
  • केन्या के नैरोबी में आईयूसीएन की बैठक में 1963 में अपनाए गए एक प्रस्ताव के परिणामस्वरूप अभिसमय का प्रारूप तैयार किया गया था।
  • अभिसमय की विषय वस्तु पर 1973 में वाशिंगटन डी.सी. में सहमति स्थापित हुई थी। ठीक 2 वर्ष पश्चात, 1 जुलाई 1975 को, सीआईटीईएस प्रवर्तन में आया।
  • आज, 182 देशों एवं यूरोपीय संघ ने सीआईटीईएस को लागू किया है, जो वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की 35,000 से अधिक प्रजातियों को परिवर्ती (अलग-अलग) सुरक्षा प्रदान करता है।

 

सीआईटीईएस की आवश्यकता क्यों है?

  • बाघ एवं हाथियों जैसी कई प्रमुख प्रजातियों की संकटग्रस्त स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी, इस तरह के  अभिसमय की आवश्यकता को स्पष्ट कर सकती है।
  • सालाना, अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार अरबों डॉलर का होने का अनुमान है एवं इसमें लाखों पौधों तथा पशुओं के प्रतिदर्श सम्मिलित हैं।
  • यह व्यापार विविध है, जिसमें जीवित पशुओं एवं वनस्पतियों से लेकर वन्यजीव उत्पादों की एक विशाल श्रृंखला सम्मिलित होती है, जिसमें खाद्य उत्पाद, चमड़े के आकर्षक सामान, काष्ठ निर्मित के संगीत वाद्ययंत्र, लकड़ी, पर्यटक जिज्ञासा एवं दवाएं शामिल हैं।
  • कुछ जीवों एवं वनस्पतियों की प्रजातियों के दोहन का स्तर उच्च हैं एवं उनमें व्यापार, अन्य कारकों के साथ, जैसे कि पर्यावास की हानि, उनकी आबादी मेंस व्यापक रूप से ह्रास करने तथा यहां तक ​​कि कुछ प्रजातियों को विलुप्त होने के करीब लाने में सक्षम है।
  • व्यापार में अनेक वन्य जीव प्रजातियां संकटग्रस्त नहीं हैं, किंतु भविष्य के लिए इन संसाधनों की सुरक्षा के लिए व्यापार की धारणीयता सुनिश्चित करने के लिए एक समझौते का अस्तित्व महत्वपूर्ण है।
  • चूंकि वन्य जीवों एवं वनस्पतियों का व्यापार देशों के मध्य सीमाओं को पार करता है, अतः इसे विनियमित करने के प्रयास में कुछ प्रजातियों को अति-दोहन से सुरक्षित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है।

 

 

सीआईटीईएस सीओपी

  • सीआईटीईएस के लिए पक्षकारों का सम्मेलन (सीओपी) अभिसमय का सर्वोच्च निर्णय निर्माण निकाय है एवं इसमें इसके सभी पक्षकार सम्मिलित हैं।
  • सीओपी सीआईटीईएस की बैठक प्रत्येक दो-तीन वर्ष में आयोजित की जाती है।
  • नवीनतम सीओपी सीआईटीईएस सीओपी 18 था जो 2019 में जिनेवा, स्विट्जरलैंड में आयोजित हुआ था।
  • भारत ने 1981 में सीओपी (तृतीय) की मेजबानी की थी।

 

सीआईटीईएस प्रजातियां

परिशिष्ट विवरण  प्रजातियों के उदाहरण 
सीआईटीईएस परिशिष्ट-I
  • प्रजातियां जो विलुप्त होने के खतरे में हैं
  • व्यापारिक व्यापार प्रतिबंधित है।
  • आयात एवं निर्यात के लिए अनुज्ञा (परमिट) की आवश्यकता होती है।
  • केवल अनुसंधान के लिए व्यापार की अनुमति केवल तभी प्रदान की जाती है जब मूल देश यह सुनिश्चित करता है कि व्यापार प्रजातियों की उत्तरजीविता (जीवित रहने) की संभावना को नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
  • एशियाई शेर  बाघ।
  • समुद्री कछुए, गोरिल्ला, लेडी स्लिपर्स, ऑर्किड, इत्यादि।
  • सूची में कुल 931 प्रजातियां हैं।
सीआईटीईएस परिशिष्ट-II
  • प्रजातियां जो आसन्न विलुप्ति का सामना नहीं कर रही हैं, किंतु अनुश्रवण (निगरानी) की आवश्यकता है ताकि कोई भी व्यापार एक खतरा न बन जाए।
  • व्यापार परमिट कानूनी रूप से प्राप्त किए गए हैं एवं केवल तभी जब मूल देश यह सुनिश्चित करता है कि इसका दोहन एवं व्यापार प्रजातियों  की उत्तरजीविता (जीवित रहने) की संभावना को नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
  • अमेरिकी घड़ियाल
  • पैडलफिश, महोगनी, प्रवाल इत्यादि।
  • सूची में कुल 34,419 प्रजातियां हैं।
सीआईटीईएस परिशिष्ट-III
  • प्रजातियां जो कम से कम एक देश में संरक्षित हैं।
  • इन प्रजातियों के लिए नियम भिन्न भिन्न हैं, किंतु आम तौर पर जिस देश ने सूचीबद्ध करने (लिस्टिंग का अनुरोध किया है, वह निर्यात परमिट जारी कर सकता है, तथा अन्य देशों से निर्यात के लिए मूल प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है।
  • हनी बैजर (औषधीय उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त)
  • वालरस, मैप कछुए, कुछ भृंग (बीटल), इत्यादि।
  • सूची में कुल 147 प्रजातियां हैं।

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सीआईटीईएस इंडिया

  • भारत सीआईटीईएस का एक सदस्य बना एवं 1976 में सीआईटीईएस की अभिपुष्टि की।
  • भारत उन कुछ देशों में से एक है जिसने अभिसमय के अन्य पक्षकारों की तुलना में सीआईटीईएस के परिशिष्ट III का व्यापक उपयोग किया है।
  • भारत द्वारा अत्यधिक विविधता को धारित किए जाने कारण, भारत को विश्व में सीआईटीईएस द्वारा अभिलिखित (दर्ज) की गई सभी प्रजातियों में से 7-8% तक आश्रय देने हेतु अभिनिर्धारित किया गया है।
  • वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो भारत में सीआईटीईएस कार्यान्वयन के लिए नोडल प्राधिकरण है।

 

प्रायः  पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न. सीआईटीईएस का पूर्ण रूप क्या है? 

उत्तर. सीआईटीईएस का तात्पर्य वन्य वनस्पतियों एवं जीवों की संकटग्रस्त प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय है।

प्रश्न. सीआईटीईएस  यूपीएससी क्या है? 

उत्तर. सीआईटीईएस अंतरराष्ट्रीय व्यापार के कारण प्रजातियों के संकटग्रस्त अथवा विलुप्त होने से रोकने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।

 

 

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