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स्थानीय स्वशासन के मूल्य चर्चा में क्यों है?
- भारत स्थानीय प्रशासन सुधारों की 30वीं वर्षगांठ मना रहा है जो 72वें एवं 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के माध्यम से लागू किए गए थे। इस संदर्भ में, मूलभूत प्रश्न पूछना महत्वपूर्ण है:
- स्थानीय सरकारों को सशक्त क्यों बनाया जाना चाहिए?
- संवैधानिक सुधारों के बावजूद वे कमजोर क्यों हैं?
- स्थानीय स्वशासन के विचार को कैसे पुनर्जीवित किया जा सकता है?
स्थानीय स्वशासन की पृष्ठभूमि
- दिसंबर 1992 में, संसद ने 73वां एवं 74वां संवैधानिक संशोधन पारित किया, जिसने क्रमशः पंचायतों एवं नगरपालिकाओं की स्थापना की।
- इन संशोधनों में अधिदेशित किया गया है कि राज्य सरकारें प्रत्येक क्षेत्र में पंचायतों (गांव, प्रखंड एवं जिला स्तर पर) तथा नगर पालिकाओं (नगर निगमों, नगर परिषदों एवं नगर पंचायतों के रूप में) का गठन करें।
- उन्होंने स्थानीय सरकारों को कार्यों, निधियों एवं पदाधिकारियों के हस्तांतरण के माध्यम से संघीय ढांचे में शासन के तीन स्तरों (त्रिस्तरीय) की स्थापना करने की मांग की।
स्थानीय स्व-शासन के साथ संबद्ध चिंताएँ
- चूंकि स्थानीय सरकारें कदाचित ही कभी अपने अधिकार प्रत्यक्ष रुप से संविधान से प्राप्त करती हैं, विकेंद्रीकरण के लिए भारत के संवैधानिक सुधार अपवादात्मक हैं।
- किंतु इन सुधारों के बावजूद, नगरपालिका सरकारों को प्रायः नागरिकों की सर्वाधिक मूलभूत आवश्यकताओं, जैसे विश्वसनीय जल आपूर्ति एवं चलने योग्य फुटपाथों को भी पूरा करने में अप्रभावी देखा जाता है।
- शहरी निवासी इन नागरिक संकटों के लिए “भ्रष्ट” स्थानीय राजनेताओं को दोष देते हैं।
- स्थानीय स्वशासन के संवैधानिक वादे के बावजूद, स्थानीय सरकारें, विशेष रूप से नगर पालिकाएँ, सीमित स्वायत्तता एवं अधिकार के साथ कार्य करती हैं।
- उनकी कमजोरियों को 74 वें संशोधन की अंतर्निहित सीमाओं एवं संशोधन को अक्षरश: लागू करने एवं व्याख्या करने में राज्य सरकारों तथा न्यायालयों की विफलता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
- सीमाओं में शक्तियों के हस्तांतरण एवं स्थानीय कर आरोपित करने के संबंध में राज्यों को प्रदान किया गया विवेकाधिकार सम्मिलित है।
- राज्य सरकारें 74वें संशोधन को लागू करने के प्रति अनिच्छुक हैं क्योंकि शहर आर्थिक महाशक्तियां हैं एवं शहरी भूमि को नियंत्रित करना राज्य सरकारों एवं राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए महत्वपूर्ण है।
स्थानीय स्वशासन का सामान्य आधार
- स्थानीय स्व-शासन सहायकता के विचार से जुड़ा हुआ है एवं आमतौर पर दो व्यापक तर्कों पर आधारित है।
- सर्वप्रथम, यह सार्वजनिक वस्तुओं के कुशल प्रावधान की व्यवस्था करता है क्योंकि छोटे क्षेत्राधिकार वाली सरकारें अपने निवासियों की प्राथमिकताओं के अनुसार सेवाएं प्रदान कर सकती हैं।
- दूसरा, यह गंभीर लोकतंत्र को प्रोत्साहित करता है क्योंकि जो सरकारें लोगों के करीब होती हैं, वे नागरिकों को सार्वजनिक मामलों से अधिक सरलता से जुड़ने देती हैं।
- भारत का विकेंद्रीकरण एजेंडा भी निसंदेह इन मूल्यों से प्रेरित है।
स्थानीय सरकार के संशोधनों के प्रमुख नियामक/मूल्य पहलू
- 73वें एवं 74वें संशोधन में राज्यों को पंचायतों तथा नगर पालिकाओं को “स्वशासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाने” का अधिकार प्रदान करने की आवश्यकता है, जिसमें आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय के लिए योजनाओं तथा स्कीमों को तैयार करने एवं लागू करने की शक्तियां शामिल हैं।
- वे स्थानीय चुनावों के नियमित संचालन को भी अधिदेशित करते हैं, स्थानीय परिषदों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण प्रदान करते हैं एवं पंचायतों में ग्राम सभाओं तथा नगर निगमों में वार्ड समितियों जैसे भागीदारी मंचों की स्थापना करते हैं।
- अतः, मूल मूल्यों को मजबूत करने के लिए मांगे गए संशोधन स्थानीय लोकतंत्र को और गहन करने एवं आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कार्यों को विकसित करने के लिए हैं।
- स्थानीय सरकारों की भूमिका एवं उत्तरदायित्वों पर वाद-विवाद को इन नियामक मूल्यों द्वारा प्रमुख स्थान में रखा जाना चाहिए जिन्हें कम से कम कुछ मामलों में संविधान में अभिव्यक्त किया गया है।
स्थानीय स्वशासन पर न्यायपालिका की व्याख्या
- न्यायालयों ने भी अधिकांशतः 74वें संशोधन की संकीर्ण व्याख्या की है, जिससे राज्य सरकारों को शहरों पर अपना नियंत्रण बनाए रखने की अनुमति प्राप्त हुई है
- इस संदर्भ में, बिहार नगरपालिका (संशोधन) अधिनियम, 2021 के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने का पटना उच्च न्यायालय का हालिया आदेश पथ प्रवर्तक है।
- 2021 के संशोधन ने नगर पालिकाओं के ग्रेड सी एवं डी कर्मचारियों की नियुक्ति की शक्तियों को नगरपालिका की अधिकार प्राप्त स्थायी समिति से राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित नगर पालिका प्रशासन निदेशालय को हस्तांतरित कर दिया था।
- न्यायालय ने माना कि ये प्रावधान 74वें संशोधन का उल्लंघन करते हैं क्योंकि सत्ता का पुनर्केंद्रीकरण एवं स्व-शासन का कमजोर होना “संविधान संशोधन के विचार, भावना तथा डिजाइन के साथ असंगत हैं”।
- यह निर्णय अभूतपूर्व है क्योंकि इसने 74वें संशोधन के अक्षरशः पालन के विरुद्ध राज्य नगरपालिका कानूनों का परीक्षण किया एवं भारत के संघीय ढांचे में स्थानीय सरकारों की स्थिति को संभावित रूप से पुनः समायोजित (रीसेट) कर सकता है।
- जैसे-जैसे भारत अपनी राजनीति, अर्थव्यवस्था एवं संस्कृति में एक केंद्रीकृत परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, वैसे-वैसे संघवाद का एक नया दावा भी हो रहा है। हालांकि, राज्य के अधिकारों के इस दावे को कदाचित ही मूल्य-आधारित प्रामाणिक दावों के रूप में व्यक्त किया जाता है।
निष्कर्ष
- संघवाद पर वाद-विवाद में केंद्र, राज्य एवं स्थानीय स्तर पर सरकारों के मध्य शक्ति को कैसे विभाजित एवं साझा किया जाना चाहिए, इस पर व्यापक चर्चा शामिल होनी चाहिए क्योंकि स्थानीय सरकारें, मानक एवं संरचनात्मक रूप से, संविधान के संघीय ढांचे का एक अभिन्न अंग हैं।
स्थानीय स्वशासन के संदर्भ में प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न
प्र. संसद द्वारा स्थानीय सरकार का संवैधानिक संशोधन कब पारित किया गया था?
उत्तर. दिसंबर 1992 में, संसद ने 73वां एवं 74वां संवैधानिक संशोधन पारित किया, जिसने क्रमशः पंचायतों एवं नगर पालिकाओं की स्थापना की।
प्र. 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत स्थानीय सरकारों के संबंध में राज्य की क्या भूमिका है?
उत्तर. 73वें एवं 74वें संशोधन में राज्यों को आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय के लिए योजनाओं एवं स्कीमों को तैयार करने एवं लागू करने की शक्तियों सहित “स्वशासन के संस्थानों के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए” अधिकार के साथ पंचायतों एवं नगर पालिकाओं को निहित करने की आवश्यकता है।