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रोहिंग्या मुस्लिम मुद्दा- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: अंतर्राष्ट्रीय संबंध- भारत के हितों पर विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव।
रोहिंग्या मुस्लिम मुद्दा चर्चा में क्यों है?
- हाल ही में, शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी की सोशल मीडिया पर घोषणा कि सरकार ने लगभग 1,100 रोहिंग्या प्रवासियों को घर देने का निर्णय लिया है, विवाद का विषय बन गया।
रोहिंग्या आवास विवाद- समाचारों में
- पुरी ने कहा कि अस्थायी झुग्गियों में रहने वाले प्रवासी रोहिंग्या, सुविधाओं के साथ फ्लैटों में रहना, “टू गुड टू बी ट्रू” सिद्ध हुआ।
- श्री पुरी ने जो ब्योरा साझा किया, साथ ही 2021 के दस्तावेजों से पता चला कि सरकार वास्तव में रोहिंग्या को स्थानांतरित करने पर विचार कर रही थी, जो उनके पिछले घरों को जला दिए जाने के पश्चात, एक इस्लामिक चैरिटी द्वारा दान की गई भूमि पर रहते हैं।
- यद्यपि, श्री पुरी को गृह मंत्री कार्यालय द्वारा प्रतिरोध किया गया था, जिसने (गृह मंत्री कार्यालय) उन्हें “अवैध विदेशी” घोषित करते हुए इस तरह के किसी भी अभिप्राय से इनकार किया था।
रोहिंग्या के आवास विवाद पर सरकार का रुख
- गृह मंत्रालय के कार्यालय ने कहा कि योजना शरणार्थी रोहिंग्या (अवैध विदेशियों) को उनके वर्तमान घरों में रखने की थी।
- इन घरों को सुधार गृह (डिटेंशन सेंटर) के रूप में नामित किया जाएगा, जबकि सरकार ने इन्हें म्यांमार वापस भेजने के प्रयास जारी रखे हैं।
संबद्ध चिंताएं
- रोहिंग्याओं के साथ मानवीय व्यवहार से इनकार: सरकार एवं संबंधित व्यक्तियों के अनेक कदम इस बात का सुझाव देते हैं। उदाहरण के लिए-
- केंद्रीय गृह मंत्री ने प्रवासियों को ‘दीमक’ बताया,
- उन्होंने संसद में कहा कि भारत रोहिंग्या को “कभी स्वीकार नहीं करेगा”, एवं
- भारत ने इस वर्ष म्यांमार में एक रोहिंग्या महिला को निर्वासित करके संयुक्त राष्ट्र के गैर-प्रतिशोध के सिद्धांत का भी उल्लंघन किया।
- “वसुधैव कुटुम्बकम” दर्शन के विरुद्ध: राज्य प्रायोजित जातीय निर्मलन के पश्चात 2012 एवं 2017 में भारत भाग कर आए रोहिंग्या का उपचार भारत के “वसुधैव कुटुम्बकम” के दर्शन के विरुद्ध रहा है। उदाहरण के लिए-
- राजस्थान एवं हरियाणा में रोहिंग्याओं को घरों से निकाल दिया गया है।
- स्थानीय अधिकारियों तथा खुफिया एजेंसियों द्वारा कलंकित किया गया जो उन पर आपराधिक एवं यहां तक कि आतंकवादी अभिप्राय का आरोप लगाते हैं।
- “क्षेत्रीय नेता” छवि को कमजोर करना: नई दिल्ली अब तक विफल रही है-
- अपने नागरिकों को घर एवं सुरक्षा का आश्वासन देने के लिए म्यांमार को मनाने में “क्षेत्रीय नेता” के रूप में अपनी भूमिका निभाने हेतु, अथवा
- उनकी वापसी सुनिश्चित करने के लिए ढाका एवं नायपीडॉ के मध्य मध्यस्थता वार्ता में;
आगे की राह
- विदेश नीति प्रतिबद्धताओं एवं घरेलू राजनीति के मध्य संतुलन: रोहिंग्या आवास मुद्दा मोदी सरकार की विदेश नीति प्रतिबद्धताओं एवं उसकी घरेलू राजनीति के मध्य टकराव का एक उदाहरण प्रतीत होता है।
- शरणार्थियों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के प्रति सम्मान, 1951: यद्यपि भारत इस अभिसमय का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, भारत को इसका पालन करना चाहिए एवं इसका सम्मान करना चाहिए, विशेष रूप से जब बलपूर्वक विस्थापित रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रति उचित व्यवहार की बात आती है।
निष्कर्ष
- रोहिंगा शरणार्थी मुद्दे को हल करने के लिए दीर्घकालिक उपायों के अभाव में, भारत सरकार कम से कम असहाय रोहिंग्या समुदाय को निवास की बेहतर स्थिति प्रदान कर सकती है, जब तक कि उनका भविष्य सुरक्षित न हो जाए।




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